अफ़ग़ानिस्तान को दो हिस्सों में बांटकर तालिबान के मंसूबों पर पानी फेरने वाला है ताजिकिस्तान

रूस दे रहा पूरा साथ

अफ़ग़ानिस्तान विभाजन

अगर आपको लगता है कि काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता के लिए जारी संघर्ष में कोई कमी आएगी, तो आप एक बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं। अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष तो अब शुरू हुआ है। अमेरिका की घर-वापसी के बाद अब अफ़ग़ानिस्तान रूस और चीन जैसी ताकतों का रणक्षेत्र बनकर उभर रहा है। चीन आँखें मूँद कर तालिबान का समर्थन करने में लगा है तो वहीं, रूस और उस साथी देश तालिबान-विरोधी Resistance Forces को परोक्ष रूप से सहायता करते दिखाई दे रहे हैं। बड़ी ताकतों के टकराव के नतीजे में एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है और अगर तालिबान को जल्द ही सत्ता से नहीं हटाया गया तो अफ़ग़ानिस्तान जल्द ही दो हिस्सों में विभाजन भी हो सकता है।

अफ़ग़ानिस्तान के विभाजन के संकेत आने शुरू भी हो गए हैं और इसकी शुरुआत की है रूस के साथी देश ताजिकिस्तान ने! हाल ही में ताजिकिस्तान ने पंजशीर के शेर कहलाए जाने वाले अहमद शाह मसूद और अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को अपने उच्चतम नागरिकता पुरुस्कार से नवाज़ा। अपने इस एक कदम से ताजिकिस्तान ने पूरी दुनिया को कुछ अहम और बेहद महत्वपूर्ण संकेत भेजे हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में केवल किसी एक संप्रदाय का ही वर्चस्व नहीं है, बल्कि यहाँ अलग-अलग जातीयता से जुड़े लोग रहते हैं। अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का विभाजन कुछ इस प्रकार किया कि यहाँ एक जाति के लोग अलग-अलग देशों में बंट जाएँ और भविष्य में एकजुट होने हेतु क्षेत्र में अस्थिरता का माहौल बनाने के लिए बाध्य हो जाएँ। उदाहरण के लिए पश्तून लोगों को ले लीजिये! ये आज पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बंटे हुए हैं। अफ़ग़ानिस्तान में पश्तून लोग सबसे ज़्यादा हैं, लेकिन यहाँ के तुर्क लोग अपने आप को तालिबान के साथ जोड़कर नहीं देखते हैं।

इसी प्रकार यहाँ के तजिक लोग हैं, जो कि पश्तूनों के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह के रूप में जाने जाते हैं। इसी प्रकार उज़्बेक लोग भी अफ़ग़ानिस्तान में बड़ी तादाद में रहते हैं और ये अपने आप को तालिबान से जोड़कर नहीं देखते।

अब ताजिकिस्तान ने अहमद शाह मसूद और अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति बुरहानूद्दीन रब्बानी को पुरुस्कार से नवाज़ कर अफ़ग़ानिस्तान के तजिक समुदाय के लोगों को बड़ा संकेत दिया है। पंजशीर के शेर के नाम से मशहूर मसूद वो शख्स थे जिन्होंने तालिबान के विरुद्ध मरते दम तक लड़ाई जारी रखी और जिन्हें 9/11 हमलों से महज़ दो दिन पहले ही तालिबान द्वारा मार दिया गया था।

ऐसे में ताजिकिस्तान पंजशीर घाटी में जारी घमासान के बीच अहमद शाह मसूद को पुरुस्कृत कर तालिबान-विरोधी resistance forces को अपना समर्थन दे रहा है।

तजिक और उज़्बेक समुदाय से जुड़े लोग तालिबान से जुड़ाव महसूस नहीं करते हैं। ना ही वे कट्टर हैं, ना ही उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हैं, ऊपर से वे अफ़ग़ानिस्तान में अल्पसंख्यक हैं जिसके कारण अब उनपर तालिबान की कुदृष्टि कभी भी पड़ सकती है। ऐसे में उज़्बेक और तजिक, दोनों समुदाय के लोगों के लिए सबसे उपयुक्त यही होगा अगर अफ़ग़ानिस्तान में एक ऐसी लोकतान्त्रिक सरकार स्थापित हो जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की भी रक्षा करती हो। हालांकि, तालिबान राज में तो ऐसा नहीं होने वाला। ऐसे में उनके पास उपाय के रूप में एक ही रास्ता बचता है और वो है खुद के लिए एक अलग देश की स्थापना!

तालिबान विरोधी Northern Alliance की सहायता के लिए ताजिकिस्तान पंक्ति में सबसे आगे खड़ा दिखाई दे रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाके में ही Northern Alliance का वर्चस्व है और इसी क्षेत्र में उज़्बेक और तजिक लोग भी रहते हैं। यहाँ तक कि Northern Alliance में कई लोग तजिक समुदाय से संबंध रखते हैं जो अहमद मसूद और अफ़ग़ानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के वफादार माने जाते हैं।

ताजिकिस्तान तालिबान-विरोधी गुट को हथियार सप्लाई भी कर रहा है। खबरें आई थीं कि इस गुट को ताजिकिस्तान द्वारा हथियार, गोला-बारूद और अन्य सैन्य सामान की खेप भेजी गयी थी। हालांकि, ताजिकिस्तान ने इन खबरों का खंडन किया था।

अफगान सुरक्षा बलों में शामिल तजिक समुदाय के लोग भी अब तालिबान-विरोधी गुट का हाथ थामते नज़र आ रहे हैं। यह भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं कि उज़्बेकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों में अफ़ग़ानिस्तानी सेना के helicopters और प्लेन खड़े दिखाई दिये हैं। उज़्बेकिस्तान भी रूस का ऐसा साथी है जो तालिबान के उदय से परेशान है, ऐसे में यह देश में तालिबान-विरोधी गुट को सीधे-सीधे मदद प्रदान कर सकता है।

जैसा हमने बताया, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान, दोनों का अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों से एक खास जुड़ाव है। ताजिकिस्तान की अहमियत समझते हुए पिछले महीने पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी इस देश में तालिबान के पक्ष में हवा बनाने के लिए गए थे, लेकिन ताजिकिस्तान ने कुरैशी को सिर पर पाँव रखकर भागने पर मजबूर कर दिया था।

ताजिकिस्तान के दावों के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान की आबादी में तजिक समुदाय से जुड़े लोगों का हिस्सा करीब 46 प्रतिशत है।  इसका अर्थ यह है कि वह अफ़ग़ानिस्तान  का विभाजन कर 46 प्रतिशत अफगानियों को एक लोकतांत्रिक वातावरण प्रदान करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इस देश के पास रूस का पूरा समर्थन तो हासिल है ही, ऐसे में चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए ताजिकिस्तान के विरुद्ध किसी योजना को अंजाम दे पाना कोई आसान काम नहीं रहने वाला। रूस को तालिबान के उदय से खास परेशानी है और वह इस संगठन को आज भी एक आतंकवादी संगठन की नज़रों से देखता है। ऐसे में रूस ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ मिलकर अफ़ग़ानिस्तान को दो हिस्सों में विभाजन करने के लिए रणनीति को बखूबी अंजाम दे सकता है।

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