आज प्रधानमंत्री ने सुबह सवेरे देश के नाम सम्बोधन में एक बेहद चौकाने वाला निर्णय लिया! यह निर्णय था कृषि क़ानूनों के वापस लिए जाने का। एक आम मोदी समर्थक के लिए यह निर्णय कई मायनों में स्तब्ध करने वाला था। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर एक तरह से कहा जाए तो आउटरेज भी शुरू हुआ और यह कहा जाने लगा कि PM मोदी कायर हैं और खलिस्तानियों के सामने झुक गए तथा अब अपने कदम वापस खींच रहे हैं! हालांकि, जिसके लिए मोदी सरकार ने कृषि कानून को वापस लिया वैसा होता नहीं दिख रहा है।
आंदोलनजीवी किसानों के नेता राकेश टिकैत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो कहीं नहीं जाने वाले हैं और आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार संसद में कृषि कानून को वापस नहीं ले लेती है।
अब प्रदर्शनकारी MSP और महंगाई सूचकांक की मांग उठाएंगे
दरअसल, गुरु पर्व के शुभ अवसर पर, प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा करते हुए कहा कि “संसद के आगामी सत्र में तीन कृषि विधेयकों को निरस्त कर दिया जाएगा” और उन्होंने प्रदर्शनकारियों से अपनी भूमि पर वापस जाने का आग्रह किया। हालांकि, राकेश टिकैत ने साफ कर दिया है कि किसान कहीं नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि, “आंदोलन खत्म नहीं हो रहा है, यह जारी रहेगा। संयुक्त मोर्चा की 9 सदस्यीय समिति का सम्मेलन आज हो रहा है। अगर सरकार अपना पक्ष रखना चाहती है, तो उसे इसी सम्मेलन में रखना चाहिए।”
आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा ।
सरकार MSP के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करें : @RakeshTikaitBKU#FarmersProtest
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) November 19, 2021
टिकैत की प्रतिक्रिया अपेक्षित थी क्योंकि कृषि कानून के विरोध के पीछे सरकार को कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए राज़ी करना नहीं था। अब प्रदर्शनकारी MSP के वैधीकरण और महंगाई सूचकांक जैसी अधिकतम मांगें को पूरा करने की बात उठाएंगे।
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टिकैत ने कहा, “एक बार लिखित में मिलने के बाद हम इसे स्वीकार कर लेंगे। हमारी मांगों को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। कई अन्य मुद्दे हैं, जो हम संसद द्वारा कानूनों को निरस्त करने के बाद उठाएंगे। हमें MSP नहीं मिल रहा है। हमें MSP पर कानून की जरूरत है।”
एमएसपी पर गारंटी कानून बनने तक जारी रहेगा आन्दोलन ;- @RakeshTikaitBKU pic.twitter.com/JQOCoOLe44
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) November 19, 2021
इससे स्पष्ट होता है कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने से विरोध खत्म नहीं होने वाला है क्योंकि इनमें से ज्यादातर किसान आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक और धार्मिक उद्देश्यों से दिल्ली में थे। जहां तक कृषि कानून के कंटेन्ट का सवाल है, एक भी निर्णय ऐसा नहीं था जिससे किसानों को नुकसान पहुंचे। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन किसानों को यह पता ही नहीं था कि बिल में था क्या!
अब Contract Farming का मुद्दा होगा सबसे अहम
जिस तरह से घटना क्रम घटित हुआ है, उससे यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार को पता था कि प्रदर्शनकारियों का मकसद सही नहीं है और कृषि कानून तो उनका प्राथमिक एजेंडा कभी नहीं रहा। अन्यथा, मंत्रिस्तरीय पैनल और किसानों के बीच बातचीत के परिणाम अवश्य सामने आते। अब अगर किसान वापस नहीं जाते हैं और कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद सड़कों को खाली नहीं करते हैं, तो सरकार के पास इसे सुनिश्चित करने के लिए बल प्रयोग करने का नैतिक अधिकार होगा।
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सरकार पहले ही सभी राज्यों में MSP पर उपज की खरीद को किसानों के खातों में ट्रांसफर कर बिचौलियों को हटा चुकी है। पंजाब और हरियाणा में जिन किसानों ने अपने भूमि रिकॉर्ड को केंद्रीय डेटाबेस के साथ एकीकृत नहीं किया है, उन्हें MSP नहीं मिल रहा है। आवश्यक वस्तुओं पर तीसरे विधेयक कानून के बजाय निष्पादन का मामला अधिक है और सरकार stock holding limits को लागू करने में पहले से ही सतर्क है। इसलिए, पहले और तीसरे बिल का कार्यान्वयन पहले ही हो चुका है और इन कानूनों के निरस्त होने से एकमात्र निर्णय contract farming का होगा।
यही कारण है कि अब गेंद प्रदर्शनकारियों के पाले में है। अब उनका अगला कदम पूरा देश देखेगा। उनका एक कदम भी सरकार को राकेश टिकैत जैसे नेताओं के खिलाफ कानून प्रवर्तन एजेंसियों का उपयोग करने का नैतिक अधिकार भी देगा।
मोदी सरकार का राजनीतिक रूप से एक चतुर कदम
राजनीतिक रूप से भी देखा जाए तो अमरिंदर सिंह, जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ लिया था, बीजेपी में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं। हालाँकि, उन्होंने एक नई पार्टी बनाई है परंतु उन्होंने बीजेपी में शामिल होने की मंशा जताई थी। इसके लिए उन्होंने शर्त रखी थी कि अगर सरकार कृषि कानूनों को निरस्त करती है तो वे BJP में शामिल होने की सोचेंगे। अब सरकार ने जब कानून वापस ले लिया है तो वह आने वाले हफ्तों में बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।
हालांकि, केंद्र सरकार के कृषि कानून से पीछे हटने का फैसला, इस कानून के समर्थकों और मोदी सरकार की पीछे न हटने की छवि के लिए नुकसान दायक है। परंतु, यह राजनीतिक रूप से एक चतुर कदम भी है क्योंकि कृषि कानूनों के अधिकांश परिणाम पहले ही प्राप्त हो चुके हैं और सरकार इस विरोध को समाप्त करने में सक्षम होगी।