9 सितंबर को ब्रिक्स देशों के बीच 13वीं शिखर सम्मेलन आयोजित की गई थी। भारत इस सम्मेलन की अगुवाई कर रहा था। मीटिंग में ब्राजील के राष्ट्रपति Bolsonaro, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत 5 देशों के राष्ट्राध्यक्ष मौजूद थे। अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों से लेकर कोविड महामारी तक, तमाम विषयों पर चर्चा हुई और शिखर सम्मेलन में तमाम वादें भी किए गए। सब कुछ बढ़िया चल रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन को असहज स्थिति में ला देने वाली बात को मुद्दे के रूप में उठा दिया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने दुनियाभर में कोरोना जैसी महामारी फैलाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को विश्व मंच पर धोया और जिनपिंग चुपचाप सुनते रहे। इसपर मुख्यधारा की मीडिया ने भी ध्यान नहीं दिया। मीटिंग के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने WHO और चीन पर कोरोना वायरस के फैलाने और उसके उत्पत्ति पर सवाल खड़ा कर दिया जिससे चीन असहज हो गया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “आज वैश्विक सरकारों को विश्वसनीयता की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना वायरस की उत्पत्ति की पारदर्शी जांच होनी चाहिए और इस जांच को सभी देशों से पूर्ण सहयोग मिलना चाहिए।”
चीन को आड़े हाथों लेने में सबसे आगे रहे भारतीय पीएम ने आगे कहा, “अगर कोरोना कि उत्पत्ति की जांच होती है, तो इससे डब्ल्यूएचओ की विश्वसनीयता पर सवाल कम हो जाएंगे, और हम भविष्य की महामारियों के लिए भी बेहतर तैयारी कर पाएंगे।” यहां पीएम मोदी ने WHO को स्पष्य संदेश दिया है कि कोरोना काल में चीन के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर दुनियाभर के लोगों का भरोसा तोड़ा है और अब उसे अगर खुद पर से पक्षपात का दाग मिटाना है तो एक्शन लेना पड़ेगा। दिलचस्प बात यह है कि जिस चुटीले और सूक्ष्म तरीके से पीएम मोदी ने शी जिनपिंग को निशाना बनाया, वह निजी तौर पर किया गया हमला था, परंतु इसे किसी भी मीडिया ने महत्व नहीं दिया।
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पीएम मोदी के शब्दों के वार से चीन की ऐसी फजीहत हुई कि उसे भी वही पंक्तियाँ दोहरानी पड़ीं। चीनी राष्ट्राध्यक्ष ने कहा, “हमें COVID-19 के खिलाफ वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने पर ध्यान देना चाहिए। महामारी से निपटने के लिए एक साथ एक ताकत के रूप में शामिल होने की आवश्यकता है। कोरोना की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण को बनाए रखने की जरूरत है और राजनीतिकरण और भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करने की आवश्यकता है।”
जिनपिंग ने विक्टिम कार्ड खेलने के बाद आगे कहा, “हमें COVID की रोकथाम और नियंत्रण में समन्वय बढ़ाने और वैश्विक भलाई के लिए टीकों के अनुसंधान, उत्पादन और समान वितरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।”
चीन भले ही ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में COVID-19 वायरस की उत्पत्ति पर खुले टकराव से परहेज किया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर एक तीर से दो निशाने लगाए। ऐसा नहीं है कि वायरस के लिए पारदर्शी जांच की मांग हेतु भारत पहली बार यह बोला है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत मार्च 2020 में 61 देशों के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोनो वायरस महामारी की उत्पत्ति पर स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग कर चुका है।
WHO की भूमिका पर लंबे समय से सवाल उठ रहे है। उसकी और चीन की गलबहियां के चलते पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप WHO की फंडिंग रोकने की बात कह चुके है। खुद भारत के लिए भी WHO अच्छा साबित नहीं हुआ है। जिस कॉवैक्सिन को 40 करोड़ से ज्यादा लोग लगा चुके हैं, अभी तक WHO ने उसे क्लीयरेंस नहीं दिया है। कोरोना वायरस के जांच हेतु गई टीम को भी पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान नहीं कि गई थी।
अब WHO को प्रधानमंत्री का सीधा संदेश है, आप कोरोना उत्पत्ति के लिए पारदर्शी जांच कीजिये, तभी आप पर उठने वाले सवाल कम होंगे और एक संगठन के तौर पर विश्वसनीयता कायम हो सकेगा। चीन के लिए भी साफ संदेश है कि भले चीन मानवतावादी होने का ढोंग रच लें, भारत हमेशा वुहान वायरस को लेकर सवाल उठाता रहेगा।