भारत सरकार संसद के भावी शीतकालीन सत्र में एक नया बिल लेकर आ सकती है जिसके बाद पेड न्यूज को इलेक्टरल ऑफेन्स या चुनावी धांधली की श्रेणी में रखा जाएगा। इनफार्मेशनटेक्नोलॉजी के संबंध में कार्य करने वाली संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने इस संदर्भ में अपनी रिपोर्ट में सर्वसम्मति से यह निर्णय किया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नए बिल द्वारा पेड न्यूज के चलन को प्रतिबंधित व नियंत्रित किया जा सकता है। स्टैंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में ऐसे सुधार के जरिए पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों के उत्थान की बात कही है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता में कार्य कर रही संसदीय कमेटी ने सरकार से रिपोर्ट के माध्यम से मांग की है कि लॉ कमीशन के साथ मिलकर इस मामले पर आगे बढ़ा जाए। कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉ कमीशन ने भी चुनावी सुधारों पर बनाई गई अपनी 255वीं रिपोर्ट में भी ऐसे ही सुधार लागू करने की सिफारिश की थी। लॉ कमीशन ने पेड न्यूज को चुनावी अपराध की श्रेणी में रखने की मांग की थी।
साथ ही कमेटी ने पेड फेक न्यूज़ पर नियंत्रण के लिए इसकी परिभाषा के दायरे को बढ़ाने की सिफारिश की है। कमेटी ने भारत में फेक न्यूज़ के बढ़ते चलन को लेकर चिंता व्यक्त की है तथा यह बात उठाई है कि भारत में फेक न्यूज़ के कारण यदि किसी व्यक्ति की छवि को नुकसान पहुंचता है तो उसकी शिकायत के निवारण के लिए कोई अलग तंत्र नहीं है। जिस प्रकार अपराध के लिए पुलिस विभाग के रूप में शिकायत निवारण तंत्र है उसी प्रकार सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अथवा अन्य किसी माध्यम से फैलाई जाने वाली फेकन्यूज़ पर नियंत्रण तथा दोषियों पर कार्रवाई के लिए कोई अलग तंत्र नहीं है। इसलिए कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस संदर्भ में एक नया तंत्र विकसित करने की सिफारिश की है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि “यह (नया तंत्र) शिकायत निवारण को मजबूत करेगा, जो न केवल पीड़ित व्यक्ति / संगठन की मदद करेगा बल्कि मीडिया में नैतिकता के मानकों को बनाए रखने में भी मदद करेगा”
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पिछले दिनों राष्ट्रीय मीडिया द्वारा कुछ राजनीतिक दलों के हितों की पूर्ति के लिए कई बार फेकन्यूज़ फैलाई गई। आधी अधूरी जानकारी पर ही मीडिया ने खबरें चलाईं, यह सोचे बिना की इससे परिस्थितियां हिंसक हो सकती हैं। उदाहरण के लिए हाथरस में कथित रेप कांड को लेकर तरह तरह की खबरें चलाई गई थीं। इसी प्रकार लखीमपुर खीरी में हुई घटना में भाजपा नेताओं का मीडिया ट्रायल शुरू हो गया था, बिना यह सोचे कि वास्तविकता क्या है और क्या त्वरित रूप से किसी निर्णय पर पहुँचने से हिंसा और नहीं भड़केगी।
यही नहीं भारत में कई पत्रकार चुनाव आते ही, खुले रूप से अपने प्रिय नेताओं की छवि चमकाने के लिए रिपोर्टिंग शुरू कर देते हैं अथवा उनके सकारात्मक इंटरव्यू लिए जाते हैं। ऐसे में चुनाव भी स्वाभाविक रूप से प्रभावित होते हैं। अतः चुनाव आयोग को यह अधिकार मिलना ही चाहिए कि वह यह जांच कर सके कि पत्रकार की पत्रकारिता किसी लोभवश प्रभावित न हो। साथ ही मीडिया कवरेज का खेल चुनाव को प्रभावित न कर सके।