पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 14 अगस्त को अब से ‘विभाजन भयावह स्मरण दिवस’ के रूप में मान्यता दी जाएगी। भावी पीढ़ी को भारत के विभाजन के दौरान हुए भीषण अत्याचारों के अकथनीय कृत्यों को स्मरण दिलाने के लिए यह आवश्यक था। वामपंथी इतिहासकारों ने सदैव ही हिंदू जनमानस के साथ त्यज्य समुदाय की भांति व्यवहार किया। हिंदू जनमानस के दुख, उन पर हुए अत्याचार, महिलाओं के बलात्कार, मंदिरों का विध्वंस, बलपूर्वक कराए गए मतांतरण आदि को इतिहास लेखन में कभी स्थान नहीं मिला। हिंदू मस्तिष्क में धर्मनिरपेक्षता के विचारों को मादकता के स्तर तक पहुँचाने के लिए झूठा इतिहास लेखन किया गया। यह सब इसलिए हुआ कि हिंदू स्त्रियों के जोहर की लपटें, वर्तमान में विप्लवकारी अग्नि बनकर फुट ना पड़ें।
किन्तु इतिहास साक्षी है, जो समाज इतिहास को विस्मृत कर देता है, वही समाज इतिहास की पुनरावृत्ति भी करता है। इसलिए, आवश्यकता है कि वास्तविक इतिहास लोगों के मस्तिष्क में इस प्रकार छप जाए कि अंधकार में भी हम उसे ज्ञानदीप बनाकर अपना मार्ग प्रशस्त कर सकें।
मोपला नरसंहार दिवस की आवश्यकता
इतिहास की अनेकों घटनाओं में एक मोपला नरसंहार भी है, जिसे वामपंथी इतिहासकारों द्वारा राष्ट्रवादी आंदोलन का स्वरूप दे दिया गया, किंतु जो वास्तव में ‛काफिरों’ के विरुद्ध घृणा के कारण हुई विभत्सता की पराकाष्ठा थी। इस हिन्दू विरोधी नरसंहार का कारण इस्लामिक जिहाद और खिलाफत की स्थापना जैसे विचार थे। इस नरसंहार के शताब्दी वर्ष पर, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम एक समाज के रूप में खड़े हों और घटनाओं के सही इतिहास को स्वीकार करें। इसी के लिए यह आवश्यक है कि इस नरसंहार को याद रखने के लिए ‘मोपला नरसंहार दिवस’ भी मनाया जाए।
मोपला नरसंहार केरल के मालाबार जिले में 1921 में हुआ था किंतु इसकी पृष्टभूमि बहुत समय पूर्व से तैयार हो रही थी। पिछले छह अंकों में हमनें मलाबार में मोपला मुसलमानों का उदय, मोपलाओं का मूल हिंदुओं से विश्वासघात को देखा। साथ ही यह भी देखा कि कैसे हैदर ने स्थानीय मोपलाओं के सहयोग से इस क्षेत्र पर आक्रमण किया, स्थानीय हिंदू राजा को पराजित किया, हिंदुओ के रक्त से भूमि लाल कर दी तथा हिन्दू मंदिरों को अपवित्र किया। हैदर ने महिलाओं पर वह सभी अत्याचार किए गए जो किसी इस्लामिक सेना द्वारा विजय के बाद 1400 वर्षों से परंपरागत रूप से किए जाते रहे हैं। महत्वपूर्ण बात यह है, कि हैदर ने यह सभी अत्याचार उन मोपला मुसलमानों के सहयोग से किए थे, जिन्हें हिंदुओं ने ही अपने क्षेत्र में बसने की अनुमति प्रदान की थी।
10,000 से अधिक हिंदुओं का नरसंहार किया गया
1789 में हैदर के बेटे टीपू ने स्थानीय हिंदू नायरों की शक्ति को कुचलने के लिए पुनः मालाबार क्षेत्र में सैन्य अभियान किया। स्थानीय मुसलमानों ने पुनः इस्लामिक एकता का प्रदर्शन किया और टीपू का सहयोग किया। जब अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान की शक्ति को कुचल दिया उसके बाद भी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच आपसी प्रेम और विश्वास में अंगुली भर भी बढ़ोतरी नहीं हुई। हैदर और टीपू के शासन में भी हिंदुओं ने कई बार विद्रोह किए थे किंतु टीपु की पराजय के बाद हिंदुओं ने मुस्लिम आधिपत्य का जुआ उतार फेंका और अपनी सम्पत्तियों को पुनः प्राप्त किया। समय के साथ इस क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम जमीदारों की एक अच्छी संख्या हो गई। ब्रिटिश अभिलेखों से पता चलता है कि जहां एक और हिंदू जमींदार अपने काश्तकारों के बीच भेदभाव नहीं करते थे वही मुस्लिम जमींदार सदैव ही हिंदू काश्तकारों पर अत्याचार करते थे।
1836 से 1921 के बीच इस क्षेत्र में 50 से अधिक साम्प्रदायिक दंगे हुए। अंततः 1921 में इस क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या 10 लाख पहुंच गई, जो कुल जनसंख्या का 32% थी। 1921 के अगस्त माह में मालाबार क्षेत्र हिंदुओं के रक्त से सन गया। 10,000 हजार से अधिक हिंदू मारे गए और बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हुआ है।
मोपला नरसंहार एक सीख है, कैसे इस्लाम किसी क्षेत्र में अतिथि बनकर प्रवेश करता है, फिर वहां का मूलनिवासी बनकर अधिकार मांगता है और अंततः शक्ति मिलते पूरे क्षेत्र दार उल इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए प्रयास आरंभ कर देता है।
नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता का आवरण हटाने की आवश्यकता
आज तक, कम्युनिस्टों और इस्लामवादियों के अपवित्र गठजोड़ ने इस नरसंहार की वास्तविकता को आम जनमानस तक पहुँचने ही नहीं दिया। यह हिंदुओं के खिलाफ एक जनसंहार था, लेकिन मार्क्सवादी इतिहासकार आपको यह विश्वास दिलाएंगे कि यह एक किसान विद्रोह था, कृषि संकट से उत्पन्न विरोध था, या केवल ब्रिटिश राज के खिलाफ धर्मयुद्ध था।
मोपला नरसंहार की वास्तविकता पर प्रकाश डालने वाली TFI के इस सीरीज का समापन हो रहा है, यह हमारा कर्तव्य है कि हम विनम्रतापूर्वक यह स्वीकार करें कि मालाबार में विलुप्त होने के कगार पर धकेल दिए जाने के बावजूद हिंदू अभी भी मजबूत हैं। वे अभी भी अपनी विरासत को संभाले हुए हैं और कम से कम, सरकार यह तो कर ही सकती है कि मोपला जैसी हिन्दू विरोधी जनसंहार जैसी घटनाओं की वास्तविकता को दिखाने के लिए नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता को हटा दें।
हाल ही में मोदी सरकार ने दो महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं। पहला 14 अगस्त को विभाजन स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाना और दूसरा मोपला नरसंहार से जुड़े 387 लोगों का नाम स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से बाहर करना। मोपला नरसंहार जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने का एक ही मार्ग है, इतिहास को भुलाने, विकृत करने या छिपाने के स्थान पर उससे सीख ली जाए।
इस्लामिक कट्टरपंथ के अनुयायियों ने अपने कृत्यों से ही अपने मत की यह छवि बना ली है कि इसे एक मानसिक विषाणु (अंग्रेजी में आइडियोलॉजीकल वायरस) की संज्ञा देना अनुचित प्रतीत नहीं होता है। आए दिन होने वाली साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं, लव जिहाद, आतंकियों का पकड़ा जाना आदि घटनाओं को देखकर यही कहा जा सकता है कि हिंदुओं को सदैव चौकन्ना रहना चाहिए क्योंकि आज भी हमारे देश और समाज में ऐसे लोग बड़ी संख्या में उपस्थित हैं, जो हिंदुओं के साथ मोपला का इतिहास दोहराने की ताक में हैं। साथ ही आज वामपंथी प्रचार तंत्र इतना विस्तृत और शक्तिशाली है कि ऐसी किसी भी घटना को तोड़ मरोड़ कर उसे विस्मृत करा सकती है।
हम दिवंगत आत्माओं को सांत्वना नहीं दे सकते हैं, कम से कम हम यह स्वीकार कर सकते हैं कि समाज के एक वर्ग द्वारा उनके साथ अन्याय किया गया और राजनीतिक वर्ग द्वारा गुमनामी में छोड़ दिया गया जिसने नरसंहार की वास्तविकता को Whitewash करने की पूरी कोशिश की। यही कारण है कि अब सरकार को एक्शन लेते हुए “मोपला नरसंहार दिवस” की घोषणा करनी चाहिए।
भाग 1 – मोपला नरसंहार: कैसे टीपू सुल्तान और उसके पिता हैदर अली ने मोपला नरसंहार के बीज बोए थे
भाग 2- मोपला नरसंहार: टीपू सुल्तान के बाद मोपला मुसलमानों और हिंदुओं के बीच विभाजन का कारण
भाग 3- मोपला नरसंहार: 1921 कोई अकेली घटना नहीं थी, 1836 से 1921 के बीच 50 से अधिक दंगे हुए थे
भाग 5- मोपला हिंदू विरोधी नरसंहार का सच: इस्लाम न अपनाने पर 10,000 हिंदुओं की हत्या कर दी गई
भाग 6- मोपला हिंदू विरोधी नरसंहार: कांग्रेस ने इसे स्वतंत्रता संग्राम और कम्युनिस्टों ने ‘कृषक क्रांति’ कहा