भारत ने न केवल कोरोनावायरस के रोकथाम में अपनी स्थिति मजबूत की, अपितु स्वदेशी वैक्सीन के दम पर 80 करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण भी कर दिया है। ऐसे में भारत की ये प्रगति पश्चिमी देशों को कहां पचने वाली है। चीनी चमचे विश्व स्वास्थ्य संगठन के जरिए पहले भारत के कोविड अभियान पर अड़ंगे लगाए गए। वहीं वैक्सीन की विश्वनीयता से लेकर उसे मान्यता देने के मुद्दे पर भी भारत को शर्मिंदा करने की नीति अपनाई गई। अमेरिका, यूके जैसे देशों को ऑक्सफोर्ड की एस्ट्राजेनिका के फार्मूले पर बनी कोविशील्ड से इतनी आपत्ति नहीं है, जितनी को-वैक्सीन से हैं, क्योंकि को-वैक्सीन भारतीय कंपनी द्वारा बनाई गई एक स्वदेशी वैक्सीन है। ऐसे में को-वैक्सीन को मान्यता देने के मुद्दे पर विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार ढुलमुल नीति अपना रहा है। को-वैक्सीन को अमेरिका में मान्यता न मिलने के चलते भारतीयों को सर्वाधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसके विपरीत देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिका के लिए एक अपवाद बन गए हैं।
अमेरिका अपनी नीतियों से सदैव भारत को परेशान करने के प्रयास करता रहता है, किन्तु असल में वो भारत को खुलकर कभी नौटंकी नहीं दिखा पाता। जो अमेरिका नरेन्द्र मोदी को वीजा देने को तैयार नहीं था, 2014 में पीएम बनने के बाद पीएम मोदी के लिए उसी अमेरिका ने सबसे लंबा रेड कारपेट बिछाया था। ऐसे में कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी के बाद पहली बार पीएम मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए हैं। वो अमेरिका जहां भारत की स्वदेशी कोरोना की वैक्सीन को-वैक्सीन को मान्यता नहीं मिली है, जहां जाने के लिए भारतीयों को पहले किसी दूसरे देश में जाकर एकांतवास का पालन करना होता है, उसी अमेरिका में को-वैक्सीन की दो डोज लगवा चुके प्रधानमंत्री मोदी शेर की तरह गए हैं।
ये दिखाता है कि अमेरिका की इतनी हिम्मत अब नहीं रही कि वो भारत सरकार या प्रधानमंत्री के सामने न-नुकर कर सके। इसी अमेरिका में सुरक्षा कारणों के चलते पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों के कपड़े तक उतरवा लिए जाते हैं, वही अमेरिका पीएम मोदी के स्वागत के लिए अपने को-वैक्सीन के मान्यता न होने के नियम को ही नकार चुका है।
जिस दिन भारत में कोवैक्सीन की सफलता का ऐलान हो गया था, उसी दिन से वैश्विक स्तर पर पश्चिमी देशों ने भारत के विरुद्ध पर्दे के पीछे से एजेंडा चलाना शुरु कर दिया था। भारत के विरुद्ध इस एजेंडे का सबसे बड़ा नेतृत्व कर्ता चीन की कठपुतली बन चुका विश्व स्वास्थ्य संगठन है। को-वैक्सीन बनाने वाली हैदराबाद की भारतीय कंपनी भारत बायोटेक के जिम्मेदार लगातार को-वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यता दिलाने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन WHO के कानों पर जूं नहीं रेंग रहा है। ये निश्चित तौर पर भारत के प्रति पश्चिमी देशों के मन में व्याप्त नस्लभेदी भावना है।
अमेरिका में एच.1 बी वीजा वाले लोगों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। अमेरिका ने ऐसे नियम बनाएं हैं, कि कोई भी सीधे अमेरिका नहीं जा सकता है। हालत ये है कि भारतीयों को पहले किसी अन्य बड़े देश में जाकर 10 दिन तक क्वारंटीन रहना पड़ता है, इस दौरान उन्हें भारी पैसा भी खर्च करना पड़ रहा है। इस प्रक्रिया के बाद ही वो अमेरिका में प्रवेश पा रहे हैं। ये यकीनन भारतीयों के साथ दुराभाव की नीति है। हालांकि को-वैक्सीन के मुद्दे पर पीएम मोदी की यात्रा के आगे अमेरिका की घिग्गी बन गई है।
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पीएम मोदी के आगे अमेरिका द्वारा अपने अपने नियमों को ही तिलांजलि देना भारत की शक्ति को दर्शाता है। अमेरिका में भी बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं, जिनका वहां की राजनीति में सीधा दखल है। ऐसे में आवश्यक है कि वहां भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक भारत के साथ हो रहे बर्ताव को लेकर आक्रोश व्यक्त कर सकते हैं। निश्चित ही उनकी ये ताकत अमेरिकी प्रशासन को भारत के आगे झुकने पर मजबूर कर देगी।
इसके साथ ही महत्वपूर्ण ये भी है कि अब भारत सरकार को भारत बायोटेक के साथ मिलकर विशेष प्रयास करने चाहिए, जिससे भारत बायोटेक की को-वैक्सीन लगाकर अमेरिका में धाक के साथ कदम रखने वाले प पीएम मोदी अकेले भारतीय न साबित हों, और को-वैक्सीन को भी जल्द-से-जल्द वैश्विक मान्यता प्राप्त हो।