पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नीतियों के कारण एक सीमा के बाद उनके साथ काम करने वाले लोग भी उनसे दूरियां बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ममता सरकार पर राज्य में राजनीतिक हिंसा से लेकर राज्य में अस्थिरता फैलाने के मुद्दे पर अनेकों केस चल रहे हैं। ऐसे में सरकार का पक्ष रखने वाले राज्य के महाअधिवक्ता पर सरकार का बचाव करने का एक बड़ा जिम्मा और दबाव होता है, किन्तु अब महाअधिवक्ता का ये पद वकीलों के लिए संभवतः मुश्किल भरा हो चुका है। इस मुश्किल घड़ी में अब राज्य सरकार के महाअधिवक्ता के पद से वरिष्ठ वकील किशोर दत्ता ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे के पीछे कोई कारण नहीं बताया है, किन्तु ये स्पष्ट करता है कि महाअधिवक्ता का ये पद वकीलों को रास नहीं आ रहा है, इसलिए कोई भी अब ये पद ग्रहण नहीं करना चाहता है।
महाअधिवक्ता के पद से वरिष्ठ वकील किशोर दत्ता का इस्तीफा
राज्य के महाअधिवरक्ता का पद ऐसा होता है जिसका कोई एक निश्चित कार्यकाल नहीं होता है। ऐसे में ये पूर्णतः उस राज्य की सरकार और वकील पर निर्भर करता है कि वो कब तक पद पर बने रहेंगे। अर्थात अधिवक्ताओं का उस पद से हटना पूर्णतः सरकार या वकील की सहमति के अनुसार ही होता है, किन्तु ममता सरकार में स्थिति बिल्कुल ही बदली हुई है। पश्चिम बंगाल के महाअधिवक्ता किशोर दत्ता ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इसकी सूचना प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने दी है, तथा उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया है।
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In terms of Article 165 of the Constitution have accepted with immediate effect resignation submitted by Shri Kishore Datta, Senior Advocate, as Advocate General of State of West Bengal @MamataOfficial with immediate effect. pic.twitter.com/IKK0Iu4qeG
— Governor West Bengal Jagdeep Dhankhar (@jdhankhar1) September 14, 2021
ममता के कार्यकाल में 4 महाअधिवक्ता दे चुके हैं इस्तीफा
ममता सरकार के लिए इसे एक बड़ा झटका माना जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानों बंगाल सरकार को भी इस इस्तीफे की जानकारी नहीं थी। इसके पहले राज्य के महाअधिवक्ता का पद ममता सरकार के कार्यकाल के दौरान जिन भी वकीलों ने भी संभाला था, उन्होंने भी अचानक ही अपने पद से इस्तीफा दिया था।
वर्ष 2011 में ममता सरकार के बनने पर अन्निद्या मित्रा ने सबसे पहले ये पद संभाला था। इसके अलावा बिमल चटर्जी से लेकर वरिष्ठ वकील जयंत मित्रा ने भी अपने पद से इस्तीफा अचानक ही दिया था, जो कि ममता सरकार की कार्यशैली एवं महाअधिवक्ताओं पर पड़ने वाले दबावों को दर्शाता है।
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ममता सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट में ममता के विरुद्ध कई मामले चल रहे हैं। उदाहरण के लिए बंगाल की राजनीतिक हिंसा, टीएमसी कार्यकर्ताओं की अराजकता, नारादा-सारदा घोटालों के मामले शामिल हैं। किशोर दत्ता का नाम हाईकोर्ट में ममता सरकार के खिलाफ दर्ज चुनाव बाद हिंसा के मामलों से जुड़ा था। इसके अलावा नारदा घोटाले को लेकर चल रही जांच में वे बंगाल सरकार का पक्ष रख रहे थे। यही नहीं दत्ता टीएमसी से जुड़े विधायक मुकुल रॉय की पीएसी अध्यक्षता को मिली चुनौती का मामला भी उनके जिम्मे ही था। ऐसा लगता है कि किसी भी वकील के लिए ममता सरकार का पक्ष रखना बेहद मुश्किल हो गया था जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा है।
संभवतः यही कारण है कि राज्य सरकार के महाअधिवक्ता किशोर दत्त ने अपने पद से इस्तीफा दिया हो। ये दर्शाता है कि ममता सरकार के कुकर्मों पर उनके अपने खेमें के वकील भी उनका पक्ष नहीं ले पा रहे हैं। इससे ममता सरकार का अदालती पक्ष कमजोर हो सकता है। ये संभावनाएं भी हैं किशोर दत्ता ने इस्तीफा देने के बाद के बाद ममता सरकार के कुछ बड़े राज भी खोलें, जो ममता सरकार की पोल पट्टी के खुलने का कारण भी बने।