इस्लामिक चरमपंथ वैश्विक चुनौती है। विश्व के लगभग सारे देश अब इस सच को स्वीकार करने लगे हैं। जैसे-जैसे वैश्विक आबादी बढ़ रही है, कौमी या सामुदायिक भावनाओं का भी निर्माण तेजी से हो रहा है। समस्या इस्लामिक देश में कम है क्योंकि वहां चरमपंथियों को राज्य के रूप में अंतिम मांग मिल गई है। समस्या है भारत में, जहां एक तरफ धर्मनिरपेक्षता है, दूसरी ओर घूसखोर कार्यप्रणाली है और अंत में, बिना लगाम के चल रहे कट्टरपंथी संस्थान।
अब हाल की घटना को ही ले लीजिए, मणिपुर में अल्पसंख्यकों पर कथित अत्याचार के एक झूठ के चक्कर में अपनी भारत के प्रति कुंठा प्रदर्शित करने में महाराष्ट्र के कट्टरपंथी मुसलमान पीछे नहीं रहे। उन्होंने जमकर बवाल किया और अपने अंदर की भड़ास को निकाला। पुलिस वालों पर पथराव, दुकानों पर आगजनी की ख़बरों के बीच सामने आया है कि प्रदर्शन रज़ा अकादमी ने करवाया था।
एक फर्जी खबर के कारण त्रिपुरा में सांप्रदायिक झड़पें हुईं थी। देश भर के मुसलमानों ने दावा किया कि त्रिपुरा में हिंदू समुदाय के सदस्यों द्वारा मस्जिद में आग लगा दी गई है और तोड़फोड़ की गई है। यह सब त्रिपुरा के धर्मनगर जिले के पानीसागर उपखंड अंतर्गत रोवा में शुरू हुआ, जहां विश्व हिंदू परिषद हाल ही में दुर्गा पूजा हमलों के दौरान बांग्लादेश में सताए गए हिंदुओं के अधिकारों के लिए एक विरोध मार्च का नेतृत्व कर रहा था।
इस मार्च की आड़ में इस्लामवादियों ने राष्ट्रव्यापी आधार पर झूठ बोला, उन्होंने दावा किया कि एक मस्जिद में आग लगा दी गई है। त्रिपुरा पुलिस और सरकार द्वारा इस तरह के दावों को खारिज करने के बावजूद, भारत भर के इस्लामवादियों का मानना था कि एक मस्जिद को राख कर दिया गया है।
ध्यान रहे कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि त्रिपुरा में हिंदुओं ने किसी मस्जिद को छुआ तक था। फिर भी हिंदुओं के खिलाफ पागलपन, नफरत और हिंसा में शामिल होने के लिए एक अंधा अभियान शुरू किया गया जिसका क्षेत्र त्रिपुरा से महाराष्ट्र तक फैला हुआ था।
त्रिपुरा में एक मस्जिद में तोड़फोड़ की अफवाहों के आधार पर इस्लामिक संगठन रज़ा अकादमी के सदस्यों ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में विरोध रैलियां कीं थी। इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान, तीन शहरों – अमरावती, नांदेड़ और मालेगांव से बड़े पैमाने पर हिंसा की सूचना भी मिली है।
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कैसे इस्लामवादी एक ऐसी घटना के लिए विरोध करते हैं जो कभी नहीं हुई?
नांदेड़, मालेगांव और अमरावती में भीड़ द्वारा दुकानों पर पथराव के साथ विरोध मार्च हिंसक हो गया, जिसमें दो पुलिसकर्मी घायल हो गए।
नांदेड़ में, पुलिस वैन पर पथराव किया गया और देगलुर नाका और शिवाजी नगर में दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, प्रदर्शनकारियों को मालेगांव और अमरावती में दुकानों और पुलिस वाहनों में आग लगाते देखा गया है। जिसके बाद विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए अलग सुरक्षा दस्ते को बुलाया गया।
इस्लामी भीड़ ने दंगा विरोधी दस्ते के पुलिस अधिकारियों को भी निशाना बनाया, जिन्हें परिणामस्वरूप लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा।
नांदेड़ में रज़ा अकादमी और उसके समर्थक आवासीय परिक्षेत्रों की ओर बढ़ते देखे गए लेकिन पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था।
भाजपा विधायक नीतीश राणे ने फर्जी खबरों के आधार पर महाराष्ट्र में कानून-व्यवस्था को बाधित करने के लिए रज़ा अकादमी को ‘आतंकवादी संगठन’ बताते हुए उसकी आलोचना की है। राणे ने कहा, ‘महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में हुई सभी हिंसा और दंगों के पीछे इस आतंकवादी संगठन रज़ा अकादमी का हाथ है! हर बार वे सभी नियमों को तोड़ते हैं और सरकार बैठी रहती है। या तो सरकार उन पर प्रतिबंध लगाए या हमें महाराष्ट्र के हित में उन्हें खत्म करना होगा!
This terrorist organisation Raza academy is behind all the violonce and riots in different parts of Maharashtra!
Every time they disrupt n break all the rules n Gov sits and watches..
Either the Gov bans them or we have to finish them in the interest of Maharashtra!— nitesh rane ( Modi ka Parivar ) (@NiteshNRane) November 13, 2021
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रज़ा अकादमी को तुरंत गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए-
रज़ा अकादमी चरमपंथी सुन्नी इस्लामवादियों का एक संगठन है, जो बार-बार हिंसा और घृणित गतिविधियों में लिप्त पाया गया हैं। रज़ा अकादमी की स्थापना 1978 में दक्षिण मुंबई में 17वीं सदी के मुस्लिम विद्वान आल्हाज़रत इमाम अहमद रज़ा द्वारा लिखित पुस्तकों को छापने और प्रकाशित करने के लिए की गई थी। तब से यह अकादमी, पूरे भारत में 30 से अधिक केंद्र स्थापित कर चुकी है और देश के सुन्नी समुदाय की कथित ‘आवाज’ बन गई है।
2012 में, इस इस्लामी संगठन द्वारा आयोजित एक विरोध मार्च के हिंसक हो जाने के बाद मुंबई में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई पुलिसकर्मी घायल हो गए थे।
अक्टूबर 2020 में, रज़ा अकादमी ने ईद-ए-मिलाद जुलूस निकालने की अनुमति नहीं देने पर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ मामला दर्ज करने की धमकी दी थी।
इसी तरह अकादमी ने मुस्लिम देशों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ फतवा जारी करने का आग्रह किया था।
TFI द्वारा पहले भी बताया गया है कि मैक्रोन ने इस बारे में बात की थी कि कैसे फ्रांस में मुसलमान एक “समानांतर समाज” बनाने की कोशिश कर रहे थे और देश के भीतर “इस्लामी अलगाववाद” को बढ़ावा दे रहे थे। रज़ा अकादमी को यह बात पसंद नहीं आया इसलिए उसने फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ फतवा जारी करने की मांग की है।
इस साल सितंबर में रज़ा अकादमी के मुसलमानों ने मदीना में सिनेमा हॉल की अनुमति देने के सऊदी साम्राज्य के फैसले के खिलाफ विरोध का आह्वान किया, जिसे मुसलमानों द्वारा एक पवित्र शहर माना जाता है। रज़ा अकादमी ने मुंबई में मीनारा मस्जिद के बाहर सऊदी विरोधी नारे लगाए। रज़ा अकादमी के सदस्यों ने पोस्टर रखे थे जिनमें ‘मदीना मुनव्वराह में सिनेमा हॉल बंद करो’ और ‘हरमैन शरीफैन के गेट को खोलो’ का हवाला दिया गया था।
इसके अलावा रज़ा अकादमी के नेतृत्व में हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान, मुस्लिम युवाओं ने 2012 में मुंबई के अमर जवान स्मारक को क्षतिग्रस्त कर दिया था।
संक्षेप में कहा जाए तो रज़ा अकादमी, कट्टरपंथी इस्लामी विचारों को बढ़ावा देने के लिए बदनाम है। समय आ गया है कि ऐसे चरमपंथी संगठनों को कट्टरपंथी विचारों को बढ़ावा देने से प्रतिबंधित किया जाए क्योंकि ये भारत की शांति और अखंडता पर खतरा पैदा कर सकते हैं।
रज़ा अकादमी जैसे संगठन किसी आतंकवादी संगठन से कम नहीं है। यह अविश्वसनीय है कि इस अकादमी को, जो अपने कार्यों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से काफी मिलती-जुलती है, अभी तक प्रतिबंधित नहीं किया गया है और सिर्फ एक गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया है।
यह देखते हुए कि कैसे रज़ा अकादमी ने महाराष्ट्र के तीन शहरों में हिंसा को अंजाम दिया है और कैसे वो कुछ ही समय में हजारों इस्लामवादियों को लामबंद करने में सक्षम हैं, केंद्रीय गृह मंत्रालय को तुरंत उसपर कार्रवाई करनी चाहिए। रज़ा अकादमी को तुरंत प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है।