पर्यावरण के मुद्दे पर दुनिया के विकसित देश आए दिन ज्ञान देते रहते हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन सभी कार्बन उत्सर्जन को पूर्णतः खत्म करने के लिए बयानबाजी करते रहते हैं। साथ ही ये देश भारत को जनसंख्या के मुद्दे पर पर्यावरण की दृष्टि से कोसते रहते हैं, किन्तु भारत की आक्रामकता इन सभी देशों को मुंह की खाने पर मजबूर कर देती है। इसका हालिया उदाहरण एक बार फिर सामने आया है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन संबंधी बैठक COP26 में भारत के प्रस्तावों को विशेष महत्व दिया गया है। अचानक कोयले के उपयोग को खत्म करने के बजाय चरणबद्ध तरीके से कोयले के प्रयोग कम करने के भारत के प्रस्ताव का सभी ने स्वागत किया है, जो कि एक कूटनीतिक जीत का पर्याय है।
चरणबद्ध तरीके से खत्म हो प्रयोग
खबरों के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हुए इस समझौते के दौरान भारत 200 देशों को ये समझाने में सफल रहा है कि कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के बजाय, विश्व को चरणबद्ध तरीके से इसके उपयोग को कम करना होगा। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने समझौते के अंतिम समय में कोयले को ‘फेज आउट’ के बजाय ‘फेज डाउन’ में शामिल करवाया है। इसके बाद भारत ने भी COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा के उस प्रस्ताव का समर्थन कर दिया, जिसे 200 देशों की ओर से पारित किया था।
अमर उजाला की रिपोर्ट बताती है कि इस वैश्विक सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लक्ष्य को पाने का प्रस्ताव पारित किया है। इसमें भारत और चीन अंतिम समय में कोयले और जीवाश्म ईधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की बजाय उसके उपयोग को कम करने की बात दुनिया के अन्य देशों को समझा पाए। ग्लासगो जलवाायु समझौते के तहत सभी देश 2030 तक अपने मौजूदा उत्सर्जन लक्ष्यों पर फिर से विचार करने पर सहमत हुए हैं और ये सभी बिन्दु भारत की कूटनीतिक जीत का संकेत देता है।
भारत की आक्रामकता का असर
वहीं, COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट की घोषणा करते हुए कहा, ‘यह तय है कि भारत के प्रस्ताव को पारित किया गया है।” उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि हम इस वार्ता से एकजुट होकर निकल सकते हैं और एकसाथ होकर लोगों और धरती को कुछ अहम प्रदान कर सकते हैं।”
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने ग्लासगो सम्मेलन में कहा, “कोई भी किसी विकासशील देश से यह उम्मीद कैसे कर सकता है कि वे कोयला और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को खत्म करने को लेकर वादा करे, जबकि उसके पास पहले ही विकास के एजेंडा को पूरा करने और गरीबी को मिटाने की चुनौती है।”
इतना ही नहीं, भारत ने वैश्विक स्तर पर विकसित देशों से भारत को हर्जाना देने की बात भी कही थी। भारत ये पक्ष रख चुका है कि विकसित देशों द्वारा होने वाला कार्बन उत्सर्जन भारत और अन्य विकासशील देशों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है, ऐसे में इन विकसित देशों को भारत को हुए नुकसान का हर्जाना देना होगा। भारत का यह आक्रमक रुख अमेरिका और चीन समेत सभी विकसित देशों के मुंह पर तमाचे के समान था। इसके विपरीत अब कोयले के उत्सर्जन को लेकर भारत का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित होना दर्शाता है कि भारत की आक्रामकता विकसित देशों पर भारी पड़ी है और वो भारत के सामने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर घुटने टेकने को मजबूर हो गए हैं।