हेमंत करकरे, एक ऐसा नाम जिसे एक समय भारत का बच्चा-बच्चा जानता था। हेमंत करकरे मुम्बई ATS के प्रमुख थे और 26 नवम्बर के आतंकी हमले जिसे 26/11 के नाम से जाना जाता है, उसमें उन्हें वीरगति प्राप्त हुई थी। हेमंत करकरे 26/11 के हमले के पहले ही एक चर्चित नाम बन चुके थे। उन्होंने मालेगांव ब्लास्ट की जांच की जिसके बाद हिन्दू आतंकवाद की कहानी बुनी गई। साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित सहित कई अन्य लोगों को इस बम धमाके का मुख्य आरोपी बनाया गया। हालांकि, बाद में यह बात स्वयं जांच एजेंसियो ने स्वीकार की कि मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा पर आरोप लगाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले। वहीं कर्नल पुरोहित को भी कोर्ट से बेल मिल गई।
कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद का तिलिस्म बनाया
हिन्दू आतंकवाद की कहानी उस दौर में गढ़ी गई जब पाकिस्तान लगातार भारत में बम धमाके करवा रहा था। वाजपेयी सरकार ने आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कई सख्त कदम उठाए थे। कारगिल युद्ध और ऑपरेशन पराक्रम इसके उदाहरण थे। ऐसे में पिछली सरकार के प्रतिमानों के आगे UPA की चुप्पी, कांग्रेस के कद को घटा रही थी। कांग्रेस ने बजाए पाकिस्तान पर कार्रवाई करने के हिन्दू आतंकवाद का तिलिस्म बनाया। देश के गृहमंत्री बिना सबूत यह बोलने लगे कि RSS की शाखाओं में आतंकी ट्रेनिंग हो रही है। इसी दौरान 2006 में मालेगांव में एक ब्लास्ट हुआ, जिसमें शुरू में इस्लामिक संगठन SIMI के आतंकियों को पकड़ा गया। जांच एजेंसियों ने सबसे पहले सिमी के आतंकी नूर उल हुडा को पकड़ा। वहीं अन्य आतंकियों के सम्बंध लश्कर ए तैयबा से बताए गए।
हालांकि, कुछ ही समय में पुलिस ने इस बम धमाके के लिए अभिनव भारत को दोषी ठहराया और इसके बाद हिन्दू आतंकवाद की कहानी को आगे बढ़ाया गया। साध्वी प्रज्ञा का मामला इस धमाके से अलग है लेकिन हमें इस मामले को भी उपरोक्त संदर्भ में समझना चाहिए कि किन हालातों में जांच एजेंसियां, मामले को सुलझा रही थीं। इसका एक उदाहरण बाटला हाउस एनकाउंटर भी था, जिसमें आतंकियों को कांग्रेस सरकार के मंत्रियों ने ही निर्दोष बता दिया था। अजीब ही खिचड़ी पक रही थी और खिचड़ी पकाने और खिलाने के इस दौर में ही हेमंत करकरे ने साध्वी प्रज्ञा के मामले की जांच की थी।
UPA के सबसे पसंदीदा पुलिसकर्मी थे हेमंत करकरे
हेमंत करकरे का निधन विशेष चिंता का विषय है। 26/11 से एक दिन पहले हेमंत करकरे कुछ बेचैन थे। वह चिंतित थे, शायद किसी अनहोनी की आशंका में। 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में पूर्व विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने हमलों से एक दिन पहले करकरे से मुलाकात की थी। सालियान ने कहा, ‘करकरे किसी अनदेखे दबाव में थे।” मैंने उनसे कहा कि वह एक अच्छे हिंदू है और उन्हें अपने धर्म के रूप में अपना काम करना चाहिए। मैंने उनसे कहा कि साध्वी अपने धर्म अनुसार कार्य कर रही हैं और उन्हें अपने धर्म अनुसार कार्य करना चाहिए।
हेमंत करकरे की पत्नी के अनुसार, वे महाराष्ट्र पुलिस के ATS प्रमुख के रूप में अपनी नौकरी छोड़ने और नए विचारों के साथ प्रयोग करने के लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय फर्म में शामिल होने पर विचार कर रहे थे। उनकी पत्नी कविता करकरे ने बताया कि, “उनका यह सपना अधूरा रह गया।”
सोचने वाली बात है कि एक व्यक्ति जो एक पुलिसकर्मी के रूप में राजनीतिक हितों की सेवा करते हुए अपने जीवन का समय व्यतीत कर रहा था, वह अपनी नौकरी क्यों छोड़ना चाहेगा? आपको बता दें कि हेमंत करकरे कोई साधारण पुलिस अधिकारी नहीं थे। वह उस समय भारत के अब तक के सबसे पसंदीदा पुलिसकर्मी थे। वह तत्कालीन यूपीए सरकार के चहेते थे। सभी हाई-वोल्टेज राजनीतिक मामलों के लिए, और जो कांग्रेस सरकार के उद्देश्य की सेवा करते थे।
ये लड़ाई बिल्कुल एकतरफा थी!
साल 2008 में, 26/11 के हमलों से पहले ध्यान मालेगांव बम विस्फोट पर था, जिसमें कांग्रेस भारत में फैले हिंदू आतंक के झूठ को फैलाने की कोशिश कर रही थी। हेमंत करकरे पर बिना सबूत के व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और हिरासत में उन्हें सबसे भयानक तरीकों से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया था। यह याद रखना चाहिए कि 26/11 ऐसे समय में आया था जब कांग्रेस पार्टी ‘हिंदुत्व आतंक’ का एक दुर्भावनापूर्ण और झूठा आख्यान बनाने की कोशिश कर रही थी। यहां भी, करकरे कांग्रेस का गंदा काम कर रहे थे, क्योंकि उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, शंकराचार्य स्वामी दयानंद पांडे और अभिनव भारत के कुछ सदस्यों को आरडीएक्स बम की साजिश रचने और लगाने और विस्फोट को अंजाम देने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
हेमंत करकरे 26/11 हमले में जब वीरगति को प्राप्त हुए, उस समय उनकी गाड़ी आतंकियों के सामने से गुजर रही थी। जब आतंकियों ने उनपर गोलियां चलाईं, उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिल पाया। जवाबी कार्रवाई के लिए बंदूक उठाने के पहले ही हेमंत करकरे और उनके साथीयों की मृत्यु हो गई। दुखद तथ्य है कि यह लड़ाई बिल्कुल एकतरफा थी। हालांकि, करकरे को सच्ची श्रद्धांजलि यही होती कि इस मामले की जांच भली प्रकार से होती।
हेमंत करकरे बहुत अधिक जानते थे!
किन्तु देश पर हुए सबसे बड़े हमले के बारे में अब यह खुलासे हो रहे हैं कि इस हमले में जांच अधिकारियों ने सबूत छुपाए। हाल ही में महाराष्ट्र पुलिस के रिटायर्ड ACP शमशेर खान पठान ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि परमबीर सिंह ने अजमल कसाब के पास से मिले फोन को एक जूनियर ऑफिसर से लेकर, जांच अधिकारियों को देने के बजाए अपने पास रख लिया। उनका आरोप है कि परमबीर ने मोबाइल फोन को जांच के दायरे में नहीं आने दिया और सबूत छुपाकर कुछ महत्वपूर्ण लोगों की मदद की।
यह आरोप कितने सही हैं कितने नहीं इसकी जाँच होनी चाहिए। जाँच इसकी भी होनी चाहिए कि हेमंत करकरे जिन परिस्थितियों में आतंकियों के सामने आए, वह भाग्य का खेल था या आतंकियों को उनके आने की सूचना पहले से मिल गई थी। इतने वरिष्ठ अधिकारियों को 18 साल के लड़कों ने बिना संघर्ष के मार दिया।शायद बहुत कुछ ऐसा है जो सामने नहीं आया है या शायद हेमंत करकरे को इसलिए भी मारा ग़या क्योंकि वो बहुत अधिक जान गए थे!