वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन ने रविवार, 17 अक्टूबर को, ट्विटर पर जानकारी देते हुए बताया कि WHO का टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप अगले सप्ताह भारत बॉयोटेक की कोरोना वैक्सीन ‛कोवैक्सीन’ को इमरजेंसी उपयोग के लिए अनुमति देने के उद्देश्य के सम्बंध में मीटिंग करेगा। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि “#Covaxin के लिए EUL ( इमरजेंसी यूज़ लिस्टिंग ) पर विचार करने के लिए तकनीकी सलाहकार समूह 26 अक्टूबर को बैठक करेगा। WHO डोजियर को पूरा करने के लिए Bharat Biotech के साथ मिलकर काम कर रहा है। हमारा लक्ष्य है कि इमरजेंसी उपयोग के लिए स्वीकृत टीकों का एक व्यापक पोर्टफोलियो तैयार किया जाए और हर जगह लोगों तक वैक्सीन की पहुंच का विस्तार किया जाए।”
The technical advisory group will meet on Oct 26th to consider EUL for #Covaxin. @WHO has been working closely with @BharatBiotech to complete the dossier. Our goal is to have a broad portfolio of vaccines approved for emergency use & to expand access to populations everywhere https://t.co/lqQIyqItF9
— Soumya Swaminathan (@doctorsoumya) October 17, 2021
महत्वपूर्ण बात यह है कि WHO के विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र समूह के साथ बैठक इस महीने की शुरुआत में होनी थी, जिससे भारतीय वैक्सीन के संबंध में जोखिम/लाभ का आंकलन किया जा सके और इस पर अंतिम निर्णय लिया जा सके कि कोवैक्सिन को मंजूरी दी जाए या नहीं। हालांकि, WHO भारतीय वैक्सीन ‛कोवैक्सीन’ के प्रति लगातार सुस्त रवैया अपनाए हुए है। इस कारण यह मीटिंग देर से हो रही है।
भारतीय वैक्सीन के प्रति WHO ही नहीं पश्चिमी देशों में भी नकारात्मक रवैया अपनाया गया है। WHO के अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका में उनके देश के शीर्षस्थ संगठन Food and Drug Administration (FDA) द्वारा कोवैक्सीन के आपातकालीन उपयोग को मंजूरी नहीं दी गई है।
कोवैक्सीन को भारत के शीर्षस्थ ड्रग रेगुलेटर एजेंसी Drugs Controller General of India (DCGI) द्वारा इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है, इसके बावजूद FDA ने न तो DGCI की अनुमति को और न ही भारत बॉयोटेक द्वारा उपलब्ध कराए गए क्लीनिक ट्रायल के डेटा को अहमियत दी। FDA द्वारा भारत बायोटेक से कोवैक्सीन के तृतीय चरण के क्लिनिकल ट्रायल से संबंधित आंकड़े मांगे गए थे जिसे भारत बायोटेक द्वारा 3 जुलाई को उपलब्ध करा दिया गया था। तृतीय चरण में भारतीय वैक्सीन ने 77.8% की कार्यक्षमता दिखाई किंतु इसके बाद भी Moderna और फाइजर वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों द्वारा लगातार हो रही लॉबिंग के दबाव में FDA ने भारतीय वैक्सीन “कोवैक्सीन” को इमरजेंसी उपयोग की अनुमति नहीं दी।
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अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों के दबाव के कारण WHO भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा था। FDA का रवैया पूरी तरह से नस्लीय भेदभाव की भावना से ग्रस्त दिखाई देता है।
इस माह की शुरुआत में ही डब्ल्यूएचओ ने यह जानकारी दी थी कि भारत बायोटेक ने सभी आवश्यक डेटा उपलब्ध करवा दिए हैं। WHO की ओर से ट्विटर पर बताया गया था कि “कोवैक्सिन निर्माता, भारत बायोटेक, लगातार डब्ल्यूएचओ को डेटा प्रस्तुत कर रहा है और 27 सितंबर को डब्ल्यूएचओ के अनुरोध पर अतिरिक्त जानकारी भी दी गयी। WHO के विशेषज्ञ वर्तमान में इस जानकारी की समीक्षा कर रहे हैं और यदि यह डेटा (वैक्सीन पर) उठाए गए सभी सवालों का समाधान करता है, तो अगले सप्ताह डब्ल्यूएचओ के ( वैक्सीन से संबंधित) मूल्यांकन को अंतिम रूप दिया जाएगा।”
Covaxin manufacturer, Bharat Biotech, has been submitting data to WHO on a rolling basis & submitted additional info at WHO’s request on 27 September.
WHO experts are currently reviewing this info & if it addresses all questions raised, WHO assessment will be finalized next week https://t.co/s2vadrdePS— World Health Organization (WHO) (@WHO) October 5, 2021
भारतीय वैक्सीन को अनुमति दिलवाने के प्रयास सरकार ने जून-जुलाई महीने से ही शुरु कर दिए थे। भारत के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने संसद में जानकारी देते हुए कहा था कि “9 जुलाई तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को COVID-19 वैक्सीन, कोवैक्सीन, के लिए भारत बायोटेक द्वारा आपातकालीन उपयोग सूची (EUL) के लिए आवश्यक सभी दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए गए हैं और वैश्विक स्वास्थ्य निकाय द्वारा समीक्षा प्रक्रिया शुरू हो गई है।”
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भारत ने जुलाई की शुरुआत में ही सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध करा दिए थे किंतु WHO अक्टूबर माह के अंत तक भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका है। दुनिया में इस समय दो mRNA वैक्सीन ही उपयोग के लिए उपलब्ध हैं। मॉडर्ना और फाइजर ने बाजार पर कब्जा कर रखा है जबकि ये इतनी प्रभावी भी नहीं हैं। अमेरिका में इन दोनों वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ है। इसके बाद भी डेल्टा वेरिएंट के सामने यह वैक्सीन प्रभावी साबित नहीं हुई है। अमेरिका में इस वर्ष कोरोना के कारण मरने वालों की संख्या पिछले वर्ष की अपेक्षा बढ़ चुकी है।
वहीं, भारतीय वैक्सीन की बात करें तो इसने भारत में अपनी कार्यक्षमता को प्रदर्शित किया है। इसके स्टोरेज के लिए अतिरिक्त प्रबंध की आवश्यकता नहीं पड़ती है जिससे लॉजिस्टिक पर पड़ने वाला खर्च भी कम रहता है। ऐसे में यदि भारतीय वैक्सीन को वैश्विक स्तर पर प्रयोग के लिए अनुमति मिल जाती है तो इसकी बिक्री बहुत तेजी से बढ़ने की उम्मीद है।
WHO ने कोरोना के फैलाव की शुरुआत में चीन के कांड को छुपाने के लिए अनवरत प्रयास किए थे। WHO के रवैये ने अमेरिका को नाराज कर दिया था। शायद यही कारण है कि अब विश्व स्वास्थ्य संगठन अमेरिकी हितों की रक्षा में लगा हुआ है। WHO ने अपने इन्हीं कार्यों से अपनी विश्वसनीयता को समाप्त किया है।