योगेंद्र यादव एक राजनीतिक गिद्ध है वो मृत राजनीतिक मुद्दों पर पलते हैं। पहले उन्होंने अन्ना आंदोलन की आड़ में अपना राजनीतिक स्वार्थ साधना चाहा और अब योगेंद्र यादव किसान बन किसान आंदोलन में शामिल हैं। लोकतंत्र और लोक व्यवस्था का ज़रा भी ज्ञान ना होने के बावजूद जिस प्रकार वो लोकपाल पर अपनी ज्ञान वर्षा करते थे उससे अज्ञानता की बाढ़ आ जाती थी। इसी कारण उन्हें अन्ना आंदोलन से निकाल फेंका गया।
वहां उन्हें राजनीतिक रोटी नहीं मिली तो वो “रोहिंग्या मुसलमानों” के दामाद बन गए। खूब हो हल्ला मचाया कि हम कागज़ नहीं दिखाएंगे। वहाँ भी सारा क्रेडिट बिकलिस दादी और लफंटर शाहरुख ले गया। बिचारे योगेंद्र यादव को किसी ने नहीं पूछा, ना ही उनको सुना गया।
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योगेंद्र यादव फिर खिसियानी बिल्ली की तरह CAA विरोध से निकल किसान आंदोलन में घुस गए। नए नए किसान बने थे। 25 लाख की गाड़ी में घूमनेवाले नए किसान को कृषि विज्ञान को समझने में परेशानी तो होगी ही इसीलिए यहाँ भी किसी ने इन्हें भाव नहीं दिया। ऊपर से किसान कानून पर ज्ञान देते देते मुंह में ऐंठन अलग पड़ गया और सारा क्रेडिट टिकैत ले गया।
अब उनके इस तुच्छ हृदयविदारक पीड़ा को कौन समझे? उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता कैसे बनी रहे? उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कैसे खुद की पहचान को बनाए रखें? यही सोचते सोचते योगेंद्र यादव लखीमपुर हिंसा में तथाकथित किसानों की क्रूरता का शिकार हुए मृतकों के परिजनों से मिलने पहुँच गए। उनके इस आचरण के कारण संयुक्त किसान मोर्चा मुख्यतः पंजाबी किसान क्रोधित हो गया ठीक वैसे ही जैसे गिद्ध के शवभक्षण पर जंगली पशु होते है।
12 अक्टूबर को योगेंद्र यादव शुभम मिश्रा के परिवार से मिलने गए थे जो कथित तौर पर किसानों को कुचलने के कारण प्रतिशोध में मारे गए थे। यादव ने उनके परिजनों से मिलने के बाद ट्वीट किया- “शहीद किसानों की श्रद्धांजलि से लौटते समय मैं भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के घर गया था। परिवार हम पर नाराज नहीं था। उन्होंने सिर्फ इतना पूछा, क्या हम किसान नहीं हैं? हमारे बेटे का क्या कसूर था? आपके सहयोगी ने क्रिया-प्रतिक्रिया में कुछ क्यों नहीं कहा? उनके सवाल मेरे कानों में गूंज रहे हैं।” अब इसी कारण यादव के निलंबन की मांग हेतु मुख्यतः पंजाब के किसान संघों ने संयुक्त किसान मोर्चा पर दबाव डाला।
सूत्रों के अनुसार, 21 अक्टूबर को संयुक्त किसान मोर्चाे की बैठक के दौरान योगेंद्र यादव को सबसे पहले लखीमपुर हिंसा के दौरान मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के शोक संतप्त परिवारों से मिलने के कृत्य के लिए माफी मांगने के लिए कहा गया।
जब योगेंद्र यादव ने माफी मांगने से इनकार कर दिया तो संयुक्त किसान मोर्चा ने उन्हें निलंबित करने का फैसला किया। किसान नेताओं के अनुसार योगेंद्र यादव सिर्फ आंदोलन में भाग ले सकते है उन्हें मंच पर बोलने की अनुमति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि योगेंद्र यादव अगले महीने कोर कमेटी की चर्चा में भी शामिल नहीं होंगे।
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योगेंद्र यादव की राजनीतिक क्षुधा के कारण उनकी छटपटाहट साफ झलक रही है। उनका राजनीतिक कौशल बस यही है कि उनके अँग्रेजी की उच्चारण शैली अच्छी है जैसे काँग्रेस में थरूर की है लेकिन, उनकी राजनीतिक समझ उतनी ही है जितनी राहुल गांधी की है। योगेंद्र यादव दोनों के सम्मिश्रण हैं जो 25 लाख की गाड़ी और 5000 का गमछा ओढ़कर कभी किसान बनना चाहते हैं तो कभी समाजवाद की अलख जगाना चाहते हैं परंतु, नीयति का दुर्भाग्य देखिये वो सिर्फ पढ़े लिखे पप्पू बन कर रह गए हैं।