मिलिए देश के ‘सबसे घटिया’ विदेश मंत्रियों से

इनका होना ही कलंक हैं!

विदेश मंत्री

हर युद्ध का परिणाम आवश्यक नहीं कि बल से ही निकले, कुछ युद्ध बुद्धि से भी जीते जाते हैं, और कूटनीति इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसी कूटनीति के बल पर एक प्रखर विद्वान् विष्णुगुप्त ने अखंड भारत का सृजन किया, और आचार्य चाणक्य के रूप में विश्वप्रसिद्ध हुए। परन्तु कुछ लोगों की बुद्धि ऐसी भी थी जिन्होंने भारत को अपनी घटिया कूटनीति से कलंकित किया एक कुशल विदेश मंत्री तो वही है जो अपने देश का उच्चतम स्तर पर प्रतिनिधित्व कर सके, और भारत की अखंडता और अक्षुण्णता का सम्मान कर सके। कुछ तो लाल बहादुर शास्त्री, सुषमा स्वराज, और सुब्रह्मण्यम जयशंकर जैसे रत्न मिले, तो कई ऐसे लोग भी मिले, जिन्हें देखकर यही लगता है इंका होना ही कलंक हैं!

5) सरदार स्वर्ण सिंह –

कभी कभी कुछ नहीं करना भी बहुत कुछ करने के समान होता है, और सरदार स्वर्ण सिंह इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इनके कुछ नहीं करने के कारण देश में कई समस्याओं को मानो स्वयं ही न्योता मिल गया, चाहे वो इस्लामिक आतंकवाद हो, नक्सलवाद हो या खालिस्तान हो।

1971 के ऐतिहासिक युद्द्ध में जो भारत ने प्राप्त किया, उसे शिमला कांफ्रेंस 1972 में भारत ने उतनी ही बेईज्ज़ती से गंवा दिया। न तो POK हमारे हाथ आया, न ही पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्त कराये भारत के हिस्से हाथ आये। लेकिन सबसे बड़ा अपमान तो तब था जब 93000 से अधिक पाकिस्तानी युद्धबंदियों के मुकाबले भारत के एक भी युद्धबंदी को छुडवाने के लिए न प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और न ही विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने किसी प्रकार की पहल की, जिसके कारण वह जीवनभर पाकिस्तान की जेलों में सड़ने को विवश रहे।

इससे पूर्व 1964 से 1966 के समय भी जब वे विदेश मंत्री थे, तो ताशकंद समझौते में भी वह पाकिस्तान के कूटनीतिज्ञों के समक्ष भारत का पक्ष मजबूती से रखने में असफल रहे थे, और जो कुछ भी भारत ने जीता था, वह सब गंवा दिया।

4) राजीव रत्न गाँधी –

राजीव गाँधी एक घटिया प्रधानमंत्री और एक निम्नतम रक्षा मंत्री थे, ये बात तो सर्वविदित है, परन्तु वे एक घटिया विदेश मंत्री भी थे, इस बारे में कम ही लोग परिचित हैं। लेकिन जिनके डीएनए में भारत को वैश्विक स्तर पर बेईज्ज़त कराना लिखा हो, उन्हें कोई कैसे रोक पायेगा?

वक्त के एक कालजयी संवाद को अगर राजीव गाँधी के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित करें, तो ‘राजीव सेठ, जिनके घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते!’। जो कांग्रेस आज चीख चीख कर भाजपा को नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी को भगाने देने के लिए कोसती है, वारेन एंडरसन नाम सुनते ही उन्हें सांप सूंघ जाता है, जो भोपाल गैस त्रासदी के प्रमुख दोषी थी, और जिन्हें भारत से भागने में राजीव गाँधी ने सबसे अधिक सहायता की, जो उस समय विदेश मंत्री भी थे!

इसके अलावा जिस प्रकार से अपने आप को विश्व विजेता सिद्ध करने हेतु मुहम्मद बिन तुगलक की भांति राजीव गाँधी ने देश के सैनिकों को श्रीलंका के गृह युद्ध में ज़बरदस्ती झोंका, वो भी किसी से नहीं छुपा है, और उसके क्या दुष्परिणाम राजीव को स्वयं भुगतने पड़े, ये भी किसी से नहीं छुपे हैं।

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3) जसवंत सिंह राठौड़ –

जब आप विजय से एक कदम दूर हों, और आप अपना पराक्रम दिखाने के बजाये अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने समान कार्य करें, तो कैसा लगेगा? कुछ ऐसा ही हुआ मेजर जसवंत सिंह राठौड़ के साथ, जिनके पास वर्षों पहले कंधार के रूप में एक सुनहरा अवसर आया था – अंतर्राष्ट्रीय दबाव में आये बिना राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए आतंकियों का सर्वनाश करने का। परन्तु हुआ ठीक उल्टा, और आज उन्हें भारत के उन विदेश मंत्रियों में गिना जाता है, जो भारत पर कलंक समान थे।

चन्द बुद्धिजीवियों और अंतर्राष्ट्रीय दबाव में झुककर इन्होने अपने इंटेलिजेंस एजेंसियों की एक न सुनी और तालिबानियों की सभी मांग पूरी करते हुए मसूद अज़हर, अहमद ओमर सईद शेख और शेख मोहम्मद ज़रगर जैसे आतंकियों को IC 814 के विमान के अपहृत यात्रियों के बदले रिहा करने का प्रस्ताव स्वीकार किया।

अटल बिहारी वाजपेयी भले ही एक ओजस्वी वक्ता और एक प्रभावशाली नेता था, लेकिन अपने आदर्शवाद में उन्होंने विदेश मंत्रालय त्यागकर जसवंत सिंह को विदेश मंत्री का पद देने की भारी भूल की, और जब कारगिल का युद्ध हुआ, तो उसके इंटेलिजेंस पर भी न उन्होंने कोई विशेष ध्यान दिया, और न ही भारतीय सैनिकों, विशेषकर कैप्टन सौरभ कालिया और स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा के साथ हुए दुर्व्यवहार के विरुद्ध किसी अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर कोई आवाज़ उठाई।

2) सलमान खुर्शीद –

यूँ तो इस सूची में महोदय को प्रथम स्थान मिलना चाहिए, परन्तु इस बारे में फिर कभी। केवल डेढ़ वर्ष में यदि कोई इतनी तबाही मचा सकता है, तो सोचिये, ये पूरे 5 वर्ष अगर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे होते तो क्या होता? जो आज इनके हिंदुत्व को इस्लामिक आतंकवाद से जोड़ने पर आक्रोशित हो रहे हैं, वे ये भूलते हैं कि सलमान खुर्शीद स्वभाव से ही ऐसे हैं। 2012 से 2014 तक विदेश मंत्री रहे सलमान खुर्शीद ने न केवल विदेशी मोर्चे पर पाकिस्तान के समक्ष भारत का मनोबल गिराने का प्रयास किया, अपितु चीन के सामने भी इन्होने घुटने टेक दिये।

आज जो कांग्रेस चीन के आक्रमण पर मोदी सरकार को आँखें दिखा रही है, उनको आइना दिखाने के लिए सलमान खुर्शीद का कार्यकाल ही काफी है। चीन ने मीलों अन्दर तक तम्बू गाड़ दिए, अतिक्रमण किये, भारत के सैनिकों को लज्जित किया, पर सलमान खुर्शीद ने चूं तक नहीं की। मुफ़्ती मोहम्मद सैयद के बाद यदि कोई इस देश पर सबसे बड़ा कलंक रहा है, जिसने अपने पद की गरिमा को अपने निजी हित के लिए मिटटी में मिला दिया, तो वे यही हैं।

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1) जवाहरलाल नेहरु–

अब इनके बारे में क्या ही बोलें। जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के लिए देश का विभाजन करवाया, जिन्होंने अपने हास्यास्पद विचारों के लिए भारत का लगभग इस्लामीकरण ही करवा दिया, यदि वे विदेश मंत्रालय संभाले, तो आप उनसे कैसी आशा करते है?

कश्मीर के विषय को फालूत में UN तक घसीटना, अवसर होते हुए भी पाक अधिकृत कश्मीर और बलोचिस्तान को हाथ से जाने देना, नेपाल का विलय ठुकराना, हैदराबाद की समस्या पर विदेश टूर पर जाना, तिब्बत को चीन को दान में देना, अवसर होते हुए भी UN सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता को चीन को दान में देना, अपने हाथों से अपने देश को बेचना  कोई इनसे सीखे ।

इनकी प्रखर विदेश नीति की बात करने चलो तो किस्से अनंत है, परन्तु 1962 के भारत चीन युद्ध ने सिद्ध कर दिया कि ये वास्तव में कितने अयोग्य थे। ऐसे अनेक नेता हैं, जिन्होंने विभिन्न मंत्रालयों के सहारे हमारे देश को लज्जित किया है, परन्तु अब समय आ चुका है इनके आवरण हटाने का।

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