वर्ल्ड कप हो या सामान्य द्विपक्षीय श्रृंखला, भारत-पाकिस्तान का किसी भी खेल में सामना होता है, तो विवाद और बहस होना स्वाभाविक सी घटना होती है। फिर यदि खेल क्रिकेट का है तो विवाद अवश्यंभावी है। टी-20 विश्वकप 2021 में अपने पहले पूल मैच में भारतीय टीम को पाकिस्तान के हाथों पराजय मिली। यह पहला मौका था, जब पाकिस्तानी क्रिकेट टीम ने भारत को विश्वकप के किसी भी मैच में पराजित किया। 10 विकेट से मिली पराजय के बाद पूरी भारतीय टीम आलोचना के घेरे में आ गई। आलोचना का मुख्य केंद्र कप्तान विराट कोहली थे, किंतु अचानक ही मोहम्मद शमी का नाम विवादों के बीच आ गया।
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पाकिस्तान में गढ़ी गई थी कहानी
अचानक ही यह खबर फैल गई कि सोशल मीडिया पर कई लोगों ने शमी को इसलिए ट्रोल किया है, क्योंकि वह मुसलमान हैं और उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ आखिरी ओवर की गेंदबाजी की, जिसमें भारत की पराजय हुई। इसके बाद कई बड़ी हस्तियां और वामपंथी पत्रकारों का समूह शमी के समर्थन में उतर गया। राणा अय्यूब, बरखा दत्त आदि लोगों को बैठे-बिठाए अवसर हाथ लग गया, जबकि वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण जैसे बड़े नाम भी इस ऑनलाइन प्रोपेगेंडा के शिकार हो गए।
हालांकि, 2 दिनों बाद कई मीडिया रिपोर्ट ने यह बात स्पष्ट किया कि कैसे पाकिस्तानी सोशल मीडिया हैंडल्स ने शमी से जुड़े विवाद को जन्म दिया, उनके मुसलमान होने के कारण उन्हें निशाना बनाकर एक दुष्प्रचार अभियान शुरू किया। उसके बाद भारतीय वामपंथी मीडिया के कई बड़े नामों ने इसी दुष्प्रचार अभियान को हिंदू अतिवादी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे ऑनलाइन कैंपेन की संज्ञा दे दी और पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाया।
यहां तक की इंस्टाग्राम और ट्विटर पर कई अकाउंट केवल इसी लिए खोले गए, क्योंकि मैच के बाद शमी को निशाना बनाया जाना था। महत्वपूर्ण बात यह है कि मैच के बाद अधिकांश पोस्ट कप्तान विराट कोहली और सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा की आलोचना करते हुए देखे जा रहे थे। शमी का नाम दूर-दूर तक नाम नहीं था। फिर पाकिस्तान के कई ट्विटर हैंडल द्वारा शमी के मुस्लिम पहचान को मुद्दा बनाकर कई पोस्ट लिखे गए। किसी में शमी को पाकिस्तानी एजेंट घोषित किया गया, तो किसी पोस्ट में शमी से उनके मुस्लिम होने का प्रमाण मांगा गया।
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वामपंथियों का नया ड्रामा
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह पूरा प्रचार अभियान तभी शुरू हुआ, जब पूरे भारत से इस प्रकार की खबरें सामने आने लगी कि पाकिस्तान की जीत पर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में पटाखे फोड़कर खुशियां मनाई जा रही हैं। केरल, दिल्ली, मध्यप्रदेश, पंजाब समेत कई राज्यों से ऐसी खबरें सामने आने लगी थी। इस बात का मुद्दा बनते ही वामपंथी मीडिया द्वारा शमी वाली बात को मुद्दा बनाकर सामने रखा गया। जैसे ही मुस्लिम सांप्रदायिकता और अलगाववाद का वास्तविक चेहरा आम लोगों के सामने आने लगा, वैसे ही हिंदू अतिवाद का प्रोपगेंडा आगे बढ़ाया गया। सब कुछ उसी पैटर्न पर हुआ, जिस पर हिंदू आतंकवाद की परिकल्पना को बढ़ाया गया था।
बताते चलें कि UPA सरकार के दौरान जब देशभर में आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी थी और मुसलमानों के विरुद्ध नकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होने लगा था, तब उसके जवाब में वामपंथी विचारकों, पत्रकारों, मानवाधिकार समूहों सहित कई राजनीतिक दलों द्वारा हिंदू आतंकवाद की कहानी गढ़ी गई थी। इस बार भी यही हुआ है और शमी से जुड़ा बिना मतलब का विवाद उछालकर नैरेटिव सेट किया जा रहा है और मुसलमानों के वर्ग विशेष को बचाया जा रहा है।
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