भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे अच्छे दौर में है यह बात लगभग हर उस बड़ी संस्था द्वारा बताई जा रही है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अपनी रिपोर्ट समय-समय पर छापती रहती है। इन संस्थाओं में Moody’s (मूडीज) भी एक है जिसने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के कारण भारतीय बैंकिंग सेक्टर भी अगले कुछ वर्षों में शानदार प्रदर्शन करने वाला है। मूडीज की रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले कुछ वर्षों में बैंक क्रेडिट ग्रोथ 10 से 13% की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मूडीज की रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंकों के लिए कार्य स्थिति अनुकूल है, इस कारण परिसंपत्तियों की गुणवत्ता, जिसे एसेट क्वालिटी भी कहते हैं, उसमें भी स्थायित्व देखने को मिलेगा।
भारतीय बैंकिंग सेक्टर पर मूडीज द्वारा निकाली गई रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अगले 12 से 18 महीने में सुधार के दौर में रहने वाली है। रिपोर्ट कहती है कि वित्तीय वर्ष 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था 9.3% की जीडीपी ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ेगी जबकि वर्ष 2023 में जीडीपी ग्रोथ रेट 7.9% रहने वाली है। भारतीय बैंकों के क्रेडिट में वृद्धि के कारण रिपोर्ट ने भारतीय बैंकिंग सेक्टर के आउटलुक को नकारात्मक की श्रेणी से ऊपर उठा कर स्थाई प्रदर्शन करने वाले बैंकिंग सेक्टर की श्रेणी में डाल दिया है।
बैंक के क्रेडिट में वृद्धि से तात्पर्य है कि बैंकों में धन बढ़ने वाला है। RBI ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि नॉन फूड बैंक क्रेडिट में वृद्धि पिछले वर्ष 5.5% थी जो इस वर्ष बढ़कर 6.7% हो गई है। भारतीय बैंक दो प्रकार के लोन देते हैं, जिनपर उन्हें क्रेडिट प्राप्त होता है। प्रथम प्रकार के लोन खाद्यान्न की खरीद से संबंधित होते हैं जो फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को दिए जाते हैं। वहीं, दूसरी श्रेणी में अन्य सभी प्रकार के लोन रखे जाते हैं, जैसे कार लोन, बिजनस लोन आदि। तो नॉन फूड क्रेडिट के वृद्धि का मतलब हुआ कि व्यापार के लिए अथवा घर खरीदने के लिए जैसे अन्य लोन देने में वृद्धि हुई है और उनके रिटर्न भी लगातार मिल रहे हैं। यह बताता है कि आर्थिक गतिविधियां बहुत अच्छे से चल रही हैं।
मूडीज को वर्तमान सरकार के आलोचक के रूप में देखा जाता है, ऐसे में उसकी रिपोर्ट में भारतीय बैंकिंग सेक्टर के सकारात्मक प्रदर्शन की बात होना अर्थव्यवस्था के लिए सच में बहुत अच्छे संकेत हैं। रिपोर्ट बताती है कि देश में आर्थिक गतिविधियां कोरोना काल के दौरान भले ही स्थगित रही थीं, किंतु उसका असर अर्थव्यवस्था पर व्यापक रूप से नहीं पड़ा है। कोरोनाकाल के दौरान आर्थिक गतिविधियों के ठप पड़ जाने के कारण रिटेल लोन की गुणवत्ता में गिरावट आई थी, लेकिन बड़े पैमाने पर रोजगार संकट पैदा न होने से यह गिरावट किसी गंभीर समस्या में नहीं बदल पाई। इसे आसान भाषा में आगे समझते हैं।
क्या होता है रिटेल लोन
रिटेल लोन किसी संस्था अथवा किसी व्यक्ति को दिया गया लोन होता है जिसका उपयोग करके वह नई संपत्ति, नए उपकरण अथवा अन्य कुछ खरीदता है या अपने व्यापार का विस्तार करता है। बैंक से बड़ी संख्या में व्यक्तिगत अथवा संस्थाओं को लोन प्रदान कर दिए जाते हैं। इन लोन पर बैंक को रिटर्न मिलता है, जैसे बाइक खरीदने पर लिए गए लोन पर हम जो EMI भरते हैं, वह रिटर्न है। किन्तु जब संपूर्ण आर्थिक ढांचे में आए बदलावों के परिणामस्वरूप बैंकों को, अपने द्वारा प्रदान किए गए अधिकांश लोन पर रिटर्न नहीं मिलता तो इसे ही रिटेल लोन की गुणवत्ता में गिरावट कहा जाता है।
कोरोनाकाल में बैंकों के रिटर्न में कमी आई थी, तब कई संस्थाओं ने अनुमान लगाया था कि रिटेल लोन की गुणवत्ता में कमी बड़ी समस्या में बदल सकती है और पूरे बैंकिंग सेक्टर पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, जैसे ही आर्थिक गतिविधियां दोबारा शुरू हुई बैंकों को लोन पर रिटर्न वापस मिलने लगा। साथ ही कोरोना काल के दौरान लोगों की नौकरियां बड़े पैमाने पर नहीं गई, इससे भी आम लोग लोन पर रिटर्न भरने में सक्षम रहे।
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एसेट गुणवत्ता में हुआ है सुधार
मूडीज की रिपोर्ट बताती है कि बैंकों की एसेट गुणवत्ता भी सुधरी है। बैंक एसेट उन लोन को कहते हैं जिन पर बैंक को रिटर्न मिलता है। बैंक जब किसी व्यक्ति अथवा संस्था को लोन देती है तो उस पर ब्याज भी लगाती है। बैंक को मिलने वाले रिटर्न में मूलधन और ब्याज से प्राप्त धन सम्मिलित होता है। ब्याज का धन बैंक की कमाई है। यह कमाई बैंकों द्वारा प्रदत्त लोन कारण होती है अतः लोन को एसेट या परिसंपत्ति कहते हैं।
ऐसेट गुणवत्ता में सुधार का मतलब हुआ कि बैंक जो लोन दे रहा है उस पर उसे रिटर्न लगातार मिल रहा है। आपने NPA के बारे में सुना होगा। NPA अर्थात नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट। ऐसे लोन जिन पर रिटर्न नहीं मिल रहा है वह एनपीए होते हैं।
सरकार ने NPA की समस्या को सुलझाने के लिए IBC एक्ट बनाया है। कोई फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन या बैंक जब किसी संस्था को लोन देता है और उस पर रिटर्न नहीं मिलता तो वह इसकी शिकायत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में करता है। कंपनी स्वयं भी रिटर्न न भर पाने की स्थिति में अपनी समस्या ट्रिब्यूनल के सामने रख सकती है।
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ट्रिब्यूनल को 14 दिन के भीतर आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करना होता है। आवेदन स्वीकार करने के बाद अधिकतम 180 दिनों में अंतरिम निवारण हेतु अंतरिम समाधान पेशेवर (Interim Resolution Profesionals) तय करने होते हैं जो समस्या का समाधान खोजते हैं। जब तक IRP कार्य करता है, कंपनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स निलंबित रहता है। यदि IRP समस्या को सुलझा नहीं पाता तो कंपनी की संपत्तियों को बेचकर बैंक को पैसे वापस चुकाए जाते हैं और शेष राशि शेयरधारकों में बांट दी जाती है। IBC ने बैंकिंग सेक्टर को उसकी सबसे बड़ी समस्या से छुटकारा दिला दिया है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा पिछले 7 वर्षों में लागू किए गए सुधारों का सकारात्मक प्रभाव अब परिलक्षित हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की सूझबूझ के बल पर सरकार ने कोरोना के दौर में भी अर्थव्यवस्था को पटरी से उतरने नहीं दिया। जैसे ही वैक्सीनेशन आगे बढ़ा है और महामारी का प्रभाव नियंत्रित हुआ है, अर्थव्यवस्था सुधरने लगी है