चीनी अतिक्रमण के विरुद्ध Oli की तुलना में नेपाली PM देउबा है अधिक सतर्क, जांच के लिए बिठाई कमेटी

नेपाल अब प्रधानमंत्री देउबा की ‘दंडनीति’ अपनाएगा!

नेपाल चीन बॉर्डर

नेपाल में अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही। कल तक जो नेपाल चीन के समक्ष नतमस्तक हुआ करता था, अब वही नेपाल चीन के बढ़ते खतरे के प्रति पूरी तरह सतर्क और सावधान है। अब नेपाल आवश्यकता पड़ने पर चीन को मुंहतोड़ जवाब देने को भी तैयार है। इस दिशा में वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का योगदान रहा है, जो नेपाल बॉर्डर पर चीनी अतिक्रमण को नियंत्रित करने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए एक कमेटी का गठन कर रहे हैं। ये कमेटी नेपाल बॉर्डर पर चीनी अतिक्रमण की जांच भी करेगी और इस समस्या से निपटने के लिए नेपाली प्रशासन को सुझाव  भी देगी।

द हिन्दू के रिपोर्ट के अंश अनुसार, “कमेटी नेपाल चीन की बॉर्डर पर उत्पन्न समस्याओं का विश्लेषण करेगी, खासकर वो, जो लिमी लापचा पर स्थित नेपाल चीन बॉर्डर से लेकर हुमला जिले में बॉर्डर के निकतात हिलसा जिले में चीनी अतिक्रमण से संबंधित है। ये निर्णय प्रधानमंत्री देउबा के काठमांडू में स्थित आधिकारिक निवास पर लिया गया।” लिमी लापचा

इस नई कमेटी में सर्वेक्षण विभाग के उच्चाधिकारी, नेपाल पुलिस के उच्चाधिकारी और बॉर्डर विशेषज्ञ शामिल होंगे। ये गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में गठित होगा, जिसकी सूचना ज्ञानेन्द्र बहादुर कार्की ने दी, जो नेपाली सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता होने के साथ साथ विधि एवं संसदीय कार्यों का मंत्रालय भी संभालते हैं। कमेटी अपनी रिपोर्ट सीधा गृह मंत्रालय को देगी।

बता दें कि पिछले कुछ वर्षों से चीन नेपाल से दोस्ती के नाम पर एक ओर नेपाल को भारत के विरुद्ध भड़का रहा था, तो दूसरी ओर नेपाली भूमि पर ही कब्जा जमा रहा था। हुमला जिले में चीन ने सर्वाधिक अतिक्रमण किया था, और जब पिछले वर्ष इसका सर्वेक्षण करने एक सरकारी टीम गई थी, तो चीनी PLA ने उन पर आँसू गैस के गोले भी दागे थे। हालांकि इस बात को स्वीकारने से हिचकिचाते रहे हैं, परंतु तत्कालीन ओली सरकार ने इन रिपोर्टों का न सिर्फ खंडन किया, अपितु चीन की जी हुज़ूरी करने का भी पूरा प्रयास किया।

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इसके अलावा केपी शर्मा ओली के चीनी राजदूत हूँ यांकी से घनिष्ठ संबंध भी किसी से नहीं छुपे है, जिसका लाभ उठाते हुए चीन ने नेपाल पर आधिपत्य जमाने का भी प्रयास किया था। परंतु नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया। वे अन्य नेताओं की भांति न तो भारत विरोधी हैं, और न ही चीन की जी हुज़ूरी करने में विश्वास रखते हैं।

शेर बहादुर देउबा न केवल एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता हैं, अपितु एक हिंदूवादी नेता भी हैं। जब तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार नेपाल के संविधान में सेक्युलरिज्म शब्द जोड़ने पर आमादा थी, तो शेर बहादुर देउबा ने आक्रोश जताया था। उनके अनुसार नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र है और उसे हिन्दू राष्ट्र ही बनाए रखना चाहिए। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार शेर बहादुर देउबा ने साल 2015 में नई दिल्ली में कहा था कि वो नेपाल के संविधान से secularism शब्द को निकलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।

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ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि अब पहले की भांति चीन और नेपाल में ‘गुलू गुलू’ नहीं होगी, बल्कि प्रधानमंत्री देउबा की ‘दंडनीति’ अपनाई जाएगी। जिस प्रकार से चीनी अतिक्रमण के प्रति शेर बहादुर देउबा ने सख्त नीति अपनाई है, उससे नेपाल का संदेश स्पष्ट है – राष्ट्रहित से ऊपर कुछ नहीं।

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