एक वक्त ऐसा था कि राष्ट्रीय राजनीति से इतर कांग्रेस सर्वाधिक मजबूत किसी राज्य में थी, तो वो पंजाब ही था। किन्तु, अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता के दम पर पूरे देश की तरह ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे भी बर्बाद कर दिया। राहुल ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरोध में नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का प्रमुख बनाकर राज्य में पार्टी को कमजोर कर दिया है। सिद्धू को बड़ा पद मिलने के बावजूद कैप्टन से नाराजगी एवं सीएम पद की लालसा में वो अपनी ही सरकार पर हमला बोलते रहे, जिसके चलते अब राहुल समेत कांग्रेस आलाकमान को ये एहसास हो गया है कि सिद्धू के बेकाबू होने से पार्टी कमजोर हो रही है। इसको देखते हुए सिद्धू को कैप्टन के विरुद्ध मुंह बंद रखने की सलाह दी गई हैं। ये दिखाता है कि एक बड़ा पद मिलने के बावजूद सिद्धू अपरिपक्वता के कारण कांग्रेस द्वारा किनारे किए जा चुके हैं, एवं ये संकेत है कि अब पंजाब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का पद कांग्रेस आलाकमान द्वारा रिमोट कंट्रोल से चलाया जाएगा। अर्थात सिद्धू एक बार फिर से राजनीति में शून्यता की ओर अग्रसर हैं।
सिद्धू का बचपना
कांग्रेस आलाकमान शुरु से ही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम नहीं बनाना चाहता था, क्योंकि कैप्टन एवं राहुल के बीच 36 का आंकड़ा रहता है। ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच-बचाव के बाद राज्य में कैप्टन को 2017 में सीएम बनाया गया था। इसके विपरीत सिद्धू को पंजाब में लाकर कैप्टन के कद को घटाने के प्रयास किए गए। उन्हीं प्रयासों के चलते अब सिद्धू को कैप्टन के विरोध के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। इसके विपरीत सिद्धू के राजनीतिक जीवन की बात करें तो उन्हें कोई विशेष अनुभव नहीं है। बीजेपी में रहने एवं कांग्रेस में जाने के बाद उन्होंने केवल विरोध की राजनीति ही की है। ऐसे में सिद्धू को पता भी नहीं है कि उन्हें करना क्या है।
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प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सिद्धू ने अपने समर्थकों के जरिए कैप्टन को सीएम पद से हटाने की बयार चलाने लगे। ऐसे में कांग्रेस को लगातार नुकसान हो रहा है। कैप्टन के विरुद्ध बयान-बाजी से लेकर ईंट-से-ईंट बजाने की बात से कांग्रेस को ही नुकसान हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी जमीनी स्तर पर बंट चुके हैं। इस पूरे प्रकरण के बाद कांग्रेस आलाकमान को पता चल रहा है कि सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उन्होंने सबसे बड़ी गलती कर , जिसके चलते अब सिद्धू को दिल्ली बुलाकर राहुल–प्रियंका ने ही निर्देशित किया है कि वो किसी भी प्रकार का कैप्टन विरोधी बयान न दें, और अपनी जुबान पर ताला लगा कर रखें। राहुल-प्रियंका समेत कांग्रेस आलाकमान को एहसास हो चुका है कि सिद्धू यदि फ्रंटफुट पर खेलते रहे, तो इसका कांग्रेस को राज्य में सर्वाधिक नुकसान होगा, क्योंकि सिद्धू अपने बयान में ओवर थ्रो करके बीजेपी जैसी विपक्षी पार्टियों को ही फायदा पहुंचाते हैं।
अब कांग्रेस आलाकमान का ध्यान कैप्टन नहीं सिद्धू
कांग्रेस की पहली प्राथमिकता कैप्टन पर कंट्रोल करने की नहीं रही। उन्हें पता है कि ऐसा करने के चक्कर में पार्टी विधानसभा चुनाव हार सकती है। दूसरी ओर राज्य में बीजेपी अपने उत्थान की ओर जा रही है। टीएफआई पहले ही भविष्यवाणी कर चुका है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में बीजेपी के पंजाब जीतने की संभावनाएं काफी अधिक हैं। बीजेपी राज्य में चुनाव जीतने पर दलित सिख सीएम बनाने का ऐलान कर चुकी है, दूसरी ओर अकालियों से लेकर आम आदमी पार्टी की स्थिति भी पंजाब में अच्छी नहीं है।
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ऐसे में बीजेपी का ये उत्थान कांग्रेस को डरा रहा है। कांग्रेस की प्राथमिकता केवल पंजाब जीतने की बन गई है। उसे पता है कि विधानसभा चुनावों मे वो कहीं अगर अपनी लाज बचा सकती है, तो वो पंजाब ही होगा। ऐसे में सिद्धू को कांग्रेस ने साइडलाइन कर दिया है। हालांकि, इसकी जिम्मेदार कांग्रेस नहीं अपितु सिद्धू ही हैं। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष का पद आसानी से मिलने के बावजूद कैप्टन के विरुद्ध अपनी बयानबाजी जारी रखी। उनकी अपरिपक्वता के कारण ही उन्होंने कुछ दिनों में ही अपनी लोकप्रियता धूमिल कर ली है।
यानी उनकी स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी उस मूषक की हुई थी जो दुर्घटनावस् एक ऋषि की शरण में पहुँच गया था। चूहे के कष्ट को देख कर ऋषि ने पहले उसे बिल्ली बनाया और फिर कुत्ता और फिर उसे शेर। जब शेर बन गया तो उस चूहे ने ऋषि पर ही हमला कर दिया। इस पर ऋषि ने “पुनः मूषको भव !” कहते हुए उसे पुनः चूहा बना दिया। आज एक बार फिर से सिद्धू उसी तरह शून्य पर आ चुके हैं।
बीजेपी में रहने के बावजूद आलाकमान से टकराव की स्थिति में वो अजीबो-गरीब बयान देते रहते थे, जिसके चलते वो पार्टी में साइडलाइन हो गए थे। ठीक उसी प्रकार कांग्रेस में लंबे वक्त तक साइडलाइन रहने के बाद सिद्धू आलाकमान की कृपा से प्रदेश अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद तो पा गए, किन्तु उन्होंने अपने बड़बोलेपन के कारण फिर मुसीबत मोल ले ली है, जिसके चलते कांग्रेस उन्हें अब प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद साइडलाइन कर चुकी है।