कृषि क्षेत्र में वर्षों से अपेक्षित सुधारों को मोदी सरकार ने 2020 में लाए तीन कृषि कानूनों के द्वारा लागू किया था। इन सुधारों को लेकर वाजपेयी सरकार से लेकर अब तक कई कमेटियाँ गठित की जा चुकी हैं। सभी कमेटियों ने यही निष्कर्ष दिया है कि अन्य क्षेत्रों की तरह कृषि क्षेत्र को भी निजी निवेशकों के लिए खोलने से किसानों को लाभ होगा। शंकरलाल गुरु कमेटी ने प्राइवेट सेक्टर के निवेश की वकालत की, आल्हुवालिया कमेटी ने पुराने Essential Commodities Act को बदलने की मांग की, ऐसे ही अन्य कमेटियों की मांगों तथा सिफारिशों को ध्यान में रखकर तीनों कृषि बिल बने। लेकिन कुछ अराजक तत्वों द्वारा सड़क घेरकर सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया गया।
मुट्ठीभर लोगों के दुष्प्रचार अभियान को बल तब मिला जब इसमें ऐसे देश विरोधी तत्व शामिल हो गए जो अलगाववाद की विचारधारा को भी आगे बढ़ाने में नहीं हिचकते और जिसे भारत की अब तक की सबसे मजबूत सरकार माना जाता है, वह मोदी सरकार ऐसे तत्वों के आगे झुक गई। कृषि कानून वापस ले लेने की घोषणा कर दी गई है, साथ ही भारत को भुखमरी से मुक्त करने का सपना अब सपना बनकर रह गया है। भारत ने साल 2020-21 की तुलना में 2021-22 (अप्रैल-अगस्त) में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में 21.8 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हासिल की थी। यदि कृषि क्षेत्र में निजी निवेश आकर्षित होता तो इसके और तेजी से आगे बढ़ने की संभावना थी। स्वयं IMA ने भी भारत के कृषि कानूनों की सराहना की थी। लेकिन यह सब व्यर्थ रहा क्योंकि सरकार ने तोड़फोड़, आगजनी और सड़कजाम को वोट की शक्ति से अधिक शक्तिशाली मान लिया।
हालांकि, मोदी सरकार ऐसा पहली बार नहीं कर रही है। इसके पहले जब सरकार देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को और तेज करने के लिए भूमि सुधार कानून लाई थी, तो किसानों द्वारा उसका भी विरोध किया गया था। इस आंदोलन को संघ परिवार से संबंधित कई संगठनों का समर्थन प्राप्त हुआ था और विपक्षी दलों ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी। जिसके बाद सरकार झुक गई और देश के लिए आवश्यक भूमि सुधार कानून को वापस लेने का निर्णय कर लिया गया।
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जब सुप्रीम कोर्ट ने ST/SC एक्ट के दुरुपयोग को संज्ञान में लेते हुए यह निर्णय किया था कि इस एक्ट का प्रयोग तभी होना चाहिए जब प्राथमिक जांच में इसे लगाने के लिए पर्याप्त कारण उपलब्ध हो, तब इसका पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ था। पूरे देश में ST/SC समुदाय से जुड़े संगठनों ने विपक्षी दलों के साथ मिलकर आंदोलन किया जो कुछ जगहों पर हिंसक भी हो गया। मोदी सरकार इस तोड़फोड़ और आगजनी से दबाव में आ गई और इस वर्ग के वोटबैंक को नाराज न करने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध अमेंडमेंट एक्ट लेकर आ गई।
यह तीन उदाहरण बताते हैं कि जब-जब सरकार का सामना उग्र प्रदर्शन से हुआ है, सरकार दबाव में आ गई है। निश्चित रूप से वैदेशिक और सामरिक मोर्चे पर सरकार बहुत दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ती है लेकिन जब बात घरेलू राजनीति की आती है तो मोदी सरकार बहुत फूंक-फूंककर कदम रखती है। हाल ही में अजित डोभाल ने कहा था कि सिविल सोसाइटी युद्ध का एक नया फ्रंट है। ऐसे में बार-बार अगर सरकार समाज के कुछ तबकों के दबाव में झुकेगी तो भारत सुधार के रास्ते पर कभी आगे नहीं बढ़ सकेगा। पंगुता और नपुंसकता जैसे शब्द मोदी सरकार के लिए प्रयोग हों, लोगों को इसका मौका मिल जाए, यही मोदी सरकार की असफलता है।