विपक्ष एकजुटता या फिर संगठित विपक्ष की बातें भारत में लंबे समय से हो रही है। इस लंगड़ी सरकार की मांग वाले 2014 के बाद से ज्यादा सक्रिय हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्षी दलों के भीतर डर और बढ़ गया है और वह चुपचाप एक साथ रहने में भलाई समझने लगने है।
सवाल यह है कि यह विपक्ष कितना संगठित है? हर गठबंधन के लिए आवश्यक है कि कोई दल नीचे रहे और अपनी महत्वकांक्षा को किनारे रखकर काम करे लेकिन आज के विपक्ष में ऐसा कौन है जो ऐसा करने की कोशिश कर सकता है? कोई नहीं! इनकी महत्वकांक्षाओं की लड़ाई गोवा में स्पष्ट रूप से दिख रही है। गोवा की सभी 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला करने के बाद टीएमसी ने अपना चुनावी अभियान तेज कर दिया है। वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी (आप) ने घोषणा की है कि वह 2022 में गोवा विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
अब यहां पर संगठित विपक्ष की वकालत करने वाले, एक दूसरे को नोंचने के लिए तैयार है। यहां पर विपक्ष की जिस प्रकार की कुंठाएं बाहर निकल कर आ रही है, कोई भी व्यक्ति यह बता सकता है कि यह सब सिर्फ एक नौटंकी है और ये कभी संगठित नहीं हो सकते। TMC, AAP, कांग्रेस जैसे विपक्षी दल पंजाब और गोआ में चुनाव लड़ने वाले है। कई बार ये आमने-सामने होकर लड़ाई लड़ेंगे!
AAP और TMC की गोवा की लड़ाई
ममता बनर्जी आगामी गोवा चुनावों में भी पैठ बनाने की कोशिश कर रही हैंl 30 अक्टूबर को एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने AAP पर कटाक्ष करते हुए कहा, “आप क्या सोचते हैं- क्या केवल अरविंद केजरीवाल ही इस देश में हर जगह चुनाव लड़ सकते हैं और कोई अन्य राजनीतिक दल नहीं है l”
आगे बढ़ते हुए उन्होंने यह भी कह दिया कि कार्यकर्ता अन्ना हजारे की बदौलत केजरीवाल राजनीति में आये है।
पिछले कुछ हफ्तों में TMC सुप्रीमो की तस्वीर और ‘गोनीची नवी सकल’ (गोवा की नई सुबह) के नारे वाले कई पोस्टर पूरे राज्य में लगाए गए हैं। 29 सितंबर कोगोवा के पूर्व सीएम लुइज़िन्हो फलेरियो एवं पूर्व विधायक लवू ममलेदार, कांग्रेस महासचिव यतीश नाइक और विजय पोई, कांग्रेस सचिव मारियो पिंटो डी सैन्टाना और आनंद नाइक, कवि शिवदास सोनू नाइक पार्टी में शामिल हुए हैं।
आप का पलटवार
गोवा की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस के प्रवेश पर आप गोवा के संयोजक राहुल म्हाम्ब्रे कहते हैं, ”हम तृणमूल कांग्रेस का स्वागत करते हैं, हम लिएंडर (पेस) जैसी हस्तियों का भी गोवा में स्वागत करते हैं लेकिन वह यहां सिर्फ पर्यटन के तौर पर आए है! 3 महीने पहले आकर कोई पैराशूट राजनीति नहीं कर सकता है!”
उधर दूसरी ओर, आप प्रमुख और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी अयोध्या, अजमेर शरीफ और वेलंकन्नी में क्रमश: हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों को मुफ्त तीर्थयात्रा मुहैया कराएगी। गोवा की अपनी पिछली यात्राओं के दौरान, केजरीवाल ने गोवा के लोगों को मुफ्त बिजली और नौकरियों की घोषणा की थी।
कांग्रेस भी हाथ धोने लगी
दो राजनीतिक दलों के बिल्लियों वाले झगड़े में लाभ बंदर का ही होता है। कांग्रेस भी इस लड़ाई में अपना स्थान बनाना चाहती है। गोवा कांग्रेस प्रमुख गिरीश चोडनकर ने रविवार को कहा कि राज्य में सदस्यों से ज्यादा पार्टी के होर्डिंग हैं और आरोप लगाया कि भाजपा के थिंक टैंक ने कांग्रेस के वोट को तोड़ने के लिए ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी के रूप में “एक और टीम” शुरू की है।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और आम आदमी पार्टी (आप) पर निशाना साधते हुए चोडनकर ने यह भी कहा कि गोवा की सरकार गोवा से होगी, न कि पश्चिम बंगाल या दिल्ली से चलेगी।
“अभी उनके (टीएमसी) होर्डिंग्स में केवल ममता बनर्जी दिखाई देती हैं। मुझे नहीं पता कि ममता बनर्जी गोवा में क्या करेंगी? AAP केवल (अरविंद) केजरीवाल को दिखाती है, उन्हें गोवा में क्या करना है? गोवा के लोगों को बंगाल हो या दिल्ली से नहीं चलाया जा सकता है , गोवा को गोवा से चलाना है।”
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने रविवार को कहा कि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस गोवा विधानसभा चुनाव में ‘सीमांत खिलाड़ी’ होंगी और कांग्रेस भाजपा को हराने और अगली सरकार बनाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है।
प्रमोद सावंत ने अवसर बनाया
TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के गोवा में अलग-अलग कार्यक्रमों में भाग लेने के मद्देनजर मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने रविवार को कहा कि इस तरह के “राजनीतिक पर्यटन” से टैक्सी और होटल व्यवसाय को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी, जिन्हें कोरोनावायरस महामारी के कारण चोट पहुंची है।
मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, “यह राजनीतिक पर्यटन है। अगले चार महीनों के दौरान, टैक्सी और होटल व्यवसाय, जो महामारी के कारण प्रभावित हुए थे, उन्हें इस तरह के पर्यटन के साथ एक अच्छा व्यवसाय मिलेगा।”
विपक्ष के लिए उम्मीद कहां है? कहीं नही! क्यों? क्योंकि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी दो क्षेत्रीय नेता है और दोनों मुख्यमंत्री है। इन दोनों से समय समय पर राष्ट्रीय आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं को प्रकट किया है और कठिन बाधाओं के बावजूद उन्हें साकार करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिज़ प्रकार की राजनीति यह दोनों करते है, उससे प्रदेश में लड़ाई और केंद्र में एकता हो ही नहीं सकती है। यह सब एक राजनीतिक आदर्शवादके तौर पर ठीक लगता है बाकी इसकी जमीनी हकीकत एकदम शून्य है!
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