UAE में चीन ने किया गुप्त नौसैनिक सुविधा का निर्माण लेकिन पकड़े जाने पर बेस ही छोड़ दिया

खुलासा होने पर बेस छोड़कर भागा चीन!

संयुक्त अरब अमीरात यानी UAE मध्यपूर्व एशिया में स्थित एक ऐसा देश है, जो अपनी आर्थिक और सामरिक शक्ति के मामले में इस क्षेत्र का प्रमुख खिलाड़ी है। वहीं, अब चीन जो कि पूर्वी एशिया में स्थित एक साम्यवादी देश है, वैश्विक प्रभुत्व बनने का सपना देख रहा है। इतिहास की वह घटना आपको याद ही होगी, जब जर्मनी में नस्लीय शुद्धता के लिए असंख्य यहूदियों को मार डाला गया और जर्मनी एक महाशक्ति बनकर उभरा। यह सब किया धरा एडोल्फ़ हिटलर का था। ऐसे में, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग में एडोल्फ़ हिटलर जैसी समानताएं देखने को मिलती हैं।

वो कैसे? चलिए आपको बताते हैं, एक ओर चीन वैश्विक महाशक्ति बनने की होड़ में लगा हुआ है तो दूसरी ओर दुनिया उसके खिलाफ खड़ी है। चीन दुनिया भर में नौसैनिक और सैन्य अड्डे बना रहा है। ऐसा करके चीन अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने पर तुला हुआ है, लेकिन वो इस बात से परिचित है कि उसकी इस तरह की महत्वाकांक्षाओं का मजाक बनाकर उसे बेनकाब कर दिया जाता है। वह दुनिया में अपना वर्चस्व का महिमामंडन करता फिर रहा है, किन्तु वास्तव में, यह एक दुष्चक्र है, जिसमें चीन ने खुद को फंसा लिया है।

चीन बिना अनुमति के UAE में बना रहा था गुप्त नौसैनिक अड्डा

हाल ही में, संयुक्त अरब अमीरात में चीन की करतूतों का पर्दाफाश हुआ है। वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, खलीफ़ा बंदरगाह की सैटेलाइट इमेजरी ने एक चीनी शिपिंग कॉरपोरेशन कॉस्को द्वारा निर्मित और संचालित कंटेनर टर्मिनल के अंदर संदिग्ध निर्माण कार्य का खुलासा किया था। सबूत के तौर पर, एक बहुमंजिला इमारत के निर्माण हेतु स्पष्ट रूप से विशाल खुदाई की गई थी और इसे जांच से छुपाने की कोशिश की गयी थी।

CNN के अनुसार, “अबू धाबी के पास एक चीनी शिपिंग पोर्ट के अंदर एक गुप्त विकास पर निर्माण रोक दिया गया है।”

इस बीच, वाशिंगटन डीसी में UAE दूतावास ने एक बयान जारी कर कहा कि, “UAE के पास कभी भी चीनी सैन्य अड्डे या किसी भी प्रकार की चौकी की मेजबानी करने के लिए कोई समझौता योजना, वार्ता या इरादा नहीं था।”

गार्जियन के अनुसार, “बाइडेन प्रशासन ने इस मामले को तुरंत संयुक्त अरब अमीरात के सामने उठाया, जो अपने ही देश के एक प्रमुख बंदरगाह में चीन के नापाक मंसूबों से अपरिचित था। सितंबर के अंत में, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जेक सुलिवन और व्हाइट हाउस के मध्य पूर्व समन्वयक, ब्रेट मैकगर्क संयुक्त अरब अमीरात गए और निर्माण स्थल पर मिली अमेरिकी खुफिया जानकारी का विवरण अमीराती अधिकारियों को बताया। अमेरिका और अमीरात के अधिकारियों द्वारा मौके पर निरीक्षण के बाद चीनी अड्डे का निर्माण रोक दिया गया था।”

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ब्लू वाटर नेवी बनने की चीन की बेताबी

चीन एक ऐसा देश है, जिसकी महत्वाकांक्षाओं की कोई सीमा नहीं है। हालांकि, इसके पास सीमित संसाधन हैं। उदाहरण के लिए, चीन एक वैश्विक महाशक्ति बनना चाहता है और वह संयुक्त राज्य अमेरिका को मध्य एशिया में उसके प्रभाव की स्थिति से बेदखल करना चाहता है। इसके अलावा, चीन एक ग्रीन वाटर नेवी संचालित करता है जो वैश्विक उपक्रमों के सक्षम नहीं है। दुनिया भर में रणनीतिक स्थानों पर नौसैनिक अड्डे बनाकर चीन अपने लिए एक ब्लू वाटर नेवी की फौज़ खड़ी करना चाहता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका को हर कदम पर चुनौती दे सके।

चाहे वह पूर्वी अफ्रीका का देश ज़िबूती, पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह हो – इन सभी को चीन ने इस तरह से हड़प लिया है, जैसे यह सब कुछ शुरू से हीं उसका हो। चीन ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी ऐसा ही करने की कोशिश की है, हालांकि, वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया, संयुक्त अरब अमीरात ने उसे देश से बाहर खदेड़ दिया है।

चीन के ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति उसे ले डूबेगी

अगर गौर करें संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका की दोस्ती पर, तो यह एक रणनीतिक साझेदारी है, जिसके तहत संयुक्त अरब अमीरात अमेरिका से F-35 लड़ाकू जेट प्राप्त कर सकेगा। ऐसे में, संयुक्त अरब अमीरात के लिए वाशिंगटन डीसी और बीजिंग में से किसी एक को चुनना कठिन हो सकता है। लेकिन बीते कुछ सालों में कोरोना महामारी के फैलने के बाद चीन और UAE की दोस्ती को पूरी दुनिया ने देखा था, जब चीन ने इसे और बहरीन जैसे अन्य अरब देशों के साथ-साथ कई विकासशील देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराया था। इतना ही नहीं बल्कि चीन पर भरोसा करते हुए, संयुक्त अरब अमीरात ने तो अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण भी करवाया।

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इसे चीन की चालाकी हीं कहेंगे कि चीन ने संयुक्त अरब अमीरात को चीन निर्मित साइनोफार्म वैक्सीन के अधिक कीमत वाले बूस्टर शॉट्स उपलब्ध कराये ताकि अधिक प्रभावशाली टीके का निर्माण किया जा सके। ऐसे में, चीन के इस ‘फुट डालो-राज करो’ की नीति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उजागर किया गया है, जो बिना किसी अनुमति के और नियमों की अनदेखी कर विभिन्न देशों की संपत्तियों का दुरुपयोग करता है। एक बात तो तय है कि चीन के लिए आने वाले समय में राह बेहद कठिन होने वाली है अगर वो इसे मजाक समझ रहा है, तो इसमें कोई दोराए नहीं है कि वैश्विक पटल पर चीन की नीति हीं उसे ले डूबेगी।

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