बेइज्ज़ती का दूसरा नाम राजदीप सरदेसाई है या राजदीप सरदेसाई का पहला नाम बेइज्ज़ती, इस प्रश्न का उत्तर उतना ही जटिल है, जितना कि इस प्रश्न का उत्तर – पहले मुर्गी आई या अंडा? हाल ही में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के आयोजन के दौरान अपने विषैले वामपंथी एजेंडा के लिए कुख्यात इस पत्रकार ने बार बार अपना अनर्गल प्रलाप उपस्थित लोगों पर थोपने का प्रयास किया। इस घटिया प्रयास को लेकर न केवल केरल के वर्तमान राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान ने, अपितु इतिहासकार विक्रम संपत ने राजदीप सरदेसाई को जमकर धोया।
वो कैसे? जब इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दौरान राजदीप ने पूछा कि आरिफ़ अपने आप को एक भारतीय मुसलमान के रूप में कैसे देखते हैं और वे एक भारतीय मुसलमान के रूप में आज कैसा महसूस करते हैं, तो आरिफ़ मोहम्मद खान तुरंत उनकी मंशा भांप गए और उन्होंने आक्रामक रुख अपनाते हुए कहा, “हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हमारी स्वतंत्रता मुफ़्त में नहीं आई थी, उसके साथ देश का विभाजन भी हुआ था। इसके कारण देश में खूब खून खराबा भी हुआ और विभिन्न समुदायों के बीच काफी हिंसा भी हुई। ये विभाजन एक काल्पनिक प्रश्न के पीछे हुए था, अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की लड़ाई के पीछे हुआ था”।
केरल के वर्तमान राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में आगे कहा, “हमारा संविधान ही हमें समान अधिकार नहीं देता, अपितु हमारी भारतीय संस्कृति भी मूल रूप से इसी बात को सुनिश्चित करती है। ऐसे में जो आप सोच रहे हो, और जो संबंध आप स्थापित करना चाहते हो कि धर्म के आधार पर हमारे देश की संस्कृति भेदभाव को बढ़ावा देती है, अपने आप में ही एक हास्यास्पद ख्याल है”।
आरिफ़ मोहम्मद खान ने आगे राजदीप सरदेसाई इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दौरान समेत पूरे वामपंथी मीडिया की धुलाई करते हुए कहा कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी मीडिया उसी विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देती आई है। उन्होंने कहा, “अंग्रेज़ों ने भारत को कभी एक देश के रूप में समझा ही नहीं। उन्होंने हमेशा ये धारणा बिठाने का प्रयास किया कि ये समुदायों का एक समूह है। परंतु यह संविधान नागरिकों को देश का एक अभिन्न अंग मानता है, तो समुदायों का प्रश्न कहाँ से उठता है? मेरे गाँव आकर किसी मुसलमान से ये प्रश्न पूछिए, और वह खुद चकरा जाएगा। किसी व्यक्ति ने हैदराबाद में कह दिया कि मुसलमानों की समस्या है, तो हमने उसे मान लिया?”
और पढ़ें : ‘केरल मॉडल’ ने भारत को उपहार में दी ‘तीसरी लहर’, तो राजदीप सरदेसाई तुरंत सच पर पर्दा डालने आ गए
लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि राजदीप के बेइज्ज़ती का कोटा पूरा नहीं हुआ था। उसी कॉन्क्लेव में कांग्रेस सांसद शशि थरूर के साथ भारतीय इतिहास के विषय पर एक लंबी वार्तालाप का हिस्सा बने राजदीप सरदेसाई इस सम्बोधन में भी मॉडरेटर यानि संयोजक की भूमिका निभा रहे थे, और इसी बीच विक्रम संपत ने बड़ी ही शालीनता से पर बड़ी ही तत्परता से बताया कि कैसे भारतीय इतिहास पर वामपंथियों ने कब्जा जमाकर रखा है, और कैसे इसका ‘पुनर्निर्माण’ करने की आवश्यकता बहुत अधिक है।
भारतीय इतिहास पर वामपंथियों की पकड़ के बारे में प्रकाश डालते हुए विक्रम ने कहा, “कोई भी व्यक्ति जब पहली बार भारतीय इतिहास के बारे में पढ़ता है तो विद्यालय में पढ़ता है। अपने कल के बारे में शर्मिंदा होना, हमेशा अपने भूतकाल पर लज्जित होना, ये हमारे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अभिशाप है, क्योंकि ब्रिटिश राज में भी राष्ट्रवादी इतिहासकारों के लिए जगह थी – जैसे जदुनाथ सरकार, राधा कुमुद मुखर्जी, रमेश चंद्र मजूमदार, वीके रजवाड़े, भंडारकर, सीवी वैद्य इत्यादि। परंतु स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस पार्टी ने इतिहासकारों में वामपंथियों के अलावा किसी और के लिए जगह ही नहीं छोड़ी” ।
This is simply brilliant stuff, @vikramsampath. I must watch the rest. pic.twitter.com/R3hTn4QDYX
— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) October 10, 2021
विरासत, इतिहास, अभिमान के टॉपिक पर बात करते वक्त जब राजदीप सरदेसाई ने सवाल किया कि आखिर सावरकर कौन थे? फ्रीडम फाइटर? हिंदुवादी नेता? या वह सिर्फ मुस्लिम विरोधी नेता थे? उनको क्या माना जाए? तब सावरकर पर किताबें लिख चुके इतिहासकार विक्रम संपत ने कहा कि ‘मेरी नजर में तो सावरकर इन सब का मिश्रण थे।’ अपने एक जवाब से संपत ने राजदीप की बोलती अवश्य बंद कर दी.
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (partition horror remembrance day) के उल्लेख पर विक्रम संपत ने आगे ये भी कहा कि हमें आवश्यकता कि अपने इतिहास को दिल्ली केंद्रित कम करके उसे भारत केंद्रित अधिक बनाएँ, और देश के हर राज्य और हर वंश के इतिहास को बराबर प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा, “हम इस पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं कि सच बोलने से वर्तमान सामाजिक व्यवस्था बिगड़ जाएगी। परंतु मैं कहता हूँ कि फर्जी इतिहास के आधार पर देश की सामाजिक संप्रभुता नहीं टिक सकती”। राजदीप सरदेसाई सरकार द्वारा इतिहास के किताबों में किये जा रहे सुधार का विरोध अक्सर देखने को मिला है, ऐसे में ये जवाब उनके कानों को अवश्य चुभे होंगे।
I believe Tipu was a great ruler and fighter; you may not. Why should it lead to incitement to violence? #TipuSultan
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) November 12, 2015
जो व्यक्ति इन विचारों के नाम मात्र से ही चिढ़ता हो, उसे ऐसे शब्द सुनकर कैसा महसूस हो रहा होगा ये समझाने की आवश्यकता नहीं परन्तु, प्रतिकार तो छोड़िए, राजदीप के पास इसके विरोध में कोई ठोस तर्क नहीं था। स्वयं शशि थरूर भी विवश होकर विक्रम संपत की हाँ में हाँ मिलाते दिखे। ऐसे में राजदीप की वर्तमान अवस्था को देख एक कथन याद आता है – नमाज़ बख्शने गए थे, रोज़े गले पड़ गए, यानि चले तो अपना एजेंडा साधने थे, लेकिन उलटे राजदीप की एक बार फिर जबरदस्त बेइज्जती हुई।