मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के उस फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है जिसमें सरकार ने हिंदू मंदिरों को दान में मिलने वाले सोने को पिघलाकर बैंक में जमा करने का निर्णय लिया था। सरकार की योजना मंदिरों को दान में मिलने वाले सोने को मोनेटाइज करने की थी। सरल तौर पर बैंकों में सोने को जमा करके सरकार ब्याज से पैसे कमाने की योजना लेकर आई है। तमिलनाडु सरकार के फैसले के विरुद्ध एडवोकेट एम सरवनन और वी गोपालकृष्णन ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा है कि सरकार सोने के मोनेटाइजेशन की प्रक्रिया तब तक नहीं कर सकती जब तक सरकार मंदिर के लिए नए ट्रस्ट का गठन नहीं कर देती है। ट्रस्ट के गठन के पश्चात तमिलनाडु सरकार का हिंदू रिलिजन एंड चैरिटेबल एंडोवमेंट विभाग, जो तमिलनाडु राज्य के मंदिरों की देखभाल और नियंत्रण के लिए बनाया गया है, उसकी संस्तुति पर हीसोने के मोनेटाइजेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।
मद्रास हाई कोर्ट का आदेश : मनमाने ढंग से हिंदू मंदिरों का शोषण न करे सरकार
हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि सरकार मोनेटाइजेशन की प्रक्रिया की निगरानी के लिए पूर्व न्यायाधीशों की 3 सदस्यीय कमेटी गठित करे। इस 3 सदस्यीय कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश तथा दो हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सम्मिलित होंगे। हालांकि, मद्रास हाई कोर्ट ने फिलहाल तमिलनाडु सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी है किंतु हिंदू मंदिरों के शोषण को पूर्णता बंद नहीं किया गया है।
मद्रास हाई कोर्ट ने केवल यह सुनिश्चित किया है कि सरकार मनमाने ढंग से हिंदू मंदिरों का शोषण न करे। हाईकोर्ट की समस्या यह है कि मंदिरों का निर्माण पूर्व में बनाए गए नियमों से हुआ है और ना केवल तमिलनाडु में बल्कि पूरे भारत में ही राज्य सरकारों व केंद्र सरकार द्वारा ऐसे कई नियम बनाए गए हैं जिनके कारण हिंदुओं के धार्मिक स्थलों का नियंत्रण सरकारी बाबुओं के हाथ में होता है।
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हिंदुओं के साथ भेदभाव क्यों?
हिंदू मंदिरों के सोने को पिघलाकर मोनेटाइजेशन में प्रयोग करने का कार्य वर्ष 1977 से हो रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि एक ओर भारत में राज्य व केंद्र सरकार चर्च, मस्जिद, मदरसों आदि मजहबी संस्थानों को अनुदान देती है। यहां तक कि सरकार हज के लिए सब्सिडी देती है, वहीं दूसरी ओर हिंदू मंदिरों पर टैक्स लगाया जाता है तथा ट्रस्ट के माध्यम से उनकी पूरी संपत्ति को सरकार अपने कब्जे में ले लेती है। यहां सवाल उठता है कि जब बाकी समुदायों को अपने धार्मिक संस्थानों को बढ़ाने तथा उनके संचालन के लिए पूरी छूट दी गई है, तो हिंदुओं को इस अधिकार से वंचित क्यों रखा गया है।
यदि हिंदू मंदिर भी स्वतंत्र होते तो मंदिरों को मिलने वाले दान का प्रयोग करके सनातन संस्कृति को देश-विदेश में पुनः प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया जाता। दुर्गम स्थानों पर रहने वाली आदिवासी हिंदू जनजातियां आज सनातन संस्कृति की मुख्यधारा से अलग हो गई हैं, तथा ईसाई मिशनरियों के षड़यंत्र का शिकार बन रही हैं। ऐसे में, उन्हें भी सनातन धर्म की छत्रछाया में वापस लाया जा सकता था। यह एक बड़ी चुनौती रही है कि जब भारत में सरकारी तंत्र सेक्यूलर होने का दावा करते हैं तब उन्हें धार्मिक मामलों से पूर्णतः पृथक रहना चाहिए न कि धार्मिक स्थलों का संचालन करना चाहिए।