विनिर्माण से लेकर ऊर्जा सेक्टर तक में आए भूचाल के कारण चीन वैश्विक आर्थिक संकट पैदा कर रहा है

यही समय है कि विश्व तत्काल चीन पर से अपनी निर्भरता समाप्त करे!

चीन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का दंभ, उसकी मूर्खतापूर्ण नीतियां तथा अपने देश के विकास को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने की आदत के कारण दुनिया अब आर्थिक मंदी के दौर में जा सकती है। चीन को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, एनर्जी सेक्टर, फाइनेंशियल मार्केट आदि सभी क्षेत्रों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और इसका प्रभाव दुनिया पर भी पड़ने वाला है।

क्रिसमस का त्यौहार नजदीक आ रहा है और दुनिया भर में खरीदारी अगले कुछ महीनों में बढ़ने वाली है। अक्टूबर महीने से लेकर दिसंबर महीने तक दुनिया भर में खरीदारी बढ़ जाती है क्योंकि इस समय ही क्रिसमस और नए साल के लिए लोग तैयारियां शुरू करते हैं। भारतीय बाजार में भी दिवाली और दशहरा जैसे त्यौहार चहल-पहल बढ़ा देते हैं। यही कारण है कि इन 3 महीनों में चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को अच्छा-खासा लाभ होता है। किंतु, इस वर्ष चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की खस्ता हालत ग्लोबल सप्लाई चैन पर अपना नकारात्मक प्रभाव दिखाने वाली है।

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निर्यात संकट

चीन में फैक्ट्रियां बंद हो रही है या उनमें काम कम हो रहा है। इसका एक बड़ा कारण कच्चे माल के दामों में उछाल है। मैन्युफैक्चरिंग पर Purchasing Manager’s Index पिछले माह की तुलना में घटा है, जबकि इस समय मैन्युफैक्चरिंग बढ़ने की संभावनाएं थी। ऐसा फरवरी 2020 के बाद पहली बार हुआ है।

चीन में इलेक्ट्रिसिटी क्राइसिस जैसी समस्या के कारण एप्पल और टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों को भी नुकसान झेलना पड़ रहा है। टोयोटा को भी अपनी विनिर्माण इकाइयों के संचालन में कठिनाई हो रही है। यदि चीन में बिजली की आपूर्ति की समस्या इसी प्रकार बनी रही तो इसका सीधा प्रभाव वैश्विक सप्लाई चेन पर देखने को मिलेगा। इलेक्ट्रिसिटी क्राइसिस के कारण चीनी विनिर्माण इकाइयां तो प्रभावित हो ही रही है, साथ ही दुनियाभर के देश जो कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर हैं उन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

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उदाहरण के लिए यूरोपीय यूनियन बैटरी, दवा निर्माण में प्रयुक्त एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स, एल्युमिनियम और स्टील जैसे मेटल आदि कई प्रकार के कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है। ऐसे में चीन की इलेक्ट्रिसिटी क्राइसिस यूरोपीय यूनियन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर भी प्रभाव डालेगी।

भारत की बात करें तो हमारी सिलीकान इंडस्ट्री तेजी से विकास कर रही है। सोलर प्लांट से लेकर इलेक्ट्रिक कार की बैटरी तक कई वस्तुओं के निर्माण के लिए सिलिकॉन महत्वपूर्ण अवयव है। भारत सिलिकॉन की सप्लाई के लिए पूर्णता चीन पर निर्भर है। किंतु चीज में कोयले की कमी के कारण इलेक्ट्रिसिटी क्राइसिस जन्म ले चुकी है, जिससे सिलिकॉन इंडस्ट्री भी प्रभावित हुई है और सिलिकॉन के दाम में 300% की बढ़ोतरी हुई है।

भारत अब तक सिलिकॉन उत्पादन के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि नहीं हासिल कर सका है। एटॉमिक एनर्जी कमिशन के चेयरमैन श्री कुमार बनर्जी ने मीडिया को बताया सिलिकॉन का उत्पादन देश में नहीं होता है और हम पूरी तरह से आयात पर निर्भर हैं। हालांकि, हमारे पास रेत के रूप में कच्चा माल उपलब्ध है, किंतु हमारे पास उसे सोलर सेल और पैनल बनाने में सहायक सिलिकॉन वेफर में बदलने के लिए आवश्यक तकनीक उपलब्ध नहीं है.

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कोरोना के कारण ग्लोबल सप्लाई चैन इतनी बुरी तरह प्रभावित हुई है कि दुनिया उससे अब तक उबर नहीं सका है। पिछले डेढ़ वर्षों में दुनिया यह उपाय नहीं खोज सकती है कि चीन पर निर्भरता किस प्रकार कम की जाए। यही कारण है कि इस चीज में किसी प्रकार की समस्या वैश्विक सप्लाई चैन को मुसीबत में डाल देती है।

कर्ज का पहाड़

हाल ही में चीन की सबसे बड़ी रियल स्टेट कंपनी Evergrande कर्ज की समस्या से जूझ रही है। किंतु Evergrande की समस्या चीन में फैले कर्ज के जाल का एक छोटा हिस्सा ही है। चीनी कंपनियों के लिए कर्ज की समस्या एवरग्रैंड के स्तर से बहुत बड़ी है। चीन ने शहरों के निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए बड़ी मात्रा में कर लिया है। ऐसे बड़े-बड़े शहरों का विकास तो किया गया है किंतु इनकी उपयोगिता कुछ भी नहीं है। ऐसे में चीन के लिए एक ऐसी स्थिति बन चुकी है, जहां उसने इन प्रोजेक्ट के विकास के लिए बड़ी मात्रा में कर्ज उठा लिया है जबकि यह प्रोजेक्ट उसे कोई भी रिटर्न नहीं दे रहे हैं। चीनी बाजार में दुनियाभर के निवेशकों का पैसा लगा हुआ है, ऐसे में चीनी प्रोजेक्ट यदि रिटर्न नहीं देते तो पूरी दुनिया के लिए आर्थिक मंदी का दौर शुरू हो जाएगा।

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यह तो केवल निजी कंपनियों की बात है। स्थानीय सरकार के स्तर पर भी चीन के ऊपर कर्ज है जो कि एक अनुमान के मुताबिक वह उसकी अर्थव्यवस्था के आधे आकार के बराबर है। स्थानीय सरकार पर 53 ट्रिलियन युआन अथवा 8.2 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है। 2014 से अब तक यह कर्ज 16 ट्रिलियन युआन से तीन गुना अधिक बढ़ चुका है।

समस्या यह है कि चीन अपने देश के संदर्भ में इतनी गोपनीयता रखता है कि जो भी निवेशक चीन के बॉन्ड मार्केट में निवेश करना चाहता है, वह वास्तविक जोखिम के बारे में जानता ही नहीं है। चीन में सरकारी स्तर पर 2020-21 में जो बांड जारी किए हैं, उनमें से 60% बांड का प्रयोग पूर्व में लिए गए कर्जों के भुगतान के लिए किया जाता है, ना की किसी नए प्रोजेक्ट की शुरुआत के लिए।

जब किसी देश में सरकार बांड जारी करती है तो उसका उद्देश्य किसी नए प्रोजेक्ट के लिए निवेशकों से ऋण लेने का होता है। निवेशक लाभ की अभिलाषा में ऐसे बांड में निवेश करते हैं। किंतु चीन बॉन्ड मार्केट से नए ऋण लेकर पुराने ऋणों का ही भुगतान कर रहा है। जिनपिंग इस समस्या के समाधान के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठा पा रहे।

ऊर्जा संकट

चीन की एनर्जी क्राइसिस और कोयला की समस्या दोनों को सुलझाने में कम्युनिस्ट पार्टी असफल सिद्ध हो रही है। जबकि इन दोनों समस्याओं का कारण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की विवादित नीतियां ही है। इलेक्ट्रिसिटी क्राइसिस की शुरुआत तब हुई थी जब चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आयात होने वाले कोयले पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऑस्ट्रेलिया से अपनी उर्जा निर्भरता को कम करने के लिए चीन ने अफ्रीका और रूस से अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना आरंभ कर दिया। चीन ऑस्ट्रेलिया से समझौते के लिए तो तैयार नहीं हुआ, किंतु वह रूस और अफ्रीकी देशों से अधिक कीमत पर भी आयात के लिए तैयार हो गया। इसके परिणाम स्वरूप वैश्विक बाजार के कीमतों में उछाल आना स्वाभाविक था। इसका प्रभाव यूरोपीय यूनियन पर भी पड़ा क्योंकि यूरोप भी अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए अमरीका और रूस पर ही निर्भर है।

आने वाले कुछ वर्षों में यदि दुनिया 2008 की तरह आर्थिक मंदी का सामना करती है तो इसका एकमात्र कारण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की होगी। यदि दुनिया आर्थिक मंदी के संकट से बच भी जाती है तो यही समय है कि विश्व तत्काल चीन पर से अपनी निर्भरता समाप्त करे।

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