पंजाब की राजनीति में लाभ की नीति के तहत कांग्रेस ने जो भी कदम उठाए थे, वो विधानसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस पर ही भारी पड़ते दिख रहे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपमानित करने के बाद पहले ही कांग्रेस पार्टी में दो गुट बन गए हैं, वहीं पार्टी ने पर्दे के पीछे से जिस किसान आंदोलन को समर्थन दिया था, वो अब न केवल कांग्रेस बल्कि किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले पंजाब के प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए मुसीबत बन सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा लाभ भाजपा के हिस्से आ सकता है। दलितों के मुद्दे पर पंजाब की राजनीति में अपना पैर मजबूत करने का प्रयास कर रही भाजपा की संभावित जीत की भविष्यवाणी TFI पहले ही कर चुका है। ऐसे में हाल की घटनाओं ने पंजाब की राजनीति में जातिगत-रणनीति की बड़ी उठापटक की नींव रख दी है, जिसका मुख्य बिन्दु निहंग सिख द्वारा की गई ‘दलित सिख की नृशंस हत्या’ हो सकता है।
दलित सिख की नृशंस हत्या
पंजाब में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और राज्य की पूरी राजनीति इस वक्त दलितों के मुद्दे पर हो रही है। इसी बीच पंजाब से दिल्ली आकर पिछले साल भर से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे कथित किसानों के मंच से कुछ ऐसा हुआ है जिसका सीधा असर पंजाब के विधानसभा चुनावों पर भी दिख सकता है। दशहरे के दिन एक दलित सिख किसान की निहंग सिख ने हत्या कर दी है और ये कोई साधारण हत्या नहीं थी, अपितु लखबीर सिंह नामक इस युवक को पहले तो बुरी तरह पीटा गया फिर उसके हाथ तक को काटा गया। तड़प-तडप कर मरने वाले इस नौजवान दलित सिख को निहंग सिखों ने कथित किसान आंदोलन के मंच के समीप ही लटका दिया, जो कि उनकी निर्ममता की कहानी बयां कर रहा है।
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भले ही इस घटना को लेकर सर्वाधिक सवाल गृह मंत्रालय और मोदी सरकार पर उठाए जा रहे हों, किन्तु इस पूरे घटना क्रम के बाद सबसे ज्यादा आक्रोश उन राजनीतिक दलों को झेलना पड़ सकता है, जिन्होंने इन कथित किसानों को आंदोलनकारी और अन्नदाता बताकर अनेकों नौटंकियां करते हुए उनका समर्थन किया है। वहीं, इस घटना पर युवक लखबीर सिंह के परिजनों ने न्याय की मांग की हैं और दोषियों को सख्त सजा देने की गुहार लगाई है। तरन तारन में रहने वाले मृतक युवक के ससुर ने कहा, “उसे वहां जाने का लालच दिया गया था, इस घटना की जांच होनी चाहिए और उसे न्याय मिलना चाहिए।” यदि परिजनों की बातों को ही सत्य माना जाए, तो ये कहा जा सकता है कि युवक को एक सोची समझी साजिश के तहत मारा गया है, जिसके बाद ये आरोप लगाया गया है कि उसने गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी की थी।
भाजपा उठा रही है दलितों का मुद्दा
गौरतलब है कि शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा ने जिस दिन पंजाब में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, उसी दिन एक दलित सिख को सीएम बनाने की बात कही थी, और ये महत्वपूर्ण था क्योंकि राज्य में दलितों की संख्या 32 फीसदी से ज्यादा है। भाजपा द्वारा राज्य में 14 अक्टूबर से ‘वाल्मीकि जयंती सप्ताह’ मनाने का ऐलान किया जा चुका है, जो कि 20 अक्टूबर तक चलेगा। इसके तहत शिक्षा, खेलकूद और अन्य एक्टिविटीज में मेधावी और उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले अनुसूचित वर्ग से सम्बंधित छात्र-छात्राओं को 16 अक्टूबर को सम्मानित किया जाएगा। पार्टी के पदाधिकारियों ने बताया है कि वाल्मीकि मंदिर सेक्टर-24 में 20 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती के दिन विशाल लंगर का आयोजन किया जाएगा, जिसमें कम से कम दस हजार लोग शिरकत करेंगे। स्पष्ट है कि भाजपा इससे पंजाब के दलितों को साधने की कोशिश कर रही है।
भाजपा पहले ही दलितों की पंजाब में दयनीय स्थिति को लेकर सवाल खड़े करती रही है। ऐसे में दलितों के लिए चलाए जा रहे इतने बड़े अभियान के बीच ही अराजकतावादी किसानों के आंदोलन में दलित की हत्या होना एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। यदि भाजपा पंजाब के विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को उठाती है, तो पार्टी के लिए सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकता है क्योंकि इस वक्त प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के कोर एजेंडे में दलित ही हैं।
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अपर कास्ट बनाम दलित
पंजाब में पहले से ही भावी विधानसभा चुनाव अपर क्लास बनाम दलितों के बीच का केन्द्र बन रहा था, लेकिन अब सिंघु बॉर्डर पर निहंग सिख द्वारा की गई दलित सिख की हत्या ने राज्य में ध्रुवीकरण की इस राजनीति को एक नया रंग दे दिया है। इसकी वजह ये है कि ये हत्या उन लोगों द्वारा की गई हैं, जिनको कांग्रेस से लेकर अकाली दल और आप द्वारा सीधा समर्थन दिया गया था। ऐसे में यदि पहले की दलितों के साथ हुई वारदातों और किसान आंदोलन स्थल की इस घटना को जोड़कर देखा जाए तो ये कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में अपर कास्ट बनाम दलितों के बीच के इस विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक फायदा भाजपा को ही होगा।
शिरोमणि अकाली दल जैसी अपर कास्ट प्रभुत्व वाली पार्टी ने दलितों को लुभाने के लिए बसपा के साथ गठबंधन किया। कुछ इसी तरह कांग्रेस ने भी कैप्टन को अपमानित करने के बाद दलितों को साधने के लिए चरणजीत चन्नी को सीएम बनाया। इसके विपरीत कथित किसानों द्वारा चल रहे आंदोलन के बीच से ही निहंग सिखों ने जिस नृशंसता से एक दलित युवक की हत्या की है, उसने इन सभी राजनीतिक दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है, क्योंकि इन अराजकतावादियों को राजनीतिक दलों से मिला समर्थन किसी से छिपा नहीं है।