NCERT कहने को तो भारत में शिक्षण व्यवस्था की देख-रेख करता है, लेकिन यही संस्थान भारत की मूलभूत संस्कृति से खिलवाड़ भी कर रहा है। इसका नतीजा हाल ही में देखने को मिला, जब प्रशिक्षण सामग्री में अमेरिकी वामपंथी और विषैली सोच को भारत में लागू करने की बात कही गई थी। हालांकि, देश के इतिहास को भी गलत तरह से प्रतिबिंबित कर मुगलों का महिमा मंडन किया गया है, जिसमें लैंगिक असमानताओं के मुद्दे पर मुगलों द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा की गई है। NCERT की किताबों में मुगल काल में किन्नरों की स्थिति को लेकर मुगलों की खूब प्रशंसा की गई है, लेकिन सत्य इससे बिल्कुल ही विपरीत है, क्योंकि ट्रांसजेंडर्स के साथ सर्वाधिक अत्याचार इन मुगलों के काल में ही हुआ था।
मुगलों का महिमामंडन
हाल ही एनसीईआरटी ने प्रशिक्षण संबंधी एक सामग्री जारी की थी, जिसमें लैंगिक असमानताओं और भेद-भाव को खत्म करने के नाम पर भारत में अमेरिकी सोच को थोपा जा रहा था। ऐसे में इस सामाग्री का सोशल मीडिया पर ताबड़तोड़ विरोध हुआ, नतीजा ये कि इसे वापस ले लिया गया। इसके विपरीत यही एनसीईआरटी अपनी किताबों के माध्यम से आए दिन मुगलों का महिमा मंडन करते रहता है, जिसका उदाहरण कक्षा 7वीं की इतिहास की किताब के एक चैप्टर ‘The Mughal Empire’ में मिलता है। इसमें बताया गया है कि किन्नरों की मुगल साम्राज्य में किन्नरों को विशेष पद दिए गए थे। स्पष्ट तौर पर कहें तो ये दिखाने की कोशिश की गई थी कि कैसे मुगल किन्नरों को अधिक महत्व देते थे।
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कक्षा 7वीं की इतिहास की किताब के चैप्टर ‘The Mughal Empire’ मुताबिक, “किन्नरों ने मुगल साम्राज्य में महत्वपूर्ण प्रशासनिक और राजनीतिक भूमिकाएं निभाई थी। उन्हें ख्वाजा और नज़ीर के रूप में जाना जाता था या दोनों प्रेयोक्ति उनके नामों में जोड़े गए थे। अकबर के समय के सबसे प्रतिष्ठित किन्नर अधिकारियों में से एक इतिमाद खान थे, जिनके पास राज्य के वित्त के प्रशासन का महत्वपूर्ण प्रभार था। बाद में उन्होंने बंगाल की विजय में खुद को प्रतिष्ठित किया और 1576 में भाकर के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया। अन्य प्रमुख किन्नरों में से ख्वाजा खास मलिक थे, जिन्होंने इखलास खान की उपाधि प्राप्त की और 1,000 का पद धारण किया। वहीं, अंबर को इतिबार खान की उपाधि के साथ अदालत के एक अधिकारी के रूप में पदोन्नत किया गया था और बाद में दिल्ली के राज्यपाल के रूप में नियुक्त भी किया गया था।” हालांकि, सोशल मीडिया पर मचे बवाल के बाद अब NCERT के चैप्टर से इस कंटेट को हटा दिया गया है।
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अमानवीयता के शिकार थे किन्नर
अब इन सबसे इतर, अगर इतिहास को देखें तो ये बिल्कुल विपरीत है। मुगल काल में किन्नरों की स्थिति अत्यधिक दयनीय थी। मुगल सेना किसी दूसरे धर्म की सेनाओं से युद्ध करती, तो जीत के बाद हारे हुए सैनिकों को बंदी बना लिया जाता था। बंदी बनाए गए इन सैनिकों के गुप्तांगों को काटकर, उन्हें जबरन किन्नर बनाया जाता था, जिसमें अनेकों की मृत्यु भी हो जाती थी। मुगलों का मानना था कि किन्नर बनने के बाद समाज उन्हें तवज्जो नहीं देगा, न ही वो अपना परिवार बना सकेंगे और न ही स्त्रियों के साथ संबंध स्थापित कर सकेंगे। किसी भी व्यक्ति को चौतरफा असहाय करने के बाद, वो मुगलों के आगे अपने सहज जीवन के लिए हाथ खड़े कर देते थे। यही कारण है कि कुछ किन्नरों को मुगल शासन में अहम पद मिले थे।
जबरन किन्नर बनाए गए लोगों को मुगल हरम में रखा जाता था। तब यह सर्वविदित था कि मुगलों में समलैंगिक संबंधों के प्रति विशेष रुची थी, जिसके कारण इन हरम में रखे किन्नरों का प्रयोग किया जाता था। एक सच ये भी है कि मुगल जीत के बाद हारे हुए राजा के कई बच्चों में से कुछ को बंदी बनाकर, उन्हें भी जबरन किन्नर बना देते थे। इन्हें सजा के तौर पर ये दंश सहना पड़ता था, वही बढ़ी संख्या में किन्नरों को नौकर के तौर पर रखा जाता था। ये सारी बातें इतिहासकार के एस लाल की ‘द मुगल हरम’ नामक किताब में लिखी हुई हैं, जो कि मुगलों के काले सच को उजागर करती है।
यौंन संबंधों के लिए प्रयोग
इतिहासकारों की किताबों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कैसे महमूद गजनवी अपने यौन सुखों के लिए कम उम्र के युवाओं का प्रयोग करता था। इसमें से कईयों को तो जबरन किन्नर बनाया गया था। दस्तावेजों के अनुसार कवि शर्माद काशानी को एक हिंदू लड़के अभय चंद पर ऐसा क्रश था, कि वह नग्न होकर उसके घर चला गया था! जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर की रिपोर्ट बताती हैं। कि सूरत के एक गवर्नर ने एक बार एक फकीर के एक खूबसूरत बेटे से यौन संबंध बनाए, जो कि इनकी अमानवीयता को दर्शाता है।
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ये तो कुछ चर्चित उदाहरण हैं, जो कि मुगल काल में किन्नरों की स्थिति को प्रतिबिंबित करता है। कानूनी तौर पर कभी सजा के रूप में तो कभी अपने विलासितापूर्ण जीवन के लिए किन्नरों का इस्तेमाल किया जाता था। ऐसे में कुछ किन्नर जिन्होंने यदि साम्राज्य में अपनी स्थिति को स्वीकार कर लिया, तो वो साम्राज्य के प्रिय बन गए! किन्तु ये कहना आपत्तिजनक है कि मुगल काल में किन्नरों को बहुत अधिक महत्व मिलता था। ऐसे में एनसीईआरटी की किताबों को स्वीकृति देने वालों पर भी प्रश्न खड़े किए जा सकते हैं कि किताबों में अधूरा सच क्यों रखा है, जिससे मुगलों का एक तरफा महिमा मंडन हो?