नेपाल के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों के बिल्कुल विपरीत नीति का अनुसरण कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट पहले ही स्थानीय लोगों के गुस्से का सामना कर रहा है, क्योंकि चीन की नियत के प्रति स्थानीय लोगों में काफी संशय है। श्रीलंका और लाओस जैसे देशों के चीनी डेटट्रैप में फंसने के बाद नेपाली नागरिकों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इरादों के प्रति संशय पैदा होना स्वभाविक है।
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The Sunday Guardian Live के साक्षात्कार के दौरान नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री और वरिष्ठ नेता राजेंद्र महतो ने कहा कि “BRI प्रोजेक्ट अभी शुरुआती दौर में है। इससे पूर्व कि हम नेपाल में बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर आगे बढ़े, हमें इस पर बहुत विचार कर लेना चाहिए। सभी हितधारकों ‛स्टेकहोल्डर्स’ और आम जनता के बीच इसे लेकर व्यापकता से विमर्श होना आवश्यक है कि क्या BRI प्रोजेक्ट नेपाल के लिए उपयोगी है?”
महतो ने कहा कि इस प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ने से पहले कई कारकों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए जिसमें भारत के साथ में स्थित एक महत्वपूर्ण मुद्दा हैं। उन्होंने कहा, BRI के संदर्भ में विचार होना चाहिए कि “यह लोगों के लिए कितना उपयोगी है? यह हमारे (नेपाल के) राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को कैसे प्रभावित करेगा? यह भारत, हमारे पड़ोसी की भावनाओं को कैसे प्रभावित करेगा, जिसके साथ नेपाल 1,800 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है? हमें इस बात पर विशेष जोर देने की जरूरत है कि इस परियोजना पर निर्णय लेने से पहले यह सुनिश्चित हो कि नेपाली भूमि का इस्तेमाल किसी के खिलाफ नहीं किया जाना चाहिए। BRI से नेपाली आबादी को कैसे लाभ होंगे? अगर यह फायदेमंद नहीं है तो हमें आगे नहीं बढ़ना चाहिए, अगर यह फायदेमंद है तो ठीक है।”
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चीन का ट्रैक रिकार्ड रहा है बहुत खराब
नेपाल दक्षिण एशिया में सबसे पहला देश था जिसने चीन के साथ BRI परियोजना पर बातचीत शुरू की थी। हालांकि, इस मसले पर नेपाल के लिए अब तक का अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा है। ओली शासन के दौरान चीनी नियंत्रण वाले मल्टी बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट शुरू हुआ लेकिन उसे लेकर किसी प्रकार की पारदर्शिता नहीं बरती गई। चीन का बड़ी परियोजनाओं के निर्माण में ट्रैकरिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। 2013 में बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट शुरू होने के पहले ही चीन द्वारा नेपाल में बूढ़ी गंडकी हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाने की घोषणा की गई थी जिसे 2022 तक पूर्ण हो जाना चाहिए था किंतु अब तक इस प्रोजेक्ट को लेकर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ है। यहां तक कि इन परियोजनाओं के कारण नेपाल के पर्यावरणीय संतुलन पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है।
एक सर्वविदित तथ्य है कि नेपाल में बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत जो भी विकास कार्य किए जाने हैं उनका उद्देश्य नेपाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के बजाय भारत पर सामरिक दबाव बढ़ाना ही है। अपने भारी निवेश के बल पर ही चीन ने पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को अपनी धुन पर नचाया था। परिणामस्वरूप भारत भी नेपाल में अपने प्रभाव का प्रयोग करने पर विवश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच नेपाल को अपने पाले में लाने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा हो रही है जिसमें फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी का पलड़ा भारी है।
नेपाल के कई गांवो पर कब्जा जमा चुका है चीन
वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भारत समर्थक हैं। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ही नेपाल की विदेश नीति में होने वाले बदलावों की ओर संकेत करने के उद्देश्य से उन्होंने चीन-नेपाल सीमा विवाद के संदर्भ में एक पांच सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया था। यह कमेटी नेपाल के गृह मंत्रालय के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कार्य कर रही है। कमेटी को सीमा विवाद पर अपनी रिपोर्ट सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है।
केपी शर्मा ओली के शासन के दौरान पिछले साल सितंबर महीने में चीन ने नेपाल से जुड़ी अपनी सीमा पर नेपाली भूमि में लिमिलापचा क्षेत्र के अंदर 9 इमारतों का निर्माण कर दिया था। हालांकि, अतिक्रमण की सभी मीडिया रिपोर्ट को तत्कालीन ओली सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा खारिज कर दिया गया था।
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नेपाल के सर्वे और मैपिंग डिपार्टमेंट द्वारा पिछले वर्ष यह दावा किया गया था कि चीन ने नेपाल के साथ अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करते हुए नेपाल की सीमा में 1500 मीटर भूमि का अतिक्रमण कर लिया है। पूर्व में भी चीन ने नेपाल के रुई गांव को जबरन अधिग्रहित करके उसे तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र का हिस्सा घोषित कर दिया था। इसे एक क्रूर मजाक ही कहेंगे क्योंकि तिब्बत स्वंय एक बलपूर्वक अधिग्रहित देश है।
किंतु वर्तमान देउबा सरकार द्वारा जिस प्रकार बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को लेकर पुनर्विचार शुरू किया गया और चीन से सीमा विवाद को लेकर कैबिनेट स्तर की कमेटी का गठन किया गया है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि अंततः नेपाल, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों और उद्देश्यों के प्रति सजग हो रहा है। ओली सरकार में हुए समझौते जल्द ही सवालों के घेरे में आने वाले हैं। यदि पूर्व में हुए समझौतों को लेकर नेपाल सरकार कड़ा रुख अपनाती है तो चीन चाह कर भी इसका विरोध नहीं कर सकेगा और यदि उसने विरोध किया तो यह भारत के लिए नेपाल को पुनः अपने पक्ष में करने का एक सुनहरा अवसर बन जाएगा।