2022 में होने वाला पंजाब विधानसभा चुनाव अन्य चुनावों की अपेक्षा देश की राजनीति के लिए सर्वाधिक दिलचस्प हो गया है। चार पार्टियों वाले पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य में अकेले अपने दम पर भाजपा पहली बार चुनाव लड़ने वाली है, जो संभवत उसके लिए कठिन है किन्तु इससे पार्टी के एक अभूतपूर्व प्रदर्शन की ओर बढ़ सकती है। ऐसे में पार्टी लगातार अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ज़मीनी स्तर पर काम कर रही है। हालांकि, किसान आंदोलन के नाम पर पंजाब में आए दिन बीजेपी नेताओं पर हमले की बातें सामने आतीं हैं, किंतु इसके बावजूद पार्टी धीरे-धीरे मजबूती पाने के प्रयास में है। पिछले एक महीने में अकाली दल से आए नेताओं को पार्टी में बड़ी जगहें देने से लेकर किसान आंदोलन की हवा निकालने के लिए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा लगातार जनता के बीच मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारियां दे रहे हैं। ऐसे में जलियांवाला के नवीनीकरण का मुद्दा भी बीजेपी के लिए सकारात्मक हो सकता है। TFI ने पहले भी कहा है कि इस बार पंजाब में जीत बीजेपी की होगी और यह एक बार फिर से कहने की आवश्यकता हैं।
शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद से पंजाब की राजनीति में भाजपा ने अपनी सक्रियता को विस्तार देना प्रारंभ कर दिया था, किंतु अब राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए पार्टी राज्य में चुनावी रैलियों के आयोजन से लेकर बूथ लेवल तक की स्थिति को मजबूत करने में जुट गई है। राजनीतिक पारिदृश्य से इतर हटकर भी देखें तो पंजाब में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद राज्य के विकास के लिए मोदी सरकार लगातार काम करती रही है। ऐतिहासिक जलियांवाला बाग का नवीनीकरण इसका प्रतीक भी है। इस मुद्दे पर भले ही कांग्रेस में राहुल गांधी एवं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच मतभेद हों, किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से ये बीजेपी के लिए सकारात्मक हो सकता है, क्योंकि जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान जिन भी लोगों की जानें गईं थीं, पीएम मोदी उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
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एक तरफ जहां भाजपा ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के सकारात्मक संकेत दे रही है, तो दूसरी ओर किसान आंदोलन के कारण अपने संभावित नुकसान को देखते हुए पार्टी उस मुद्दे पर ही ध्यान दे रही है। लुधियाना में किसान आंदोलन कर रहे लोगों के बीच पहुंचे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने उद्योगों को नई राह दिखाने की पहल करते हुए कहा, “उद्योग से संबंधित मुद्दों का समाधान करेंगे आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में उद्योग से जुड़े मुद्दों को शामिल किया जाएगा। राज्य सरकार ने टैक्स लगा दिया है और व्यापारियों के जीवन को और कठिन बनाया है जिसका निवारण होगा।”
वहीं भाजपा कांग्रेस की आंतरिक लड़ाई पर भी हमलावर है। कैप्टन अमरिंदर सिंह एवं नवजोत सिंह सिद्धू के बीच टकराव के संबंध में उन्होंने कहा, “यह राज्य और एवं जनता के लिए अफसोस जनक है, क्योंकि व्यक्तिगत मुद्दों और नेताओं के अहंकार के कारण आम जनता पीड़ित हैं।” वहीं किसान आंदोलन को लेकर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर भी कैप्टन पर आरोप लगाते हुए ये स्पष्ट कर चुके हैं कि ये कांग्रेस का एक चुनावी स्टंट है। इसके इतर पार्टी अकाली दल के अपने समर्थक नेताओं को भी पार्टी में शामिल करने में सफल हुई है।
ऐसे कई नेता अकाली दल में भी हैं, जो कि बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं। खास बात ये है कि बीजेपी उन्हें लुभाने में सफल रही है। यही कारण है कि अगस्त में भी कई बड़े नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं, जिनमें अकाली दल की महिला विंग की पूर्व राष्ट्रीय महासचिव अमनजोत कौर रामूवालिया और गुरप्रीत सिंह शाहपुर, चांद सिंह चट्ठा, बलजिंदर सिंह डकोहा और प्रीतम सिंह यहां पार्टी मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ के नाम प्रमुख हैं। ऐसे में इन सभी की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता है, एवं ये बात मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी जानते हैं, क्योंकि उनके लिए दलितों मुद्दा परेशानी का सबब बन गया है।
पंजाब में दलित समाज के लोगों की संख्या करीब 32 प्रतिशत है, जिसके चलते बीजेपी ने राज्य में पहला दलित सिख मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर चुकी है। यही कारण है कि अकाली दल ने भी बसपा के साथ गठबंधन कर राज्य में दो दलित उप मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है। दलितों के मुद्दे पर कैप्टन को चुनौती दे रही बीजेपी के कारण ही कैप्टन का पंजाब कांग्रेस से टकराव बढ़ रहा है। निजी लड़ाई से इतर कैप्टन राजनीतिक लाभ के लिए भी सिद्धू को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाना चाहते थे, क्योंकि वो बीजेपी एवं अकालियों की तरह एक दलित को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे, किन्तु ये हो न सका।
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TFI आपको पहले ही बता चुका है कि कैसे बीजेपी राज्य के विधानसभा चुनाव में अपर क्लास पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस एवं अकाली दल का वोट हासिल कर सकती है। इसके अलावा पार्टी को आम आदमी पार्टी का भी दलितों का एक बड़ा वोट हासिल हो सकता है, राष्ट्रवादी माने जाने वाले सिखों का वोट जो पहले कैप्टन को जाता था, वो भी कांग्रेस में कैप्टन के अपमान के बाद कांग्रेस से छिटक कर बीत के पास आ सकता है। वहीं हिन्दुओं के प्रति नर्म रुख रखने वाली पार्टी भाजपा को इस समुदाय का भी एक मुश्त समर्थन मिल सकता है जिसके दम पर पार्टी यहां विधानसभा चुनाव में बिखरते विपक्ष के कारण बहुमत प्राप्त कर सकती है। ये गणित भले ही मुश्किल प्रतीत होता हो, किन्तु भाजपा इसके लिए संभवतः कमर कस चुकी है, क्योंकि केंद्रीय आलाकमान लगातार पंजाब बीजेपी प्रदेश ईकाई को निर्देशित कर रहा है।
ऐसे में बीजेपी की सक्रियता एवं बिखरते विपक्ष के आधार पर TFI द्वारा किया भाजपा की जीत का दावा अधिक मजबूत हो जाता है। ये कहा जा सकता है कि भाजपा राज्य में भले ही सबसे छोटी पार्टी प्रतीत होती हो किन्तु पार्टी सबसे लंबा दांव मार सकती है।