अगर आपको लगता है कि मान्यवर का वर्तमान विज्ञापन भड़काऊ था तो पिछले कई वर्षों से ऐसे विज्ञापन निकल रहे हैं, जो सनातन धर्म की नींव को ही तोड़ने पर लगे हैं l हाल ही में भारतीय परिधान कंपनी मान्यवर अपने ‘मोहे’ कलेक्शन के नए विज्ञापन को लेकर विवादों के घेरे में आ चुकी है। अभिनेत्री आलिया भट्ट वाले इस विज्ञापन में सनातन धर्म की विवाह पद्वति की महत्वपूर्ण रीति ‘कन्यादान’ का उपहास उड़ाते हुए महिला सशक्तिकरण का नारा लगाने का प्रयास किया। हालांकि, ये दांव सुपर फ्लॉप सिद्ध हुआ और आलिया भट्ट के साथ साथ मान्यवर को भी इस घटिया विज्ञापन के लिए सोशल मीडिया पर बहुत गालियां पड़ी।
परंतु आपको क्या लगता है, ये ऐसा एकमात्र विज्ञापन है? क्या इससे पहले किसी ने ऐसा प्रयास कभी नहीं किया? पिछले कई वर्षों में अगर आप भारतीय विज्ञापनों को ध्यान से देखें, तो वे एक सुनियोजित तरीके से न केवल हमारे धर्म को निशाना बना रहे हैं, अपितु सनातन धर्म की रीढ़ – हमारे पारिवारिक संस्था पर ही प्रहार कर रहे हैं। चाहे तनिष्क का लव जिहाद को उचित ठहराने वाला हास्यास्पद घटिया विज्ञापन हो, या फिर मान्यवर का वर्तमान विज्ञापन हो, ये कोई संयोग नहीं, अपितु एक सुनियोजित एवं घातक प्रयोग है, और अभी तो हमने वरुण धवन के लक्स होज़री वाले वर्तमान अश्लील विज्ञापन की चर्चा भी नहीं की है।
उदाहरण के लिए हॉटस्टार के इस विज्ञापन को देखिए। ऐसे तो ये आपको आम विज्ञापन प्रतीत होगा, परंतु यहाँ पर दिखाया गया है कि परिवार के साथ समय बिताना व्यर्थ का कार्य है, और OTT पर अपना समय बिताने से ज्यादा लाभ होगा। बड़ी ही सफाई से परिवार को बिना बात के विलेन बनाना कोई डिज्नी प्लस हॉटस्टार से सीखे –
ऐसे ही सचिन तेंदुलकर के एक म्यूचुअल फंड संबंधी विज्ञापन में ये दिखाने का प्रयास किया गया है कि कैसे उसका ड्राइवर अपने चाचा के मरने पर तनिक भी दुखी नहीं है, बल्कि उसे म्यूचुअल फंड में निवेश की प्रसन्नता अधिक है –
https://www.youtube.com/watch?v=uQb5B5WZxVo
आपको वो रेड लेबल का विवादास्पद कुम्भ मेला वाला घटिया विज्ञापन तो याद होगा ही? उसने तो एक तीर से दो निशाने भेदे थे। इस एड के जरिए ये सिद्ध किया जा रहा था कि आजकल के रिश्ते न केवल खोखले हैं, बल्कि कुम्भ मेला वो स्थान है, जहां लोग अपने वृद्ध माता पिता को अकेला छोड़ देते हैं। इस एड के पीछे काफी बवाल भी मचा था, और हिंदुस्तान यूनिलीवर को इस विषय पर क्षमा याचना भी करनी पड़ी थीl
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ठीक इसी प्रकार से नारी सशक्तिकरण पर लंबे चौड़े भाषण देने वाले वामपंथी बुद्धिजीवियों को तब सांप सूंघ जाता है, जब Cars24 नामक एक ई कॉमर्स कंपनी विज्ञापन के नाम पर पुरुषों का अपमान करते हुए दिखी, कि पसंद न आए तो पति 7 दिन में वापिस! कल्पना कीजिए यदि यही संवाद किसी स्त्री के लिए उपयोग में लाया जाता, तो? अब तक तलवारें निकल आई होती, संयुक्त राष्ट्र से लेकर मंगल गृह तक मोदी सरकार को इस घटिया विज्ञापन के पीछे अपदस्थ करने के लिए याचना की जा रही होती –
इन विज्ञापनों का उद्देश्य स्पष्ट है – पारिवारिक प्रणाली को जड़ से उखाड़कर समाप्त करना और सभी को व्यक्तिवाद यानि Individualism की ओर आकर्षित करना, जिसके कारण आज पाश्चात्य संस्कृति अपने आप में एक मज़ाक बनकर रह गई है। भारत आज भी उन चंद संस्कृतियों में से एक है, जो पाश्चात्य संस्कृतियों के अनेकों आघातों को बहादुरी से सहता है, और यही बात कुछ लोगों को स्वीकार नहीं है।
लेकिन जो काम विदेशी नहीं कर पाए, उसे अब पाश्चात्य संस्कृति के मोह से ग्रसित भारतीय निरंतर लागू कर रहे हैं। परंतु वे ये भी भूल रहे हैं, कि वे लोगों को भ्रमित करने में विकसित हो रहे हैं, तो सोशल मीडिया की कृपा से अब लोग भी इनके प्रपंचों से परिचित हो रहे हैं। पिछले वर्ष तनिष्क, और फिर इस वर्ष मान्यवर के घटिया विज्ञापन को लेकर दोनों कंपनियों को जबरदस्त आलोचना का सामना करना पड़ा है, और यदि ये लोग नहीं सुधरे, तो आने वाले समय में इन्हे आर्थिक बहिष्कार का सामना भी करना पड़ सकता है।