- भारत ने वैश्विक कोवैक्स अभियान के लिए वैक्सीन आपूर्ति में की देरी
- कोवैक्सीन को WHO द्वारा मान्यता न मिलना हो सकती है सबसे बड़ वजह
- मोदी सरकार का ये आक्रामक रुख बन सकता है कोवैक्सीन की मान्यता मिलने का अहम बिन्दु
भारतीय वैक्सीन को लेकर कुछ देशों में विशेष हीन भावना रही है, जो कि सर्वविदित है। इसी का नतीजा है कि भारत की कोविशील्ड को मान्यता देने में ब्रिटेन ने आवश्यकता से कहीं अधिक समय लगाया, और मान्यता दी भी तब, जब भारत सरकार सरकार ने अपना रुख आक्रामक कर दिया। कुछ इसी तरह भारत की स्वदेशी कोवैक्सीन को लेकर WHO का रवैया भी उदासीन है। को-वैक्सीन की लॉन्चिंग हुए 8 महीने से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन किसी-न-किसी मुद्दे पर अड़ंगा लगाकर स्वदेशी कंपनी भारत बायोटेक की को-वैक्सीन को मान्यता देने में बाधा बन रहा है, लेकिन अब भारत ने इस मुद्दे WHO के साथ ‘जैसे को तैसे’ वाली नीति लागू कर दी है, क्योंकि अब भारत WHO द्वारा गरीब देशों में चल रहे वैक्सीनेशन कार्यक्रम कोवैक्स अभियान के लिए वैक्सीन की आपूर्ति में आवश्यकता से अधिक समय ले रहा है।
आपूर्ति में भारत कर रहा विलंब
स्वदेशी भारतीय कंपनी भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोरोना की सबसे असरदार वैक्सीन को-वैक्सीन को मान्यता न देने के मुद्दे पर भारत सरकार लगातार WHO को लताड़ लगा रही है। इसके विपरीत WHO का रुख को-वैक्सीन के प्रति उदासीन ही है। ऐसे में अब विश्व स्वास्थ्य संगठन को भारत सरकार द्वारा एक बड़ा झटका लगा है। इस मुद्दे पर रॉयटर्स की रिपोर्ट्स बताती है कि कैसे मोदी सरकार ने WHO को घुटनों पर लाने की तैयारी कर ली है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य द्वारा गरीब देशों के लोगों के वैक्सीनेशन के लिए चलाए जा रहे कैंपेन COVAX के लिए, भारत सहज आपूर्ति नहीं कर रहा है, जो कि इन देशों में चल रहे वैक्सीनेशन अभियान के लिए संकटग्रस्त स्थिति हो सकती है।
अप्रैल के बाद शुरु हुई आपूर्ति
भारत सरकार ने देश में वैक्सीनेशन को रफ्तार देने के लिए दूसरी लहर के दौरान वैक्सीन निर्यात पर रोक लगाई थी। वहीं रोक से पहले भारत ने बांग्लादेश और ईरान को वैक्सीन की आपूर्ति की थी। मिंट की रिपोर्ट बताती है कि प्रतिबंध हटने के बावजूद भारत से कोवैक्स अभियान की आपूर्ति सहज ढंग से नहीं हो रही है, जो कि भारत की WHO के इस कार्यक्रम के प्रति उदासीनता का प्रतीक है। इसको लेकर WHO ने भी कहा कि भारत अपनी स्वदेशी वैक्सीन को मान्यता दिलाने के लिए वैक्सीन आपूर्ति में देरी कर रहा है जो कि किसी भी कीमत पर अनैतिक है। वहीं, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के स्वास्थ्य मंत्री के वायदे के बावजूद अभी तक भारत ने कोवैक्स अभियान के लिए वैक्सीन आपूर्ति नहीं की है, जो कि उनकी वैक्सीन आपूर्ति की प्रतिबद्धता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
महत्वपूर्ण है भारत की भूमिका
ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्यूनाइजेशन, COVAX के सह-प्रमुख GAVI ने एक ईमेल में कहा, “हम अभी भी इस बात की पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि निर्यात कब होगा और कितनी खुराक की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन अभी तक हमें किसी विशेष देरी के बारे में पता नहीं है। भारतीय टीका प्रदान करने की शक्तिशाली भूमिका में है।” इसके साथ ही वैक्सीन को लेकर ये भी कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता देश भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से इस मुद्दे पर कोई जवाब नहीं आया है। वहीं, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), ने भी इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं बोला है।
खबरों के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट कोवैक्स अभियान के लिए वैक्सीन की आपूर्ति के लिए करार कर चुका है। वही इस मामले में सबसे आक्रामक रुख भारत सरकार का सामने आया है। भारत सरकार द्वारा कहा गया है कि, “उन्हें विश्वास है कि WHO जल्द ही को-वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग को मंजूरी देगा, जो भारत द्वारा लगाई गई 990 मिलियन खुराक में से 11% है, बाकी ज्यादातर डोसेज़ एस्ट्राजेनेका की हैं।” वहीं इस मामले में SII के प्रमुख आदार पूनावाल का कहना है कि अक्टूबर से कोवैक्स अभियान के लिए वैक्सीन की आपूर्ति की जाएगी, जो कि पहले कम होगी, किन्तु उसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी।
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मान्यता दो तो मिलेगी वैक्सीन
भारत सरकार ने भले ही WHO के सवालों पर कुछ जवाब न दिया हो, किन्तु मोदी सरकार का ये तर्क सटीक प्रतीत होता है कि WHO कोवैक्स अभियान के लिए जिस कोवैक्सीन आपूर्ति की मांग कर रहा है, वो ही WHO अब कोवैक्सीन को मान्यता देने में 50 तरह की नौटंकियां कर रहा है। ऐसे में भारत सरकार का रवैया स्पष्ट करता है कि जब कोवैक्सीन को WHO द्वारा मंजूरी मिलेगी, तभी कोवैक्स अभियान के लिए भारत द्वारा निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार वैक्सीन की वैश्विक मान्यता को लेकर पहली बार इतनी आक्रामक है। इसका एक संकेत उस दौरान भी मिला था, जब ब्रिटेन ने भारत के कोवीशील्ड लगवाने वाले लोगों के लिए एकांतवास का प्रावधान किया था। ऐसे में भारत सरकार ने भी ब्रिटेन से भारत आने वाले लोगों के लिए 10 दिन का एकांतवास निश्चित कर दिया था। इस आक्रामकता का नतीजा ये हुआ कि ब्रिटेन ने जल्द ही भारत की वैक्सीन कोवीशील्ड को मान्यता दे दी। कुछ ऐसा ही रवैया भारत ने यूरोपीय संघ के साथ भी अपनाया था, और नतीजा ये रहा की मोदी सरकार की आक्रामकता के आगे सभी वैश्विक संगठनों की घिग्घी बन गई थी।
ऐसे में अब WHO द्वारा कोवैक्स अभियान के लिए भारत से आपूर्ति न होने पर जो बयान आया है, वो इस बात का संकेत है कि WHO समझ चुका है, अगर भारत की को-वैक्सीन को मान्यता नहीं दी, तो मुसीबतों में विस्तार होगा, और वैक्सीन तो मिलेगी ही नहीं।