कोविड-19 महामारी ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है। इस प्रभाव का परिणाम भविष्य के गर्भ में छुपा है। हालांकि, हम कुछ महत्वपूर्ण प्रयासों, परिवर्तनों और समस्याओं को रेखांकित कर सकते हैं। इन्हीं परिवर्तनों में सबसे प्रमुख ऑनलाइन शिक्षा का प्रादुर्भाव रहा है। ऑनलाइन शिक्षा को भारत ने अभूतपूर्व रूप से आत्मसात किया। सरकारी प्रयास भी सरहनीय रहे और निजी भी। सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा के लिए पर्याप्त मात्रा में सहायता तो दी ही साथ ही एक ऐसे परिवेश का निर्माण किया जिससे BYJUS, EXTRAMARKS, UNACADEMY जैसे तकनीकी शिक्षा के उद्यम फल-फूल सके। ऑनलाइन शिक्षा ने विद्यालय को 9-5 के बजाय 24*7 शैक्षणिक परिवेश में तब्दील कर दिया। ऑनलाइन शिक्षा की भी अपनी परिधि है। इन सीमाओं का छात्रों के सीख पर क्या असर पड़ा यह मूल्यांकन का विषय है।
भारत की शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव
भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव उसे कई दशकों पीछे धकेल सकतें है। रोजगार के अवसरों में भी कमी आई है क्योंकि कई प्रवेश परीक्षाएं और नौकरी की भर्तियां रद्द हो गईं जिससे उच्च शिक्षा के छात्र के जीवन में एक बड़ी चुनौती के साथ नकारात्मक प्रभाव पड़ा। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में महामारी के कारण 1.5 मिलियन से अधिक स्कूल बंद हो गए, जिससे 286 मिलियन बच्चे प्री-प्राइमरी से माध्यमिक स्तर तक प्रभावित हुए। यह डाटा उन 6 मिलियन लड़कियों और लड़कों को शामिल करता है जो कोविड -19 से पहले ही स्कूल से बाहर थे। शिक्षा में इस व्यवधान के गंभीर आर्थिक निहितार्थ भी हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट, ‘बीटन ऑर ब्रोकन: इनफॉर्मैलिटी एंड कोविड -19 इन साउथ एशिया’ ने मौद्रिक संदर्भ में स्कूल बंद होने के प्रभाव को निर्धारित किया है जिसमें बताया गया है कि भारत को भविष्य में शिक्षा क्षेत्र के संभावित कमाई में $ 440 बिलियन (32.3 लाख करोड़ रुपये) का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। ग्रामीण भारत में केवल 4 प्रतिशत परिवारों के पास ही डिजिटल ई-लर्निंग के लिए इंटरनेट की पहुंच है। हालांकि, केंद्र सरकार की भारतनेट परियोजना बहुत भरोसेमंद है, जिसका उद्देश्य कनेक्टिविटी में सुधार के लिए ऑप्टिक फाइबर के माध्यम से देश में 250,000 ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड प्रदान करना है।
2018 नीति आयोग की रिपोर्ट से पता चला है कि भारत के 55,000 गांवों में मोबाइल नेटवर्क कवरेज नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2017-18 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में 36 प्रतिशत से अधिक स्कूल बिना बिजली के संचालित होते हैं।
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ऑनलाइन शिक्षा का विकास
हालांकि, इस दौरान कुछ सकारात्मक परिणाम भी हासिल हुए है। कोविड -19 के प्रकोप से पहले किए गए एक केपीएमजी और Google के एक अध्ययन में अनुमान लगाया कि भारत में ऑनलाइन शिक्षा बाजार $ 1.96 बिलियन (14,836 करोड़ रुपये) तक बढ़ने का अनुमान है। कोरोन वायरस-प्रेरित लॉकडाउन ने एडुटेक खिलाड़ियों के लिए बाजार की मांग को और बढ़ा दिया। भारत अब अमेरिका के बाद दुनिया में बड़े खुले ऑनलाइन पाठ्यक्रम (एमओओसी) के बाजार के रूप में उभरा है। भारत भर में 1.5 मिलियन से अधिक स्कूल महामारी के कारण बंद हो गए। अब बड़े पैमाने पर डिजिटल शिक्षा पर स्विच करना संभव नहीं है। ऊपर से, 2019 के सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 24 प्रतिशत घरों में इंटरनेट की पहुंच है।
ऑनलाइन शिक्षा का छात्रों पर प्रभाव:
ऑनलाइन शिक्षा के लिए कई तरह की तकनीकें उपलब्ध हैं, लेकिन कभी-कभी वे बहुत मुश्किलें खड़ी कर देती हैं। आधुनिक तकनीक से जुड़ी ये कठिनाइयाँ और समस्याएँ जैसे डाउनलोड करने में त्रुटियाँ, स्थापना के साथ समस्याएँ, लॉगिन समस्याएँ, ऑडियो और वीडियो के साथ समस्याएँ आदि प्रायः होती रहती हैं। कभी-कभी ऑनलाइन शिक्षण छात्र को उबाऊ और अरुचिकर लगता है। व्यक्तिगत ध्यान भी ऑनलाइन सीखने का एक बड़ा मुद्दा है। छात्र दोतरफा बातचीत चाहते हैं जिसे कभी-कभी लागू करना मुश्किल हो जाता है। सीखने की प्रक्रिया तब तक अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच सकती जब तक छात्रों को अभ्यास नहीं कराया जाता। कभी-कभी ऑनलाइन सामग्री छात्रों को प्रभावी ढंग से अभ्यास करने और सीखने नहीं देती है। औसत दर्जे की पाठ्यक्रम सामग्री भी एक प्रमुख मुद्दा है।
छात्रों को लगता है कि विद्यालय वातावरण की कमी, तकनीकी समस्याएं और निर्देशात्मक लक्ष्यों को समझने में कठिनाइयां ऑनलाइन सीखने के लिए प्रमुख बाधाएं हैं। एक अध्ययन में, छात्रों को ऑनलाइन सीखने के माहौल में अपने अध्ययन जीवन के साथ छात्रों को अपने काम, परिवार और सामाजिक जीवन को संतुलित करने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं पाया गया। छात्रों को कई ई-लर्निंग दक्षताओं और शैक्षणिक-प्रकार की दक्षताओं के लिए भी खराब तरीके से तैयार पाया गया। साथ ही, लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम के उपयोग को लेकर छात्रों में निम्न स्तर की तैयारी है।
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ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली के दुष्प्रभाव का एक उदाहरण बिहार में भी देखने को मिला जब एमबीबीएस प्रथम वर्ष के 40 प्रतिशत छात्र 30 अगस्त को अपना अंतिम परीक्षा परिणाम उतीर्ण करने में असफल रहे। ज्ञात हो की बिहार के नौ मेडिकल कॉलेजों के एमबीबीएस प्रथम वर्ष के कुल 1,172 छात्र मार्च में ऑफलाइन परीक्षा में शामिल हुए थे और उनमें से 447 फेल हो गए। इतनी बड़ी संख्या में विफलताओं को देखते हुए, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की छात्र शाखा ने उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन की मांग की। उच्च विफलता दर का बचाव करते हुए, छात्र विंग ने परीक्षा परिणाम पर COVID-19 महामारी के प्रभाव का हवाला दिया। COVID-19 महामारी के कारण छात्रों को चिकित्सा शिक्षा ऑनलाइन प्रदान की गई है, जबकि परीक्षा ऑफ़लाइन आयोजित की गई थी।
कहतें है- child is the father of nation। विद्यार्थी राष्ट्र के विकास की धुरी है और शिक्षा राष्ट्र के चहुमुंखी विकास का एकमात्र मार्ग है। भारत सरकार ने जिस तरह से महामारी के दौरान अपने शिक्षा व्यवस्था को ढाला है वह प्रशंसा की पात्र है। चाहें शिक्षा नीति में बदलाव हो या ऑनलाइन शिक्षा को महत्व या फिर आधारभूत संरचना और व्यवस्था का विकास, सभी जगह सरकार के प्रयास सरहनीय हैं। इन सभी प्रयासों का नकारात्मक असर, अगर कहीं विद्यार्थी की सीख और समझ पर पड़ा तो यह भारत को कई दशकों तक पीछे ले जाएगा। भारत को इसका मूल्यांकन करते हुए त्वरित बदलाव करना चाहिए।