80 प्रतिशत चीनी मिसाइल हो सकती हैं ‘फुस्स’, अब चीनी रक्षा कान्ट्रैक्टर्स को भी संशय!

चीन ने साबित कर दिया कि उसके दावे खोखले ही रहते हैं!

चीन मिसाइल

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हर रोज चीन के बारे में ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं कि चीन ने IRBM मिसाइल का परीक्षण किया, चीन ने हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया, चीन ऐसी कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है, लगातार आ रही ऐसी खबरों को देखकर न सोचने वाला भी एक बार को यह अवश्य सोचेगा कि आखिर ऐसा क्या है कि चीन रोज ही नए-नए हथियारों का परीक्षण करता रहता है। आखिर कितना हथियार होगा चीन के पास! कुछ दिनों पहले ही चीन ने हाइपरसोनिक मिसाइल के परीक्षण का दावा किया था, जिससे विश्व भर में चिंता बढ़ गयी थी। हालांकि, अब सच्चाई खुल कर सामने आ रही है कि चीन की 80 प्रतिशत से भी अधिक मिसाइल Faulty यानी किसी न किसी समस्या के साथ हैं।

चीन के नए नियमों ने खोल दी उसकी पोल

दरअसल, चीन के ही एक नए नियम ने उसकी मिसाइल शक्ति की पोल खोल दी है, जो दावा कर रही है कि चीन की 80 प्रतिशत मिसाइल कबाड़ हैं। चीन एक संदिग्ध देश है, जहां से आई किसी भी वस्तु पर भरोसा नहीं किया जा सकता! चाहे वो Electronics हो या Software। यही हाल चीनी हथियारों का भी है। चीन दावे तो बड़े-बड़े करता है, लेकिन कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता। यह कम्युनिस्ट देश जिस तरह की अपारदर्शिता अपनाता है, वैसे में इसकी सच्चाई का पता लगाना भी लगभग नामुमकिन है। ऐसे में उसके द्वारा की गयी गलतियों से ही विश्व को उसकी सच्चाई का पता लगता है। रिपोर्ट के अनुसार मिसाइल का जखीरा तैयार करने के लिए चीन ने जो नए नियम बनाए हैं, उसी ने इस कम्युनिस्ट देश की पोल पट्टी खोल कर रख दी है। रिपोर्ट के अनुसार यह बात सामने आई है कि चीन जिन मिसाइलों के दम पर अपने पड़ोसियों को धमकाता था, वो सभी बेकार हैं।

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साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने मिसाइल को PLA में शामिल करने वाले नियमों को बदलकर इसे थोड़ा और कड़ा कर दिया है। पहले एयर टू एयर मिसाइल को सर्विस में लाने के लिए 8 सफल टेस्ट आवश्यक थे, लेकिन अब किसी भी मिसाइल को सर्विस में लेने के लिए 15 मूविंग टारगेट ध्वस्त करने होंगे।

गौरतलब है कि चीन में मिसाइल बनाने का जिम्मा सरकारी या अर्द्ध सरकारी कंपनियों पर है। चीन पहले से ही वैश्विक शक्ति बनने के लिए इन कंपनियों पर नई-नई तथा आधुनिक मिसाइल बनाने का दबाव बनाता था। ऐसे में ये कंपनियां भी जैसे-तैसे मिसाइल बना कर तैयार कर देती थीं तथा किसी भी तरह आठ मूविंग ऑब्जेक्ट पर निशाना लगाकर टेस्ट में सफल बना देती थी, जिससे ये मिसाइल सेना में शामिल हो जाए तथा उनका बड़े स्तर पर उत्पादन भी आरंभ हो जाए।

चीनी कॉन्ट्रैक्टर कर रहे जबरदस्त विरोध

हालांकि, पिछले कुछ समय से विश्व की राजनीति में बड़ा परिवर्तन आया है और चीन ऐसे समय में अपने सुपर पावर का तमगा खोना नहीं चाहता। यही कारण है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने हथियारों के जखीरे को मजबूत करने पर ध्यान दे रहे हैं। परंतु ऐसे ही समय में जब कई मिसाइलों ने जब धोखा दिया है तब उनके होश ठिकाने आए और उन्होंने मिसाइलों को सेना में शामिल करने के नियम कड़े कर दिये। SCMP की रिपोर्ट बताती है कि इस साल अगस्त में चीन के मिलिट्री रिसर्चर ली गेनचेंग की एरो वेपनरी जर्नल में एक रिपोर्ट छपी थी, जिसमें लिखा था कि चीन की सेना में कुछ असंतोषजनक उपकरणों की डिलीवरी और उनकी गुणवत्ता को लेकर समस्याएं सामने आई हैं। उसके बाद तो CCP में तहलका मच गया और ऊपर से आदेश आया कि किसी भी मिसाइल के बड़े स्तर पर उत्पादन से पहले जो भी समस्याएं आ रही हैं, वो सभी दूर होनी चाहिए।

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इस पर PLA ने यह प्रस्ताव रखा कि मिसाइल की मैन्युफेक्चरिंग के वक्त उन्हें 15 सफल ट्रायल का टारगेट दिया जाए या फिर 27 ट्रायल होने चाहिए, जिनमें से 26 कामयाब होने चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार PLA चाहती है कि उनके 90 प्रतिशत मिसाइलों का निशाना सटीक होना चाहिए। वहीं, दूसरी ओर मिसाइल कॉन्ट्रेक्टर इसका जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह स्पष्ट लिखा है कि मिसाइल बनाने का कॉन्ट्रेक्ट लेने वालों ने यह स्वीकार किया है कि अगर ये नियम लागू हो गया तो उनके द्वारा उत्पादित मिसाइलों में से मात्र 20 प्रतिशत या उससे भी कम मिसाइल ही सफल होंगी। यानी अगर यह कहा जाए कि चीनी जखीरे में से 80 प्रतिशत मिसाइल कबाड़ हैं तो यह गलत नहीं होगा।

मिसाइल बनाने वाली कंपनियों के इस विरोध के बाद शी जिनपिंग और CCP के दावों की पोल खुल गयी है। जाने अनजाने में ही सही, चीन ने नए नियम बना कर अपनी ही वास्तविकता दुनिया को बता दिया है कि उसके दावे खोखले ही रहे हैं।

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