चीन का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खत्म हो रहा है, उसकी गिरती विश्वसनीयता से भी कई गुना तेज

विदेशी मुद्रा भंडार

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और ग्लोबल फैक्ट्री का तमगा लिए बैठी चीनी अर्थव्यवस्था तेजी से पतन की ओर उन्मुख है। चीन में ऊर्जा संकट बहुत अधिक बढ़ गया है, साथ ही चीन के ऊपर ऋण भी बहुत अधिक बढ़ चुका है। अपने ऊर्जा संकट और कर्ज के बोझ से छुटकारा पाने के लिए चीन अपने फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स (विदेशी मुद्रा भंडार) को खर्च करने पर मजबूर है।

चीन के पास विश्व का सबसे बड़ा फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व है और उसके आर्थिक प्रभुत्व का एक महत्वपूर्ण कारण फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व ही है। सितंबर माह में चीन के फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व्स में 31.5 बिलियन डॉलर की कमी आई है, वर्तमान में चीन के पास 3.2006 ट्रिलियन डॉलर फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व है।

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चीन के लिए उसका विदेशी मुद्रा भंडार इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन खनिज संसाधनों के मामले में बहुत समृद्ध देश नहीं है। विशेष रुप से अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए चीन पूरी तरह से निर्यात पर निर्भर है। चीन अपने विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा कोयला, तेल और नेचुरल गैस खरीदने में खर्च करता है।

साथ ही चीन द्वारा अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने के लिए जो भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट दूसरे देशों में चलाए जा रहे हैं, वह भी चीन के विदेशी मुद्रा भंडार से ही फंडिंग पाते हैं। चीनी अर्थव्यवस्था में होने वाले विदेशी निवेश के कारण चीन के पास इतनी बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार संचित हुआ है, किंतु जिस प्रकार से इस समय चीन से विदेशी कंपनियों का पलायन हो रहा है उससे उसका स्टॉक मार्केट विश्व में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले स्टॉक मार्केट में से एक बन गया है। स्पष्ट है कि चीन को इस समय विदेशी निवेश नहीं मिल रहा है जिसका सीधा असर चीन के विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ रहा है।

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चीन के सरकारी विभाग State Administration of Foreign Exchange (SAFE) के अनुसार चीन के विदेशी मुद्रा भंडार में अगस्त माह के अंत तक 0.97% की गिरावट आई है। हालांकि, SAFE ने विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के पीछे का कारण करंसी ट्रांसलेशन अर्थात एक मुद्रा का दूसरी मुद्रा में रूपांतरण एवं अन्य ऐसे ही कारकों को ठहराया है।

चीन के विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही कमी, शी जिनपिंग की नीतियों का परिणाम है। विश्व का 56% कोयला अपने यहां आयात करता है। ऑस्ट्रेलिया चीन के लिए प्रमुख कोयला निर्यातक देश था। ऑस्ट्रेलिया से चीन की दूरी अफ्रीका के अन्य कोयला उत्पादक क्षेत्रों की अपेक्षा कम है जिससे कोयले की ढुलाई की लागत स्वतः कम हो जाती है। इससे कोयले का दाम भी कम रहता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया से आयातित होने वाली सभी वस्तुओं पर रोक लगाकर चीन ने खुद ही  कोयला संकट पैदा किया है।

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चीन इस समय अफ्रीका और रूस से कोयला आयात कर रहा है। अफ्रीका से आयातित कोयले का दाम, अफ्रीका और चीन के बीच की दूरी के कारण, बहुत अधिक हो जाता है। वहीं, रूस पहले ही यूरोपीय देशों को कोयला निर्यात करता है इस कारण चीन की ओर से अचानक बढ़ाने पर रूस से आयात होने वाले कोयले का दाम बढ़ना स्वाभाविक है।

जिनपिंग द्वारा पैदा किया गया कोयला संकट चीन में बिजली संकट को जन्म दे रहा है जिसका सीधा असर चीन की विनिर्माण इकाइयों पर पड़ रहा है। इस समय चीन का विनिर्माण सेक्टर खराब प्रदर्शन कर रहा है। उत्पादकता में कमी का सीधा प्रभाव निर्यात में कमी के रूप में परिलक्षित हो रहा है। सिलिकॉन, एलुमिनियम, फूड प्रोसेसिंग सभी सेक्टर प्रभावित हुए हैं। इस कारण निर्यात के जरिए जो अमेरिकी डॉलर प्राप्त होते थे उनमें भी कमी आई है।

Evergrande जैसी बड़ी रियल एस्टेट कंपनी पर जो कर्ज का संकट आया है उसने विदेशी निवेशकों को चीनी अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिए सशंकित कर दिया है। साथ ही हाल में आई यह खबर, कि चीन ने इज ऑफ डूइंग बिजनेस में छेड़छाड़ की है, इसका सीधा प्रभाव विदेशी निवेश पर पड़ा है।

शी जिनपिंग की नीतियां विदेश नीति के मोर्चे से लेकर अर्थव्यवस्था तक एक के बाद एक असफल सिद्ध हो रही हैं। चीन के विदेशी मुद्रा भंडार में किसी प्रकार की कमी उसकी सॉफ्ट पावर में को कं करेगी जिसका चीन पर कूटनीतिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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