देश की धरती तो अन्न स्वरूप सोना उगलती है, लेकिन समुद्र के तटीय क्षेत्रों की रेत भी किसी हीरे से कम नहीं है। एक वक्त मोदी सरकार ने इसके अवैध खनन पर प्रतिबंध लगाकर केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को ही खनन का अधिकार दिया था, लेकिन अब मोदी सरकार अन्य क्षेत्रों की भांति समुद्र तटीय क्षेत्रों के रेत खनन के लिए भी निजी क्षेत्र की कंपनियों को भागीदार बनाने की प्लानिंग कर चुकी है। सरकार का यह फैसला देश की परमाणु ऊर्जा से लेकर अन्य आर्थिक क्षेत्र में विस्तार की एक अहम भूमिका निभा सकता है।
दरअसल, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का कामकाज सदैव सुस्त ही रहता है। यही कारण है कि मोदी सरकार एयर इंडिया से लेकर बीएसएनएल, रेलवे, रक्षा समेत अनेक क्षेत्रों में निजी कंपनियों को भागीदार बना रही है और इसके परिणाम भी सार्थक देखने को मिल रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार का नया प्लान तटीय क्षेत्रों में रेत खनन में निजी कंपनियों को लाने का है। सर्वविदित है कि ये तटीय रेत आर्थिक स्थिति के लिहाज से अति लाभकारी हैं। यही कारण है कि मोदी सरकार ने अब इस पर लगे प्रतिबंध को हटाने की तैयारी कर ली है।
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मोदी सरकार का प्लान
समुद्र तटीय रेत हीरा है, ये बात जिन्हें भी पता थी उन्होंने इस रेत के खनन से खूब कमाई की, जबकि सरकार के हिस्से में कुछ नहीं आया। ऐसे में मोदी सरकार अब अपने पांच साल पुराने किए गए फैसले की समीक्षा की तैयारी कर चुकी है, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में प्राइवेटाइजेशन को बढ़ावा देने का है। इसके लिए सरकार द्वारा एक पैनल स्थापित किया गया है, जो कि प्रतिबंध की समीक्षा कर इसमें राहत के सुझाव दे सकता है। खास बात ये है कि समुद्र तट पर मुख्य खनिज तत्व पाए जाते हैं, जिनमें से कई की विशेषता ये भी है कि ये केवल भारत के ही तटीय क्षेत्र में पाए जाते हैं।
जुलाई 2021 में परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया था कि समुद्र तटीय खनिज से संबंधित खनन के लिए जो प्रतिबंध लगाए गए थे, उन सभी प्रतिबंधों को अब खत्म कर दिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस ने मंगलवार को बताया कि 18 सितंबर को सभी विभागों और मंत्रालयों के सचिवों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की थी, और केंद्र ने एक व्यापक 60-सूत्रीय कार्ययोजना तैयार की है। वहीं, इस प्लान में कहा गया था कि वर्तमान में दो क्षेत्र प्रतिबंधित हैं-
- पहला– समुद्र तटीय रेत खनिज, जिसका खनन केवल परमाणु ऊर्जा विभाग ही कर सकता है।
- दूसरा- अपतटीय खनन, वर्तमान में केवल पीएसयू के माध्यम से ही इसका खनन होता है।
अब इन दोनों को ही निजी क्षेत्रों को खोलने का सुझाव दिया गया था।
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सरकार ने 2019 में जारी की थी अधिसूचना
गौरतलब है कि एनडीए सरकार ने जुलाई 2019 में अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2002 के तहत अपतटीय खनिजों के पूर्वेक्षण और खनन अधिकारों को आरक्षित करने के लिए एक विस्तृत अधिसूचना जारी की थी। इसमें विशेष रूप से सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों और संस्थाओं को खनन के अधिकार दिए गए थे।
एनडीए सरकार द्वारा 2015 से जुलाई 2019 की अधिसूचना तक, इन सभी खनिजों के खनन में निजी क्षेत्र की गतिविधियों को प्रभावी ढंग से प्रतिबंधित करने के लिए इन नियमों को उत्तरोत्तर सख्त किया गया था। एईआरबी ने परमाणु ऊर्जा (विकिरण संरक्षण) नियम 2004 के तहत इन निजी पार्टियों द्वारा रेडियोलॉजिकल सुरक्षा विचारों के लिए खनिज पृथक्करण संयंत्रों के संचालन के लिए लाइसेंस का नवीनीकरण बंद कर दिया।
खनन मंत्रालय और विदेश व्यापार महानिदेशालय ने भी निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रतिबंधित करने के उपाय शुरू किए थे, जिसमें यह अनिवार्य किया गया था कि इन खनिजों का निर्यात राज्य के स्वामित्व वाले कैनालाइजिंग एजेंटों के माध्यम से किया जाएगा।
रेत में महत्वपूर्ण हैं तत्व
जानकारी के मुताबिक, समुद्र तट के रेत में मोनाजाइट नामक खनिज की प्रचुरता होती है और इससे थोरियम निकाला जाता है। थोरियम भारत के तीन चरणों वाले परमाणु कार्यक्रम का एक प्रमुख घटक है, जिसे प्लूटोनियम जैसे विखंडनीय सामग्री के साथ मिलाकर परमाणु ईंधन में बदला जा सकता है और ये ईंधन की खपत के लिए एक महत्वपूर्ण घटक बन सकता है। मोनाजाइट के अलावा भारतीय समुद तटीय क्षेत्रों में गार्नेट, इल्मेनाइट और जिरकोन जैसे खनिज भी पाए जाते हैं। खास बात ये है कि ये सभी खनिज भारतीय तटीय रेत में सर्वाधिक पाए जाते हैं।
ऐसे में आवश्यकतानुसार पहले मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में खनन को निजी कंपनियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन अब सार्वजनिक क्षेत्र की सुस्ती और ढुलमुल रवैए को देखते हुए मोदी सरकार इस समुद्र तटीय रेत के खनन को पुनः निजी क्षेत्र में देने के लिए प्रयास कर रही है। ये न केवल देश के लिए आर्थिक क्षेत्र में लाभकारी होगा, इसके विपरीत यह रक्षा क्षेत्र और ईंधन के क्षेत्र में भी एक नई क्रांति का पर्याय हो सकता है।