जयचंद तो यूँ ही बदनाम थे, असल देशद्रोही तो ये हैं, जिन्होंने स्वतंत्र भारत को बारम्बार अपने विश्वासघात से कलंकित और खंडित करने का प्रयास किया, और इनमें से कुछ तो अलग ही स्तर के प्राणी थे। आइये देखें कुछ ऐसे ही रक्षा मंत्रालय संभालने वाले मंत्रियों को, जिन्होंने अपने कार्यों से भारत की छवि को खंड-खंड किया। अब हर कोई तो मनोहर पर्रिकर या राजनाथ सिंह जैसे नहीं हो सकता, परन्तु हर कोई को इनके जैसा भी नहीं होना चाहिए –
5) कृष्ण चन्द्र पन्त –
इस लिस्ट में पांचवें स्थान पर हैं 1987 से 1989 तक देश के रक्षा मंत्री रहे कृष्ण चन्द्र पन्त, जिनका रक्षा मंत्रालय से वैसा ही नाता है, जैसा गृह मंत्रालय से यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण। यू-टर्न के अघोषित राजा, राजीव गाँधी की सरकार में रक्षा मंत्रालय संभालने वाले, और फिर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष कृष्ण चन्द्र पन्त एक घटिया रक्षा मंत्री थे ।
खालिस्तान और कट्टरपंथी इस्लाम के घातक मिश्रण ने जितने घाव भारत को दिए हैं, उसकी नींव तो राजीव गाँधी ने रखी, पर क्रियान्वयन कृष्ण चन्द्र पन्त ने अपने कार्यकाल में अपने लचर प्रदर्शन से किया। यदि ओपरेशन मेघदूत और ओपरेशन ब्लैक थंडर को छोड़ दें, तो ये इस सूची में टॉप 3 के योग्य थे।
4) शरद गोविन्दराव पवार
कुछ लोग परदे के पीछे से काम करने में विश्वास करते हैं, और ऐसे में नींव कमज़ोर करने में शरद पवार का कोई सानी नहीं है। इन्होने दो साल देश के रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभाला, परन्तु जब तक उन्होंने 1993 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पुनः पदभार संभाला, उन्होंने देश की रक्षा व्यवस्था को ऐसा खोखला कर दिया कि देश में ब्लैक फ्राइडे जैसे बम विस्फोट होने लगे। देश की सुरक्षा को संभालने में स्वयं पीवी नरसिम्हा राव को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभालना पड़ा।
यूं तो देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर करने में गाँधी वाड्रा परिवार या मोरारजी देसाई एवं इंद्र कुमार गुजराल जैसे लोगों का योगदान भी कम नहीं है, परन्तु शरद पवार और इनमें अंतर स्पष्ट है – बंधु अपना काम सफाई से करते थे।
3) राजीव रत्न गाँधी –
जब थाली में सजाकर आपको व्यवस्था दी जाए, तो आप निस्संदेह उसका सम्मान नहीं करोगे, और राजीव गाँधी के साथ भी यही हुआ। हम सभी इस बात से भली भान्ति परिचित हैं कि एक प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गाँधी इस देश के लिए कितने बड़े कलंक थे, परन्तु बहुत ही कम लोग इस बात से परिचित हैं कि वे रक्षा मंत्री के रूप में भी देश के लिए उतने ही बड़े कलंक थे।
खालिस्तान के जिस पौधे को इंदिरा गाँधी ने सींचा था, उसे एक विशाल वृक्ष की रुप रेखा इन्होने ही दी थी। इनके राज में खालिस्तान कम होने के बजाये और सर चढ़कर हिन्दुओं को चिढाने लगा और पंजाबी हिन्दुओं पर जो असंख्य अत्याचार हुए, उसका आज तक कोई स्पष्ट लेखा जोखा नहीं हुआ। आज हमारा देश जो चीन और पाकिस्तान के दोतरफा मोर्चे के संकट का सामना कर रहा हैं, वो भी इन्ही की देन है।
अपने आप को अपने नाना जवाहरलाल नेहरु की भांति दिग्विजयी बनाने की लालसा में राजीव गाँधी ने मालदीव की बाधा तो पार कर ली, परन्तु श्रीलंका के गृह युद्ध में हस्तक्षेप करने का निर्णय उनके जीवन का सबसे घातक निर्णय सिद्ध हुआ, और अंत क्या हुआ, इसके लिए किसी विशेष शोध की आवश्यकता नहीं।
2) वेंगालिल कुरूप कृष्ण मेनन –
आज केरल को भारत में इसलिए नहीं जाना जाता कि उसने आदि शंकराचार्य, मार्तंड वर्मा जैसे महापुरुषों को जन्म दिया, शंकरलिंगम नम्बी नारायणन और परट्टू रवीन्द्रन श्रीजेश जैसे अनन्य देशभक्तों को जन्म दिया, बल्कि इसलिए कि उसने साक्षरता के नाम पर दशकों तक देश को उल्लू बनाया, आतंकवाद में भरपूर योगदान दिया, कोविड के मोर्चे पर देश को कलंकित किया और देश के दो सबसे निकृष्ट रक्षा मंत्री भी प्रदान किये – वीके कृष्ण मेनन एवं एके एंटनी।
वीके कृष्ण मेनन जवाहरलाल नेहरु के बेहद प्रिय माने जाते थे। उनकी सोच और उनके साम्यवादी यानी कम्युनिस्ट विचार जवाहरलाल नेहरु से काफी मेल खाते थे, और इसीलिए वे सरदार पटेल को फूटी आँख नहीं सुहाते थे। ये 1949 में देश के सर्वप्रथम भ्रष्टाचार के मामले, जीप घोटाला में नामजद थे, परन्तु इनकी स्पष्ट भूमिका के बावजूद नेहरु सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया।
आपको क्या लगता है, हम 1962 में चीन से युद्ध क्यों हारे? इसलिए कि वे शक्तिशाली थे? नहीं, इसलिए क्योंकि वीके कृष्ण मेनन और उनकी चाटुकार मण्डली ने देश को इतना शक्तिविहीन बना दिया था कि हमारे जवान माइनस 10 डिग्री जैसे तापमान में केवल स्वेटर पहनकर ।303 राइफल और जीर्ण शीर्ण शस्त्रों से चीनियों से जूझ रहे थे। वैसे भी, जब आप सैनिकों को शस्त्रों से लड़ने के बजाये घर बनाने और कप प्लेट बनवाने में लगवाओगे, तो क्या हाथ लगेगा?
वीके कृष्ण मेनन ने प्राण नाथ थापर और बृजमोहन कौल जैसे चाटुकारों की मण्डली अपने आसपास बिठा रखी थी, और जो भी उसके विरुद्ध जाता, तो उसका वे वही हश्र करते, जैसे उन्होंने तत्कालीन मेजर जनरल सैम मानेकशॉ का किया, जिनको उन्होंने देशद्रोह के झूठे मुक़दमे में फंसवा दिया। लेकिन चीन से मिली भयानक पराजय के बाद देशवासियों का भरोसा उठ गया और वीके कृष्ण मेनन को इस्तीफ़ा देने के लिए बाध्य होना पडा।
1) अरक्कापरम्बिल कुरियन एंटनी
लेकिन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन से भी बड़ा यदि कोई कलंक है, तो वे हैं त्रावणकोर के चेढताला जिले से आने वाले अरक्कापरम्बिल कुरियन एंटनी। वीके कृष्ण मेनन ने तो बस चाटुकारों की मण्डली बनाई थी और देश की सैन्य व्यवस्था को कमज़ोर किया, लेकिन एके एंटनी ने इस स्तर तक देश को कमज़ोर किया जिसका न आदि है और न कोई अंत। इनके कारण देश में अनंत आतंकी हमले हुए, बार बार माँ भारती का मस्तक झुका, और इन्होने सैन्यबलों का मनोबल गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इन्होने न केवल कई रक्षा सौदों में बाधा डाली, बल्कि हमारे देश के सैनिकों की ऐसी स्थिति कर दी कि जब मोदी सरकार ने शपथ ली थी, तो सैनिकों के पास पर्याप्त गोला बारूद तक उपलब्ध नहीं थे, सुरक्षा उप्करण तो दूर की कौड़ी रही। इनके कारण वर्षों तक राफेल का सौदा रद्द रहा। इनके कारण अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदों में ज़बरदस्त घोटाला हुआ, और न जाने कितना भ्रष्टाचार इनके कार्यकाल में होता रहा और इन्होने कुछ नहीं किया।
परन्तु इन्होने जो सबसे शर्मनाक कार्य किया, वो था हमारे देश के तत्कालीन सेनाध्यक्ष, जनरल विजय कुमार सिंह को सार्वजानिक तौर पर अपमानित करना और शेखर गुप्ता जैसे नीच पत्रकारों के साथ मिलकर एक कर्मठ सैनिक पर तख्तापलट का झूठा आरोप लगाना। 2010 में अपनी आयु को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका से जो लड़ाई प्रारंभ हुई, उसने अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के विनाश की भी नींव रखी, और एके एंटनी की निकृष्टता को भी जगज़ाहिर किया।
ऐसे न जाने कितने मंत्री होंगे, जिन्होंने देश से ऊपर अपने निजी हित या अपने पार्टी को रखा, और जिनके कारण भारत की अखंडता और अक्षुण्णता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा।ऐसे लोगों के वास्तविक चरित्र को आपके समक्ष उजागर करना हमारा प्रथम कर्तव्य है, क्योंकि ये देश के लिए सबसे बड़े अभिशाप रहे हैं।