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पाकिस्तान की टेरर लैब में जन्मा तालिबान अब पाकिस्तान को ही दे रहा है झटका

तालिबानी नेता जनरल मुजीब ने इशारे-इशारे में बता दिया है कि अगर पाकिस्तान उनके आंतरिक मामलों में दखल देता है तो अगला नंबर पाकिस्तान का ही होगा!

Yashwant Singh द्वारा Yashwant Singh
28 September 2021
in समीक्षा
पाकिस्तानी तालिबान
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फ्रैंकेंस्टाइन राक्षस के बारे में आप जानते होंगे या इससे जुड़ी कई कहानियां पढ़ी होंगी। यह एक राक्षस है जो अपने ही पालने वाले को मारने के लिए दौड़ता है। अब ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने अपने लिए एक फ्रैंकेंस्टाइन राक्षस बनाया, जो इस दक्षिण एशियाई राष्ट्र को बहुत दर्द दे सकता है। हम बात कर रहे हैं तालिबान की, जो पाकिस्तान की आतंकी प्रयोगशालाओं की देन है लेकिन अब इस्लामाबाद के लिए एक गंभीर खतरा बनता जा रहा है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान को ऐसा लगने लगा था कि वो तालिबान के सहारे अफगानिस्तान में शासन करेगा। लेकिन अब तालिबान ने अपने आका पाकिस्तान को ही झटका देना शुरु कर दिया है।

पाकिस्तानी आतंकी संगठन है तालिबान

तालिबान को पाकिस्तान ने बनाया है। 1990 के दशक के दौरान पाकिस्तानी सेना और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने तालिबान को बनाने और प्रशिक्षण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब 1996 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तब तालिबान शासन को मान्यता देने वाले तीन देशों में पाकिस्तान भी एक था।

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यहां तक ​​कि जब अमेरिका तालिबान के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था, तब भी पाकिस्तान बेईमानी से अमेरिकी सहायता राशि का दुरुपयोग करता था और तालिबान को सशक्त बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करता था। पिछले बीस वर्षों से पाकिस्तान इस उम्मीद में तालिबान का पोषण कर रहा था कि जैसे ही अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकलेगा, वो अफगानिस्तान को नियंत्रित करने के लिए चरमपंथी सुन्नी समूह का उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए करेगा।

वास्तव में जैसे ही अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकला, पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत के साथ युद्धग्रस्त देश में तालिबान शासन के लिए जोर दे दिया। इसके बाद पाक ने तालिबान में भी हक्कानी नेटवर्क पर अपना दांव लगाया है। दरअसल, तालिबान में दो बड़े गुट हैं- मुल्ला बरादर गुट और हक्कानी नेटवर्क। इन दोनों में से हक्कानी को पाकिस्तान का स्पष्ट संरक्षण प्राप्त है। असल में हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के पास दारुल उलूम हक्कानिया मदरसे से अपना नाम लेता है।

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हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान का समर्थन

हक्कानी पाकिस्तानी सुरक्षा और आईएसआई के बहुत करीब है और वह पाकिस्तान के लिए विशेष बल के रूप में कार्य करता है। हक्कानी नेटवर्क को अपनी सारी सामग्री और नैतिक समर्थन पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से मिलता है। आईएसआई प्रमुख फैज हामिद ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के प्रभाव को बढ़ाने के लिए अपनी सारी ताकत हक्कानी के पीछे लगा दिया है।

हक्कानी को पाकिस्तान के स्पष्ट समर्थन ने बरादर और तालिबान के नेता हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा को बैकफुट पर ला दिया है। द स्पेक्टेटर ने तो यह भी बताया कि अखुंदज़ादा के ठिकाने का पता नहीं है, जबकि बरादर को भी हक्कानी द्वारा राजनीतिक रूप से नरबल किया जा रहा है।

पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क को मजबूत करने के लिए गुप्त रूप से मुल्ला बरादर को एक उदारवादी नेता के रूप में पेश किया है और सच्चाई यह है कि वह एक कट्टर आतंकवादी है। ऐसा करके इस्लामाबाद ने सफलतापूर्वक कट्टरपंथियों को बरादर को छोड़ने और हक्कानी के साथ आने के लिए राजी कर लिया है।

इस्लामी बिरादरी पर भारी पड़ सकता है पश्तून भाईचारा

इस्लामाबाद अफ़ग़ानिस्तान को कट्टरपंथियों और आतंक पैदा करने वाली प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करने के लिए नियंत्रित करना चाहता था। हालांकि, वह भूल गया कि अफगानिस्तान पश्तून बहुल देश की प्रेरणा से बना हुआ है। तालिबान, पाकिस्तान के साथ इस्लामी बिरादरी की तुलना में पश्तून भाईचारे को अधिक महत्वपूर्ण मानता है।

उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (NWFP) में पाकिस्तान की एक मजबूत पश्तून आबादी है जिसमें आज का ख़ैबर पख़्तूनख़्वा नामक पाकिस्तानी प्रांत भी शामिल हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) नामक एक समूह पाकिस्तान के इस हिस्से में अति सक्रिय है। टीटीपी पाकिस्तान में पश्तून क्षेत्र को नियंत्रित करता है और शरिया कानून का पालन करते हुए एक अलग पश्तून राज्य स्थापित करना चाहता है। यह प्रभावी रूप से पाकिस्तान के पश्तून-बहुल क्षेत्र को अलग करने में सक्रिय है।

और पढ़े- अफगानिस्तान छोड़िए, बिहार के भागलपुर में ही तालिबान जैसे शरिया कानून का अनुसरण हो रहा है

पाकिस्तान के लिए समस्या यह है कि जहां वो अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करता है, वहीं टीटीपी पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का जुनून रखता है। वहीं, अफगान-तालिबान वैचारिक समानता के कारण टीटीपी का समर्थन करते है।

अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ता पश्तून राष्ट्रवाद

तालिबान डूरंड रेखा को मान्यता नहीं देता है और इसे लेकर इस्लामाबाद और काबुल के बीच काफी लंबे समय से सीमा विवाद है। 1950 और फिर 1970 के दशक के दौरान, तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति मोहम्मद दाऊद खान ने एक “पश्तूनिस्तान” रणनीति अपनाई, जिसके तहत वह एक नया राज्य बनाने के लिए अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बिखरे हुए पश्तून क्षेत्रों को जोड़ना चाहते थे, जिसमें अफगानिस्तान और पश्तून बेल्ट दोनों को शामिल करने की बात थी।

पाकिस्तान में तालिबान समर्थक मौलाना ने पाकिस्तान में भी इस्लामिक क्रांति लाने की बात कही है। मौलाना अब्दुल अजीज के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान राज, अल्लाह की मर्जी है और वह पाकिस्तान में भी ऐसी क्रांति के प्रयासरत है। उपद्रवी ने दो टूक कहा, “इसका (तालिबान का पुनरुत्थान) निश्चित रूप से पाकिस्तान में इस्लामी शासन स्थापित करने के हमारे संघर्ष पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा, लेकिन हमारी सफलता ईश्वर के हाथों में है।”

कठपुतली हैं इमरान खान

पाकिस्तान द्वारा खड़ा किया गया आतंकी संगठन तालिबान अब पाकिस्तान को अफगानिस्तान  के आंतरिक मामलों से दूर रहने की सलाह देता दिख रहा है। पिछले दिनों तालिबान नेता जनरल मुबीन ने पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को निशाने पर लिया था। तालिबानी नेता ने कहा, “इमरान खान को पाकिस्तान के लोगों ने नहीं चुना है। पाकिस्तान में इमरान खान को लोग कठपुतली कहते हैं।“ जनरल मुबीन ने पाकिस्तान को धमकी देते हुए कहा है कि हम ये हक किसी को नहीं देते कि कोई हमारे शासन में हस्तक्षेप करे और अगर कोई ऐसा करता है तो हम भी हस्तक्षेप का हक रखते हैं। मुबीन ने इमरान खान को अफगानिस्तान के मामलों से दूर रहने की सलाह दी है।

और पढ़े- ‘इमरान खान कठपुतली हैं, अफगानिस्तान के मामलों से दूर रहें’, तालिबान ने पाकिस्तान पर किया हमला

पाकिस्तान न घर का रहा न घाट का

यह बात तब कही गई है जब इमरान खान अफगानिस्तान को उदारवादिता सिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में इमरान खान ने कहा था कि अफगानिस्तान में “लोकतांत्रिक”, “गणराज्य” बनाने की आवश्यकता है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अफगानिस्तान में गृहयुद्ध छिड़ने की चेतावनी भी दी है। साथ ही उन्होंने तालिबान द्वारा लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने को गैर-इस्लामिक बताया है। इससे इतर तालिबान ने पाकिस्तान को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है।

तालिबानी नेता जनरल मुजीब ने इशारे-इशारे में बता दिया है कि अगर पाकिस्तान उनके आंतरिक मामलों में दखल देता है तो अगला नंबर पाकिस्तान का ही होगा। मौजूदा मसय में पाकिस्तान की स्थिति ऐसी हो गई है कि उसके द्वारा बनाया गया संगठन ही अब उसे भाव नहीं दे रहा है। वहीं, पाकिस्तानी पीएम पर तालिबान की सख्त टिप्पणी से यह स्पष्ट होता है कि आतंक को पालने वाला पाकिस्तान अब कुछ भी हरकत करता है तो उसके खुद के आतंकी संगठन ही उसकी खटिया खड़ी कर देंगे।

 

Tags: अफ़ग़ानिस्तानतालिबानपाकिस्तान
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