पीएम नरेंद्र मोदी, नितिन गडकरी, पीयूष गोयल और गृहमंत्री अमित शाह समेत कई नेता बीजेपी के कद्दावर नेताओं की सूची में शामिल है। जब भी भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय टोली की बात होती है, तो इन नामों पर चर्चा सबसे पहले होती है। इन नेताओं ने न सिर्फ अपनी पार्टी के लिए काम किया हैं, बल्कि देश, समाज और संस्कृति को हमेशा से ऊपर रखा है। यहीं कारण है कि विपक्षी दलों के नेता भी इनके सामने टीक नहीं पाते। केंद्रीय नेताओं के अलावा राज्य स्तर पर भी बीजेपी के पास ऐसे-ऐसे नेता हैं, जिन्होंने मौका मिलते ही अपना प्रभाव दिखाना शुरु कर दिया है, प्रदेश की कायाकल्प को बदलकर रख दिया है। यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ, असम में हिमंता बिस्वा सरमा, त्रिपुर में बिप्लब कुमार देब और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
लेकिन समस्या यह है कि कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जहां बीजेपी को और ज्यादा मेहनत करने की जरुरत है। देश के 14 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 29 विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे मंगलवार को घोषित हुए। इस उपचुनाव में बीजेपी ने असम, मध्य प्रदेश, उत्तर-पूर्व और तेलंगाना के कई विधानसभा सीटों पर जबरदस्त जीत हासिल की है। जबकि हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और बंगाल में पार्टी का प्रदर्शन चिंताजनक रहा है। बीजेपी ने असम के सभी 5 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की, तो वहीं हिमाचल प्रदेश में पार्टी 3 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट हार गई है। इस राज्य में अगले साल ही विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में उपचुनावों में बीजेपी को मिली हार से कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
और पढ़े- PM मोदी के खिलाफ “विपक्षी एकता” की राह में आड़े आ रहे हैं ममता और केजरीवाल
हिमाचल प्रदेश की हार बहुत बड़ी है
हिमाचल प्रदेश में हुई हार बीजेपी को कुछ समय के लिए परेशान करेगी, क्योंकि पार्टी को न केवल 3 विधानसभा सीटों पर मात मिली, बल्कि बीजेपी, मंडी की अपनी पारंपरिक लोकसभा सीट भी हार गई है, जिसपर पिछले लंबे समय से पार्टी ने कब्जा जमा रखा था। गौरतलब है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य हिमाचल प्रदेश है, तो वहीं राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का गृह जिला मंडी है। इसके बावजूद बीजेपी इस सीट पर जीत हासिल करने में नाकाम रही। मंडी लोकसभा सीट के स्थानीय नेता कीमतों में बढ़ोतरी जैसे मुद्दों को इस हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं द्वारा पार्टी के भीतर राजनीतिक शून्यता की ओर इशारा भी किया जा रहा है!
असम और तेलंगाना में BJP का दबदबा
असम (5), तेलंगाना (1) और मध्य प्रदेश की 2 सीटों पर जीत पार्टी में उत्साह भी लाया है। ये ऐसी सीटें हैं, जहां से बीजेपी की जीत प्रदेश की सियासत में अलग ही पटकथा लिख सकती है। तेलंगाना की हुजूराबाद उपचुनाव परिणाम में बीजेपी उम्मीदवार इटेला राजेंदर ने अपने टीआरएस प्रतिद्वंद्वी गेलू श्रीनिवास यादव को 23,855 मतों से हराया है और इसके साथ ही केसीआर के साम्राज्य में बीजेपी ने सेंधमारी शुरु कर दी है। दरअसल, भूमि हथियाने के आरोप में राज्य मंत्रिमंडल से हटाए जाने के बाद जून में इटेला राजेंदर ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का आधारहीन बताया था। जिसके बाद अब वो बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव में उतरे और बेहतरीन जीत हासिल की है।
और पढ़े: बीजेपी कभी सेक्युलर पार्टी नहीं बन सकती और कांग्रेस कभी हिंदूवादी नहीं हो सकती
राज्य से होकर ही गुजरेगा केंद्र का रास्ता
अब इस राजनीतिक उलटफेर को ध्यान से समझने की कोशिश करते है। जहां पर भी बीजेपी ने जीत हासिल की है, वहां पर राजनीतिक रूप से अत्यंत सक्रिय लोग मौजूद हैं और जमीनी स्तर से जुड़े कई बड़े राजनीतिक चेहरे भी हैं। तेलंगाना में जीत का सबसे बड़ा कारण यह है कि वहां भाजपा के पास इटेला राजेन्द्र जैसे नेता मौजूद हैं। जिन्होंने अपने प्रचार-प्रसार के साथ ही केंद्र सरकार द्वारा देशहित में किए जा रहे कामों को भी जमीन पर प्रदर्शित करने का सार्थक प्रयास किया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी ने केसीआर के गढ़ में सेंधमारी कर ली। असम में बीजेपी ने 5 सीटों पर जीत हासिल की है। प्रदेश के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हैं, राज्य की सियासत में उनकी पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है।
वहीं, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी ने बेहतरीन जीत हासिल की, क्योंकि राज्य में पार्टी के पास शिवराज सिंह चौहान और नरोत्तम मिश्रा जैसे नेता हैं, जिन्होंने उपचुनाव में भी प्रचार प्रसार किया। लेकिन सत्ता में रहने के बावजूद हिमाचल प्रदेश में बीजेपी का जीत हासिल न कर पाना, कई तरह के सवाल खड़े करता है। वहीं, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्यों में मिली हार ने अब पार्टी को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है।
मौजूदा समय में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी है। विपक्षी पार्टियां भी इसके केंद्रीय नेतृत्व की दाद देती हैं, लेकिन राज्य स्तरीय नेतृत्व की नाकामी के कारण उपचुनाव में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है। ऐसे में यह समय की मांग है कि बीजेपी को राज्य स्तर पर भी दिग्गज नेताओं को काम पर लगाना होगा, क्योंकि केंद्र का राज्य से होकर ही गुजरेगा!
और पढ़े: मुफ़्त स्वास्थ्य सेवाओं का उपहार देकर अपने सैनिकों को हलाल करने की तैयारी में लगा चीन