सम्राट मिहिरभोज की विरासत पर जाट-राजपूत की लड़ाई केवल हिंदुओं को कमजोर करेगी

भोज सनातन संस्कृति को बचाने के लिए हुए अनवरत संघर्ष का अद्वितीय उदाहरण हैं!

सम्राट मिहिर भोज का फोटो

उत्तर प्रदेश चुनाव के पूर्व गुर्जर-राजपूत विवाद गहरा गया है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के दादरी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रतापी हिंदू सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण करने वाले हैं। इसके बाद सम्राट मिहिर भोज की जाति  को लेकर एक विवाद शुरू हो गया जिसके कारण अब राजपूत और गुर्जर समाज एक दूसरे के विरुद्ध खड़े हो गए हैं। मीडिया ने इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य होने की चर्चा शुरू कर दी और यह बात उठ गई थी कि योगी आदित्यनाथ ने यह कार्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक शक्तिशाली जाति ‛गुर्जर’ का वोट पाने के लिए किया है। इसके बाद राजपूतों ने भाजपा का विरोध शुरू कर दिया और सोशल मीडिया पर #Rajputs_Boycott_BJP ट्रेंड करने लगा।

विवादित रहा है की सम्राट मिहिर भोज की जाति का विषय

यह लंबे समय से सम्राट मिहिर भोज की जाति विवाद का विषय रहा है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर थे अथवा राजपूत। इसलिए क्योंकि सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार वंश से संबंधित थे। प्रतिहार वंश सातवीं शताब्दी ईस्वीं में हर्षवर्धन के शासन की समाप्ति के बाद उत्तर भारत की एक प्रमुख राजनैतिक शक्ति बनकर सामने आया। वर्धन साम्राज्य के पतन के बाद ही भारत में राजपूत युग शुरू हुआ, इस काल को सामंतीयुग या पूर्व मध्यकाल भी कहते हैं।

पूर्व मध्यकालीन मान्यताओं के अनुसार चौहान, परमार, प्रतिहार और सोलंकी वंश अग्नि से जन्में हैं और चारों वंश क्षत्रिय अथवा राजपूत हैं। वहीं एक अन्य मान्यता कहती है कि प्रतिहार वंश इसलिए राजपूत जाति से जुड़ा है क्योंकि प्रतिहार वंश के शासक श्री राम के सेवक या प्रतिहार, लक्ष्मण के वंशज हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ द्वारपाल होता है। लक्ष्मण, श्रीराम के द्वारपाल थे, और उनके वंशज प्रतिहार कहलाए।

 

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भाग 3- मोपला नरसंहार: 1921 कोई अकेली घटना नहीं थी, 1836 से 1921 के बीच 50 से अधिक दंगे हुए थे

भाग 4- कैसे ओट्टोमन साम्राज्य के विध्वंस ने खिलाफत आंदोलन की नींव रखी जिसके कारण मोपला हिंदू विरोधी नरसंहार हुआ

 

गुर्जर और राजपूत दोनों जातियां मिहिर भोज को अपनी जाति से संबंधित बताती हैं लेकिन वास्तव में सम्राट भोज को किसी एक जाति में बांधना उनका अपमान है। मिहिर भोज एक सच्चे हिंदू सम्राट है जो असांस्कृतिक इस्लामिक आक्रांताओं के विरुद्ध भारतीय संस्कृति की ढाल बनकर खड़े रहे।

आक्रांताओं के विरुद्ध ढाल बन कर खड़े रहे सम्राट मिहिर भोज

क्या आपने कभी विचार किया है कि जब सिंध पर मुस्लिम आक्रांताओं ने 712 ई० विजय प्राप्त कर ली थी और मोहम्मद बिन कासिम ने हिन्दूशाही शासक के राज्य में पाशविकता का खुला प्रदर्शन शुरू किया तो फिर इतने उत्पात और आतंक के बाद भी मुसलमानों के कदम भारत क्षेत्रों तक ऐसे नहीं पहुंचे। क्यों कासिम के आक्रमण के बाद दूसरा बड़ा खबर मोहम्मद गजनबी के शासन में हुआ।

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इसका कारण मिहिर भोज जैसे प्रतापी शासक थे जिन्होंने इस झंझावात को अपनी भुजाओं में बांध लिया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था। मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया।

अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिला-उत-तारिका 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिर भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है। 

लेखक बिलादुरी कहता हैं कि अल-हाकिम इब्न-अवान्हा ( अरब गवर्नर ) के समय ‘अल हिन्द’ में मुसलमानों को ऐसा कोई स्थान ढूंढे से भी नहीं मिलता था, जहा भागकर वो अपनी जान बचा ले। यही कारण है कि उसने अल हिन्द की सीमा के बाहर झील के दूसरी तरफ मुसलमानों की पनाहगाह के रूप में अल मह्फूज़ा नामक शहर बसाया, जहाँ मुसलमान सुरक्षित रह सकें।

मिहिर भोज ने कई बार सिंध को मुसलमानों के शासन से मुक्त कराने का प्रयास किया किंतु जब भी प्रतिहार सेना सिंध में प्रवेश करती मुसलमान सिंध के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर को तोड़ने की धमकी देने लगते जिसके बाद आस्थावान हिंदुओं को पुनः वापस लौटना पड़ता था।

इसी बीच सीस्तान के अरब शासक याकूब बिन लेथ ने शाही शासको से 870 ई में काबुल जीत लिया और भारत की सुरक्षा के लिए एक नया संकट खड़ा हो गया। अतः इसके ज़वाब में कन्नौज के प्रतिहार शासक मिहिर भोज ने पंजाब के अलखान गुर्जर तथा उदभांडपुर के शाही शासक लल्लिया के साथ गठबंधन कर लिया| इतिहासकार हरमट ने तोची घाटी अभिलेख के आधार पर निष्कर्ष निकला है कि मिहिर भोज ने पश्चिम की तरफ अपने राज्य का विस्तार किया तथा लल्लिया शाही (875-90 ई.) को काबुल और कंधार प्राप्त करने में उसकी मदद की तथा अरबों को खदेड़ दिया।

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आदिवराह की उपाधि धारण की थी सम्राट मिहिर भोज ने 

मिहिर भोज ने स्वयं आदिवराह की उपाधि धारण की थी। आदिवराह भगवान विष्णु के तीसरे अवतार थे। भोज के सिक्कों पर भी आदिवराह का ही चित्र बना होता था। किंतु भोज स्वयं परम शिव भक्त थे। समकालीन लेखक बताते हैं कि भोज की राजधानी कन्नौज में 7 दुर्ग और 10,000 से अधिक मंदिर थे। व्यापार केवल सोने और चांदी के सिक्कों में होता था जो बताता है कि भोज कालीन अर्थव्यवस्था कितनी उन्नत थी।  भोज में कई मंदिरों का निर्माण कराया जिसमें ‘सरस्वती मंदिर’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उनके अन्य निर्माण कार्य ‘केदारेश्वर’, ‘रामेश्वर’, ‘सोमनाथ सुडार’ आदि मंदिर हैं।

मिहिर भोज भारतीय इतिहास का गौरव हैं। भोज सनातन संस्कृति को बचाने के लिए हुए अनवरत संघर्ष का अद्वितीय उदाहरण हैं। मिहिर भोज का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना बड़ा है कि गुर्जर अथवा राजपूत समाज द्वारा उन्हें केवल अपनी जाति से जोड़ना, स्वयं मिहिर भोज की महानता के साथ अन्याय है।

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