कोरोना वायरस पिछले वर्ष से ही मौत का तांडव मचा रहा है। दुनिया यह बात समझ चुकी है कि कोरोना की उत्पत्ति चीन के वुहान से हुई, लेकिन बावजूद इसके चीन नित नए सिद्धांत लेकर आता है और बचने की कोशिश करता है। अमेरिका और इटली को कोरोना के लिए दोषी ठहराने के बाद अब चीन के कुछ चीनी शोधकर्ताओं ने कोरोना की उत्पत्ति के लिए अमेरिका के पोर्क, ब्राजील के बीफ तथा सऊदी अरब के झींगे को दोषी ठहराया है। अर्थात् चीन ने दावा किया है कि इस संक्रमण की वजह ब्राजील का बीफ, सऊदी अरब के झींगे और अमेरिका का मेन लॉब्स्टर है। एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि चीनी मीडिया द्वारा इस सिद्धांत को बढ़ावा देने के लिए लगातार खबरें छापी जा रही हैं। ऐसे दावों के बाद अरब देश तथा ब्राज़ील का अवश्य ही चीन से नाराज होना स्वाभाविक है।
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चीन का नया पैंतरा
शोधकर्ता मार्सेल श्लीब्स ने एक वैश्विक थिंक टैंक पॉलिसी रिसर्च ग्रुप (POREG) के लिए लिखते हुए कहा, “चीन समर्थक एजेंडे से जुड़े सैकड़ों अकाउंट की पहचान की है और यह निष्कर्ष निकाला कि ये सभी इसी सिद्धांत को आगे बढ़ा रहे हैं कि निर्यात किए गए मीट ही कोरोनावायरस के प्रसार का एक कारण है।” उन्होंने कहा कि चीनी मीडिया यह साबित करने में लगा है कि ब्राजील से बीफ, सऊदी अरब से झींगा और US से पोर्क कोरोना की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार हैं।
वैश्विक थिंक टैंक के अनुसार, श्लीब्स ने 18 महीनों के दौरान चीन समर्थक खातों के ट्विटर फीड का विश्लेषण किया और यह पाया कि मेन लॉबस्टर सिद्धांत को कोलकाता के वाणिज्य दूतावास में तैनात एक चीनी राजनयिक द्वारा पेश किया गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, “कोरोना वायरस के केंद्र चीन के वुहान शहर और दूषित मांस के आरोपों में बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंताओं के बीच संबंध देखा सकता हैं। चीन इससे मुकाबला करने के लिए दूषित मांस की सिद्धांत को बढ़ावा दे रहा है।” रिपोर्ट में आगे बताया गया कि कम से कम एक संबंध स्पष्ट हो गया है, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की नीतियों के खिलाफ किसी भी तरह से रुख अपनाने वाले किसी भी देश और उनके भोजन के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए चीन कुछ भी करेगा। अब चीन यही कर रहा है, जिससे अमेरिका और सऊदी जैसे देशों के बीफ और पोर्क के निर्यात को नुकसान हो।
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इटली और भारत पर भी मढ़ चुका है आरोप
बता दें कि कोरोना वायरस पहली बार दिसंबर 2019 में चीन में ही फैला, जो वुहान शहर के एक seafood बाजार में अज्ञात निमोनिया के कई मामलों से जुड़ा हुआ था। इसके बाद यह धीरे-धीरे पूरे चीन और फिर अन्य देशों तक पर्यटन के माध्यम से फैल गया और एक महामारी का कारण बना। हालांकि, आज तक चीन ने कोरोना के सबसे पहले रोगी की जानकारी बाहर नहीं आने दी। यही नहीं जिस डॉक्टर या पत्रकार ने कोरोना पर जानकारी विश्व के साथ साझा करने का प्रयास किया, उन्हें चीनी अधिकारियों ने या तो जेल में डाल दिया या गायब ही करवा दिया। वहीं, जब महामारी पर अपनी प्रतिक्रिया के कारण विश्व के सभी देश एक सुर में WHO को चीनी एजेंट बताने लगे तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दबाव में आ कर एक 10 सदस्यीय टीम को जांच के लिए चीन भेजा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नमूनों के विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि 26 दिसंबर की शुरुआत से ही एक नए प्रकार का SARS चीनी बाजार में फैल रहा था और वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार वुहान को 22 जनवरी तक लॉकडाउन नहीं किया गया था। हैरानी तो तब हुई जब चीन ने अमेरिकी सैनिकों पर ही कोरोना फैलाने का आरोप लगा दिया। चीन की ओर से कहा गया था कि अमेरिकी सैनिक वुहान आए थे, जिन्होंने संक्रमण फैलाया। चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रमुख अधिकारी लिजियन झाओ ने 12 मार्च को इस बात का दावा किया था। इसके बाद चीन ने इटली पर भी आरोप मढ़ने की कोशिश की, चीन की ओर से यह भी कहा गया कि कोरोना इटली में उत्पन्न हुआ था। यही नहीं इसके बाद चीन के कुछ चीनी शोधकर्ताओं ने कोरोना की उत्पत्ति के लिए भारत को जिम्मेदार बताया था। देखा जाए तो कोरोना की उत्पत्ति के आरोपों से बचने के लिए चीन रोज एक नया पैंतरा लेकर आता है जो हास्यास्पद होता है।
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