कोरोना के उद्भव के कारण पूछने पर चीन ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध आर्थिक युद्ध छेड़ दिया था। ऑस्ट्रेलिया द्वारा होने वाले निर्यात को चीन में प्रवेश से रोका जाने लगा। विशेष रूप से कोयले के आयात को चीन में प्रतिबंधित कर दिया गया। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध आर्थिक युद्ध छेड़ना चीन को ही भारी पड़ा है क्योंकि चीन में कोयले की भारी कमी के कारण ऊर्जा संकट पैदा हो गया है। इसी कारण चीन ने अब अपनी योजना से वापस हटने का निर्णय किया है, जो स्पष्ट रूप से चीनी पराजय का दर्शाता है।
चीन के कस्टम विभाग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीन ने पिछले महीने, अर्थात अक्टूबर माह में, ऑस्ट्रेलिया से 2.78 मिलियन टन कोयला आयात किया है जो बताता है कि चीन का प्रतिबंध अघोषित रूप से ही लेकिन वापस ले लिया गया है। इसमें 778,000 टन कोयला कुकिंग कोल है, जो स्टील उद्योग में प्रयोग होगा तथा शेष कोयला बिजली उत्पादन के लिए प्रयुक्त होगा। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अब भी ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार को कोरोना पूर्व स्तर तक नहीं ले जाने वाला है। जो भी हो इतना तय है कि चीन को इस बात का एहसास हो गया कि वह अपने देश के उर्जा संकट को अधिक दिनों तक नजरअंदाज नहीं कर सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ठंड की शुरुआत में चीन ने अपनी नीति बदली है क्योंकि ठंड के दौरान चीन में बिजली की मांग और तेजी से बढ़ सकती थी।
ऊर्जा संकट से त्रस्त था चीन
चीन में पैदा हुआ ऊर्जा संकट ने उसकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। चीन को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, एनर्जी सेक्टर, फाइनेंशियल मार्केट आदि सभी क्षेत्रों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। चीन में ऊर्जा संकट जैसी समस्या के कारण एप्पल और टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों को भी नुकसान झेलना पड़ रहा था। एप्पल और टेस्ला ने अपनी विनिर्माण इकाइयों को भारत स्थानांतरित करने का निर्णय करना पड़ा। टोयोटा को भी अपनी विनिर्माण इकाइयों के संचालन में कठिनाई हो रही थी।
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन में ऊर्जा संकट इतना बढ़ गया था कि चीन के कई इलाकों में लोगों को सड़कों पर बिना ट्रैफिक लाइट के वाहन चलाने पड़ रहे थे। यहां तक कि मोबाइल फोन चार्ज करने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। हालांकि, चीन के आर्थिक बहिष्कार करने के कारण ऑस्ट्रेलिया को अपने कोयला, वाइन, बार्ले आदि निर्यात को लेकर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था लेकिन उसके लिए भारत जैसे मददगार देश थे। परंतु चीन को तो कहीं से भी मदद की आस नहीं दिखाई दे रही थी।
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व्यापार घाटे के बावजूद नहीं झुका ऑस्ट्रेलिया
हालांकि, चीन के बहिष्कार से हुए नुकसान के बावजूद ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन नहीं झुके। यहां तक कि विपक्षी दलों और पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से उन पर दबाव बनाया गया था। इसके बाद भारत को ऑस्ट्रेलिया की मदद में आना पड़ा। भारत ने ऑस्ट्रेलिया से कोयला खरीद बढ़ाकर ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस वर्ष की जनवरी में, चीन ने शीर्ष गुणवत्ता वाले ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगाकर ऑस्ट्रेलिया को दंडित करने के बारे में सोचा था, जिससे पहले से ही भेजे गए कोयले का शिपमेंट अधर में लटक गया। चीन की कुटिल चाल ने 70 जहाजों और 1,400 नाविकों को चीनी बंदरगाहों पर फंसे रहने के लिए मजबूर कर दिया, जो अपने माल को खाली करने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उनमें से कई को पहले ही अन्य गंतव्यों पर भेज दिया गया था, और अब शेष अपने नए खरीदार को ढूंढ रहे थे। इसी का फायदा उठाते हुए अब भारत ने इन ऑस्ट्रेलियाई कोयले को खरीदने का फैसला किया था। भारतीय फर्मों ने चीनी बंदरगाह पर गोदाम में रखे हुए कोयले को खरीदना शुरू कर दिया था। जब भारत में ऊर्जा संकट की अफवाह शुरू में उसके पूर्व भारत में चीनी बंदरगाह पर फंसे 2 मिलियन टन ऑस्ट्रेलियाई कोयले को खरीद लिया था।
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बता दें कि महामारी के बाद चीन को लगातार निशाना बनाने के कारण चीन को ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन, गृह मामलों के मंत्री पीटर डटन और विदेश मंत्री Marise Payne और उनकी पूरी सरकार से नाराज था। TFI द्वारा व्यापक रूप से रिपोर्ट में बताया गया है कि ऑस्ट्रेलिया उन कुछ देशों में से एक था जिसने आरंभ से ही कोरोनावायरस की उत्पत्ति की एक खुली, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए आवाज उठाया था। इसी से चीन नाराज हो कर कई ऑस्ट्रेलियाई वस्तुओं का बहिष्कार करने लगा था। परंतु अब चीन को अपने उद्योगों को चालू रखने के लिए कीमती ऑस्ट्रेलियाई कोयले का ऑर्डर देना पड़ा। यह ऑस्ट्रेलिया के लिए एक बड़ी जीत है और दुनिया भर के देशों के लिए एक सबक है। ऑस्ट्रेलिया आर्थिक रूप से सशक्त देश है किंतु चीन के सामने उसकी शक्ति बहुत कम है, इसके बाद भी ऑस्ट्रेलिया चीन के सामने नहीं झुका जिस कारण चीन को अंततोगत्वा अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी है।