हिन्दू विरोधी विज्ञापनों का सीधा नाता मीडिया और Arts संस्थानों के हिंदू विरोधी प्रोफेसरों से है

ऐसे लिबरल संस्थान Creative कम और Activist अधिक पैदा करते हैं!

हिन्दू विरोधी विज्ञापन

FABIndia, CEAT, Nykaa, तनिष्क, हिंदुस्तान यूनिलीवर, मान्यवर इत्यादि इन नामों से तो आप परिचित ही होंगे। ये वही कंपनियाँ है जिन्होंने पिछले कुछ समय से मार्केटिंग के लिए हिन्दू विरोध को जरिया बना लिया है। क्या आपने कभी सोचा है कि ये कंपनियां ऐसी स्ट्रेटजी बनाती कैसे हैं? उन्हें इस तरह के हिन्दू विरोधी विज्ञापन का आइडिया कौन देता है? या फिर इस तरह से हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ करने के लिए इन कंपनियों को कंटेन्ट कौन तैयार करके देता है?

एक के बाद एक हिन्दू विरोधी विज्ञापनों के पीछे कोई और नहीं JNU और IIMC जैसे संस्थानों के वामपंथी सोच वाले प्रोफेसर जिम्मेदार हैं। उनका ही विष छात्रों तक पहुंचता है तथा वहीं से मिलता है इन कंपनियों को Ad Strategist. इस बात को TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने भी ट्वीट कर बताया।

पिछले कुछ वर्षों में कई बड़ी कंपनियों ने एक के बाद एक हिन्दू विरोधी विज्ञापन बनाए हैं। इस तरह से लगातार सामने आ रहे हिन्दू विरोधी विज्ञापनों से देश की जनता सोचने पर मजबूर हो चुकी है कि आखिर सनातन धर्म को ही क्यों निशाना बनाया जाता है। अगर परत दर परत मामले की तह में जायें तो एक बात स्पष्ट हो जाएगी कि समस्या देश के उन मीडिया संस्थानों तथा आर्ट संस्थानों के वामपंथी प्रोफेसर हैं, जहां से Advertising Agencies हायरिंग करती हैं।

IIMC, JNU, TISS जैसे कई संस्थान हैं जहां से ये विज्ञापन एजेंसियां भर्ती करती हैं। इन संस्थानों में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों की विचारधारा किसी से छुपी नहीं है। इन्हीं प्रोफेसरों का फैलाया हुआ भारत विरोधी विष छात्रों तक पहुंचता है और फिर वहीं से विज्ञापन एजेंसियां Campaign designer, Creative Executive Creative Director जैसे पदों पर भर्ती करती हैं। जब इन एजेंसियों को Hindustan Unilever, Tanishq, CEAT जैसी कंपनियों के विज्ञापन का कांट्रैक्ट मिलता है तब इन एजेंसियों के लिए हिन्दू विरोधी प्रोफेसरों से पढ़कर आए छात्र ही विज्ञापन की रूप रेखा तैयार करते हैं और फिर विज्ञापन अंतिम स्वरूप देते हैं।

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उदाहरण के लिए Mumbai स्थित Lowe Lintas एक विज्ञापन एजेंसी है जो कई कंपनियों के लिए ads बनाती है। इसी कंपनी ने Hindustan Unilever के सर्फ एक्सेल के लिए हिन्दू विरोधी होली वाला विज्ञापन बनाया था। अब अगर इस कंपनी के भारतीय ब्रांच पर नजर डालें तो ऊपर से लेकर नीचे तक कई अधिकारी ऐसे ही संस्थानों से पढ़े हुए मिलेंगे जहां वामपंथी प्रोफेसरों का ही बोलबाला है। इसी तरह Ogilvy And Mathers भी एक Advertising Agency है।

JNU, TISS, IIMC, MUDRA इत्यादि देश के कुछ प्रमुख कला संस्थान हैं। इन संस्थाओं से प्रचारित हिंदू विरोधी विचारों को किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं है।

इन संस्थानों से पढ़ने के बाद सामाजिक विज्ञान के विचारों से लैस होकर जब क्रांतिकारी apprentice यानी शिक्षु वास्तविक दुनिया में कदम रखते हैं, तो उनका एक्टिविजम Fresh Converts से भी अधिक होता है। सामूहिक रूप से, ऐसे लिबरल संस्थान Creative कम और Activist अधिक पैदा करते हैं।

उदारवादी संस्थानों का उद्देश्य मानव मस्तिष्क के क्षितिज को व्यापक बनाना था ताकि पक्षपात से रहित हो कर मानवीय समस्याओं का निदान हो सके। हालांकि, होता ठीक उलट है। छात्रों को संकीर्ण विचारधारा में बांध दिया जाता है, जिससे वे अपने ही देश, मिट्टी और संस्कृति को भूलकर उस विचारधारा को ही परमपूज्य मानने लगता है जिसे उसके प्रोफेसर ने पढ़ाया है।

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परिणामस्वरूप हमें तनिष्क के एकत्वम अभियान जैसे विज्ञापन देखने को मिलते हैं जिसका वास्तविकता दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। ऐसा नहीं है कि आजकल इंटरनेट के क्षेत्र में हिंदू अति सक्रिय हैं तभी ऐसे विज्ञापन पर रिएक्शन देते हैं। यहाँ गलती उन Woke विज्ञापन एजेंसियों में बैठे लोगों की है जो वामपंथी संस्थानों के प्रोफेसरों की विचारधारा में उलझ कर वास्तविकता को नहीं जान सके। लव जिहाद पिछले कुछ सालों से एक संवेदनशील और नाजुक मुद्दा रहा है। तनिष्क के विज्ञापन अभियान के कुछ दिनों बाद ही निकिता तोमर हत्या का मामला सामने आया था। इससे लव जिहाद की सच्चाई और अधिक स्पष्ट हो गयी थी। बावजूद इसके विज्ञापन बनाने वाली विज्ञापन एजेंसियों ने अपना काम जारी रखा है। पिछले कुछ दिनों में ऐसे विज्ञापनों की भरमार देखी गई है, जिन्होंने सनातन धर्म को बदनाम करने का प्रायस किया है। चाहे नवरात्रि के अवसर पर Nykaa जैसे ई कॉमर्स साइट की जानबूझकर कॉन्डम को बेचने की स्ट्रेटजी हो या CEAT टायर्स का उपदेशात्मक विज्ञापन, इन सभी ने हिंदुओं की धार्मिक मान्यताओं को चोट पहुँचाई हैं। इसका असर यह हुआ है कि इन कंपनियों को करोड़ो का नुकसान सहना पड़ा है। तनिष्क ब्रांड को चलाने वाली मूल कंपनी टाइटनको Stocks में भी उस समय काफी नुकसान हुआ था।

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अगर इन बड़ी कंपनियों को नुकसान से बचना है और विज्ञापन की दुनिया से हिन्दू विरोधी गतिविधियों को हटाना है तो बड़े-बड़े गोल-गोल चश्में और पैरों में चप्पल पहन झोला लटकाए इन हिंदू विरोधी प्रोफेसरों को समीकरण से निकालना होगा जिसके बाद समस्या हमेशा के लिए हल हो जाएगी।

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