वर्तमान समय में अमेजॉन ऑनलाइन शॉपिंग के मामले में भारत में सबसे बड़ा नाम बन गया है परंतु विवादों के कारण भारत में इसकी मुश्किलें बढ़ती जा रही है। हालात ये है कि अगर अमेजॉन भारत में टिके रहना चाहता है तो उसे या तो भारत के नियमों का पालन करना होगा या धीरे-धीरे भारतीय बाजार से निकलना पड़ सकता है।
अमेजॉन ने भारत में अपने लगातार विस्तृत हो रहे व्यापार को देखते हुए पिछले वर्ष अक्टूबर में अमेजॉन ने यह घोषणा की थी कि वह अगले 5 वर्षों में भारत में अपने व्यापार को इतना फैला लेगा कि उसकी कुल वार्षिक वृद्धि का 20% भारतीय बाजार से ही आएगा। वहीं, अप्रैल माह में अमेजॉन ने दावा किया था कि उसके प्लेटफार्म से अब तक 3 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के भारतीय उत्पाद विदेशों में बेचे जा चुके हैं जबकि कंपनी के दावे के अनुसार उसने अब तक भारत में 10 लाख से अधिक रोजगार पैदा किए हैं।
भले ही अमेजॉन का व्यापार दिनों दिन फैल रहा है लेकिन यह भी सत्य है कि भारतीय जांच एजेंसियों से लेकर सरकार तक तथा कोर्ट से लेकर विपक्ष तक सभी लगातार अमेजॉन के ऊपर हमलावर हैं। अमेजॉन द्वारा लगातार भारतीय कानूनों का उल्लंघन करने के मामले सामने आ रहे हैं। इसे देखते हुए यह लगता है कि यदि अमेजॉन ने जल्द ही भारतीय कानूनों का सम्मान करना नहीं सीखा तो उसे भारतीय बाजार से हाथ धोना पड़ सकता है। ऐसा अनुमान लगाने के कई कोस कारण भी हैं।
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सबसे प्रमुख कारण यह है कि हाल में ही अमेजॉन के ऊपर अपने लाभ के लिए अधिकारियों को घूस देने का आरोप लगा है। एक ओर सरकार ने इस मामले में पहले ही जांच के आदेश दे दिए हैं वहीं, दूसरी ओर भारत में कार्यरत अर्थशास्त्रियों के थिंक टैंक तथा विपक्ष ने भी सरकार से इस मामले की तत्काल जांच की मांग की है।
वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अमेजॉन के व्यवहार के कारण सरकार को अमेरिकी कंपनी के प्रति सचेत किया है। संघ से संबंधित पत्रिका पांचजन्य ने अमेजॉन को ईस्ट इंडिया कंपनी का दूसरा स्वरूप कहा है।
ऐसा नहीं है कि सरकार अमेज़न की नीतियों के प्रति सचेत नहीं है। Amazon पर अक्सर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह देश के छोटे रिटेलर्स के हितों के खिलाफ जाकर भारी डिस्काउंट पर चीजों को ग्राहकों को प्रदान करती है, जिसके कारण समय-समय पर Confederation of All India Traders यानि CAIT भी Amazon पर बैन लगाने की मांग करता आया है।
लेकिन इस संदर्भ में को सबूत तब मिलने शुरू हुए जब Reuters के खुलासे के बाद Amazon की सभी भ्रामक नीतियों की पोल खुल गई। समाचार पत्र ने अपने खुलासे में यह बात बताई कि अमेजॉन ने अपनी वेबसाइट के जरिए केवल मुट्ठीभर थोक विक्रेताओं को ही लाभ पहुंचाया है। रिपोर्ट के अनुसार कुल सामान का एक तिहाई हिस्सा सिर्फ चुनिन्दा 33 विक्रेताओं द्वारा ही बेचा गया था। बाद में कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया ने भी जांच में आरोप को सही पाया।
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हालांकि, यह बात 2020 में एक इवैंट में बोलते हुए पीयूष गोयल ने पहले ही बता दी थी। उन्होंने कहा था “Amazon ने बेशक करोड़ों डॉलर्स का निवेश किया हो, लेकिन हर साल वे करोड़ों डॉलर्स का घाटा उठा रहे हैं। भारत में निवेश कर वे भारत पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं।” सरकार को उसी समय इस बात का अंदेशा था कि अमेजॉन व्यापारिक नियमों का उल्लंघन कर रहा है, किंतु सरकार सही समय और पर्याप्त सबूत का इंतजार कर रही थी जिससे अमेजॉन को सरकार के विरुद्ध माहौल बनाने का मौका न मिल सके। यदि सरकार अपनी ओर से पहले ही अमेज़न पर कार्रवाई शुरु कर देती तो इसे मुद्दा बनाकर दुष्प्रचार अभियान शुरू किया जा सकता था कि भारत में निवेश के लिए अच्छा माहौल नहीं है और सरकार उद्यम विरोधी है।
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एक और अमेजॉन की साख दिनों दिन घट रही है, दूसरी ओर उसे रिलायंस ग्रुप जैसी बड़ी कंपनी से कांटे की टक्कर मिलने वाली है। रिलायंस ने फ्यूचर ग्रुप के अधिग्रहण का फैसला किया तो अमेज़न इसे लेकर खासा चिंतित हो गया। अमेजॉन ने रिलायंस फ्यूचर ग्रुप के समझौते को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी। हालांकि, ट्रिब्यूनल कोर्ट ने फ्यूचर ग्रुप के पक्ष में आदेश देते हुए उसे अपने सभी शेयरधारकों की मीटिंग बुलाने के बाद अपने सभी अधिकार किसी भी कंपनी को बेचने का अधिकार दे दिया। इसके बाद यह तय हो गया कि जल्द ही रिलायंस फ्यूचर ग्रुप का अधिग्रहण कर लेगा।
एक ओर तो नियमों का उल्लंघन करने के कारण सरकार से लेकर ट्रेड बॉडिज तक सभी अमेजॉन के विरुद्ध हो गए हैं। वहीं, दूसरी ओर रिलायंस जैसी बड़ी कंपनी उसे टक्कर देने के लिए मैदान में आ रही है। ऐसे में अमेजॉन के पास विकल्प बहुत सीमित हो चुके हैं।