कुछ लोगों अथवा संगठनों को देखकर एक कथन स्वत: स्मरण हो जाता है – रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। दुनिया में अपने दोहरे मापदंडों और अपने निकृष्ट स्वभाव के कारण दिन रात अपमानित होने वाला स्वघोषित पशु कल्याण संगठन PETA भारत एक बार फिर चर्चा में है। इस बार इन लोगों ने सनातन संस्कृति द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली घोड़ी परंपरा के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई है
जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक सुना। PETA भारत ने शादियों में दूल्हों द्वारा ‘घोड़ी’ पर विवाह स्थल पर पधारने की परंपरा के विरुद्ध आवाज उठाई है। PETA भारत के ट्वीट के अनुसार, “घोड़ियों का विवाह में उपयोग क्रूर है और अनैतिक भी” –
Using horses at wedding ceremonies is ABUSIVE and CRUEL.
— PETA India (@PetaIndia) October 11, 2021
इस पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से पूर्व जानते हैं कि विवाहों में ‘घोड़ियों’ पर दूल्हों के आने की परंपरा कब से प्रारंभ हुई? इसकी कोई स्पष्ट तिथि नहीं है, पर ऐसा माना जा सकता है कि अरबों के आगमन यानि 8 वीं या 9 वीं शताब्दी के पश्चात घोड़ियों पर वर आगमन प्रारंभ हुआ था, अन्यथा तो विभिन्न स्थलों पर वर का आगमन या तो ऊंट, या फिर हाथी के जरिए होता था। कई क्षेत्रों में तो वर पदयात्रा करते हुए भी विवाह स्थल तक जाते हैं। वैसे भी, जिस देश की रीति ‘दो कोस में बदले पानी चार कोस में बानी’ यानि विविधताओं का अनंत सागर हो, वहाँ वर आगमन एक जैसा कैसे हो सकता है?
इसके अलावा घोड़ियों पर व्यक्ति घंटों तक नहीं, मात्र कुछ मिनटों के लिए बैठता है, जब तक बारात गंतव्य स्थल तक नहीं पहुँच जाती। यही नहीं, आजकल सनातनी हो या फिर सिख विवाह हो, घोड़ियों पर वर आगमन की प्रथा अब उतनी प्रतिष्ठा का विषय नहीं रह गया। लोग अब गाड़ियों अन्यथा बग्घी में भी आ रहे हैं, चाहे वह घोड़े द्वारा संचालित हो, या फिर ईंधन द्वारा।
ऐसे में PETA का ट्वीट न केवल अतार्किक है, अपितु इसमें विद्वेष और घृणा की भावना अधिक भरी हुई है। इसी की ओर संकेत करते हुए पूर्व आईपीएस अफसर एम नागेश्वर राव ने ट्वीट किया, “ये फर्जी कंपनी PETA एक चैरिटेबल संस्था है जो कम्पनीज़ एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत है। लेकिन इसके उद्देश्य दूर दूर तक परमार्थ से नाता नहीं रखते। मेरा वित्त मंत्री निर्मल सीतारमण से निवेदन है कि तुरंत इस कंपनी का पंजीकरण रद्द करे” –
https://twitter.com/MNageswarRaoIPS/status/1447634027825938433?s=20
एक ट्विटर यूजर जैपरकाश चमोली ने PETA के दोहरे मापदंडों को उजागर करते हुए ट्वीट किया,
“कमाल है, पोलो के लिए घुड़सवारी सही है। रेसिंग के लिए घुड़सवारी उचित है, और पुलिसिंग के लिए भी घुड़सवारी उचित है, परंतु शादी में घोड़ी पर बैठना क्रूरता है?
अगर घृणा को संस्थागत करना हो, तो उसका नाम होगा PETA, क्योंकि वह केवल हिन्दू त्योहारों और रीतियों को निशाना बनाता है”
https://twitter.com/saffronguy45/status/1447827641042567168?s=20
लेकिन आपको क्या लगता है, PETA ने ऐसा पहली बार किया है? आजकल PETA उतना ही प्रासंगिक है, जितना पत्रकारिता के जगत में एनडीटीवी और क्रिकेट में पाकिस्तान। इसीलिए अपने आप को लाईमलाइट में रखने के लिए PETA किसी भी हद तक गिरने को तैयार है, और किसी भी हद का अर्थ है किसी भी हद तक। उदाहरण के लिए अप्रासंगिकता के प्रकोप से जूझ रहे PETA ने अपने चैनल के जरिए अश्लीलता फैलाने का काम तक किया। TFI ने PETA के कई काले करतूतों पर कई बार प्रकाश डाला है।
PETA ने भारत में गौवंश के विरुद्ध अभियान चलाने से लेकर पटाखों के विरुद्ध तक, अपना एजेंडा थोपा है, यद्यपि इसे अन्य किसी भी धर्म के त्यौहारों से लेश मात्र भी फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे में अब इसको जब कोई भाव नहीं देता है, तो पेटा अपनी प्रासंगिकता बचाने के लिए फ्रूट पॉर्नोग्राफी एवं अश्लीलता भी फैलाने लगा है, और फलों के जरिए अश्लीलता को विस्तार दे रहा है।
People for the Ethical Treatment of Animals अर्थात पेटा… एक ऐसा संगठन है जिसका गठन पशुओं को बचाने के साथ ही उनके अधिकार को विस्तार देने के लिए किया गया था, इसके विपरीत अगर अब ये कहें कि पेटा फ्रूट पॉर्नोग्राफी एवं अश्लीलता को प्रमोट करने लगा है, तो संभवतः गलत नहीं होगा, क्योंकि उसका हालिया कैंपेन इसी ओर इशारा करता है। पेटा एक अभियान के तहत 3 सप्ताह का एक शाकाहारी चैलेंज नामक अभियान चला रहा है, जो कि कुछ हद तक समझ आता है, किन्तु इसके विपरीत पेटा फलों को किसी अश्लील खिलौने की तरह भी पेश कर रहा है।
परंतु समस्या यहीं पर खत्म नहीं हुई। अश्लीलता तो अश्लीलता, PETA भारत के विरुद्ध खुलेआम प्रोपगैंडा को भी बढ़ावा देता है, चाहे अमूल दूध को लेकर हो या फिर वैक्सीन को लेकर। जून 2021 में TFI के ही एक अन्य विश्लेषणात्मक पोस्ट के अनुसार,
“ PETA ने ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर नवजात बछड़े के सीरम के बदले कोई और समाधान ढूंढने को कहा है। पेटा ने अपने पत्र में कहा है कि वैक्सीन बनाने के लिए बछड़ों को जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी मां से जुदा कर दिया जाता है, जिससे मां और बछड़े, दोनों भावनात्मक रूप से परेशान होते हैं।” ये जानते हुए भी कि केंद्र सरकार ने COVAXIN को लेकर स्पष्ट कहा था कि उसमें किसी प्रकार का Bovine सीरम यानि गाय के बछड़े से जुड़ा अवशेष उपयोग में नहीं लाया जाया, PETA ने जानबूझकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने का घृणित प्रयास किया था।
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ऐसे में शादियों में ‘घोड़ियों’ के उपयोग को लेकर अपने हास्यास्पद ट्वीट से PETA ने एक बार फिर भारत के प्रति अपनी हीन भावना और अपनी घृणा जगजाहिर की है। जिस प्रकार से विवाहों में घोड़ियों के उपयोग को लेकर उसने हायतौबा मचाई है, जिनका विवाह में वास्तविक उपयोग एक घंटे का भी पूरी तरह से नहीं होता, और उनका पूरा रख रखाव किया जाता है, उससे स्पष्ट होता है कि वह भारत को नीचा दिखाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।