वामपंथी हमेशा दक्षिणपंथ पर असहिष्णुता का आरोप लगाते रहते हैं। वो यह दावा करते हैं कि लोगों के मर्म को समझने की पूरी शक्ति सिर्फ और सिर्फ उन्हीं के पास है। हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने वामपंथ के Wokeism और उदारवादिता के काले चेहरे को सबके सामने ला दिया है। आप लोगों को नादिया मुराद तो याद होंगी। जी हां! वहीं इराकी महिला, जिन्होंने ISIS के चंगुल से खुद को आजाद कराया था और जिन्हें साल 2018 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। और बाद में नादिया मुराद ने एक किताब भी लिखी।
पिछले दिनों कनाडा में नादिया मुराद की किताब ‘द लास्ट गर्ल: माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी, और माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट’ एवं मैरी हेनिन की किताब ‘नथिंग बट द ट्रुथ: ए मेमोयर’ पर चर्चा होनी थी। उन्होंने माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट में इस बात का ब्योरा दिया था कि कैसे उन्हें इस्लामिक स्टेट ने गुलाम बनाया।
और पढ़ें: कभी गांधी परिवार की ‘बहू’ कहलाने वाली अदिति सिंह बनी BJP सदस्य
नादिया मुराद को तान्या ली द्वारा स्थापित एक किताब क्लब में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था, जहां विभिन्न माध्यमिक विद्यालयों की किशोर लड़कियां, इन महिला लेखकों को सुनने वाली थी। लेकिन कार्यक्रम शुरू होने से ठीक पहले कनाडा की सबसे बड़ी स्कूली संस्था टोरंटो डिस्ट्रिक्ट स्कूल बोर्ड (TDSB) ने इस बुक क्लब इवेंट को रद्द कर हंगामा मचा दिया है। नादिया मुराद ने अपनी किताब में आईएसआईएस और इस्लामी कट्टरपंथियों की क्रूरताओं का पूरा लेखा-जोखा विस्तार से बताया था।
लेकिन TDSB को इस बात का डर था कि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नादिया मुराद की पुस्तक अल्पसंख्यकों को “अपमानित” कर सकती है। 3 महीने पहले इस संगठन ने स्थानीय लोगों के लिए आक्रामक पाए जाने पर एक यूरोपीय साहित्य के 5000 प्रतियों को नष्ट करने का आदेश दिया था। TDSB द्वारा नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नादिया मुराद के कार्यक्रम को रद्द करने का कारण बताया गया कि इस तरह की घटना इस्लामोफोबिया को बढ़ावा दे सकती है।
संघर्ष की मिसाल हैं नादिया मुराद
14 साल की उम्र में नादिया मुराद को जिहादियों ने अगवा कर लिया और सेक्स-स्लेव बना दिया था। तब नादिया के भाइयों और बहनों सहित यज़ीदी धर्म के लाखों लोग उनकी आंखों के सामने मारे गए और हजारों यज़ीदी महिलाओं को इस्लामिक स्टेट के कट्टरपंथियों ने गुलाम बना लिया था। नेशनल पोस्ट के रेक्स मर्फी के अनुसार, “नरक के उस गड्ढे से नादिया ने अविश्वसनीय रूप से बचने के लिए व्यक्तिगत संसाधनों को जुटाया और दुनिया के उच्च सम्मान की ऊंचाइयों पर चढ़ने के लिए उन्हें नोबेल पुरुस्कार भी दिया गया है।”
दरअसल, TDSB का निर्णय केवल सेंसरशिप के बारे में नहीं है। यह ‘इस्लामोफोबिया’ के नशे के बारे में है, जिसने हर संबंधित नागरिक को चिंतित कर दिया है। इस्लामोफोबिया की तलवार अब उन अधिकांश कनाडाई लोगों के सिर पर लटकी हुई है, जो धर्म और राजनीति को अलग और सार्वजनिक क्षेत्र से बाहर रखना चाहते हैं। लेकिन वे नए उदार धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं करते हैं, जो कनाडा के मूल्यों की नींव बताई जाती है।
और पढ़ें: राज्य सभा सदस्यता समाप्त होते देख, सुब्रमण्यम स्वामी ने चूमा TMC का हाथ
TSDB के इस कदम की दुनिया भर के टिप्पणीकारों और लेखकों ने आलोचना की है। टोरंटो सन में तारक फतेह ने लिखा कि “हम में से कई लोगों के लिए जिन्होंने इराक के यज़ीदी लोगों की सामूहिक हत्या का अनुसरण किया है और मुराद के साहस पर चकित हैं, TDSB का निर्णय एक सदमे के रूप में आया। यह एक इस्लामवादी रवैये के प्रति अज्ञानता और अधीनता का प्रतीक है, जिसने कनाडा के कई संस्थानों, विशेष रूप से शहरी स्कूलों में घुसपैठ की है, जहां कैफेटेरिया को प्रार्थना हॉल में बदल दिया गया है, जिसमें पूर्ण प्रदर्शन पर लिंग भेद है।”
खतरे में है कनाडा!
बताते चलें कि जब कनाडा का सबसे बड़ा शिक्षा बोर्ड, खुद को इस्लामी संवेदनशीलता की सनक के सामने आत्मसमर्पण कर देता है और नादिया मुराद को इस्लामोफोबिया के संभावित योगदानकर्ता के रूप में नामित करता है, तो यह स्पष्ट होता है कि उदारवाद की वकालत करने वाले लोगों की नींव कितनी खोखली है। यह समस्याओं की शुरुआत है और पूरे विश्व में एक चुनौती की नींव है, जहां पर कट्टरपंथियों के खिलाफ बात ना करने पर हर प्रकार से प्रतिबंध लगाया जाना ही उत्तर हो गया है।
यह पहली बार नहीं है जब कनाडा में इस्लामवादियों ने इस्लामी कट्टरवाद के खिलाफ आलोचनात्मक आवाजों को दबाने की कोशिश की है। इससे पहले मई 2020 में, कनाडा में इस्लामवादियों ने कुछ हिंदू विरोधी प्रतिष्ठानों द्वारा समर्थित रवि हुड्डा को उनके ट्वीट पर निशाना बनाया, जबकि अधिकारियों को उनकी नौकरी से बर्खास्त करने के लिए धमकाया।
और पढ़ें: इंग्लैंड पर इस्लामोफोबिया का आरोप लगाने वाला अजीम रफीक यहूदियों से करता है घृणा
गौरतलब है कि इनके अंदर ‘डिस्मेंटलिंग हिंदुत्व’ पर प्रोग्राम करने की हिम्मत है, लेकिन नोबेल पुरस्कार विजेता की बात सुनने की हिम्मत नहीं है। यह विकृत रवैया कनाडा और अमेरिका के विनाश हेतु जमीन तैयार करेगा! ट्रूडो प्रशासन के तहत इस्लामवादी आवाजें बहुत जोर पकड़ रही हैं, और जब तक वह इस्लामिक कट्टरवाद पर अंकुश लगाने के लिए मैक्रों के रास्ते पर नहीं जाते, कनाडा खतरे में है!