संसद सर्वोच्च है। श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम और श्रेष्ठतम से भी श्रेष्ठ है। यही हमारे लोकतन्त्र का आधार और भारत की पहचान है। सदियों के सतत संघर्ष पश्चात जो एक थाती हमने पायी वो संसद ही है। ब्रिटेन के महान अधिवक्ता और लोकतन्त्र समर्थक Jean-Louis de Lolme अपनी पुस्तक Constitution de l’Angleterre में अंकित करते हैं कि संसद पुरुष को स्त्री बनाने के अलावा सभी कार्य कर सकती है। हालांकि, सबसे बड़ी बात यह है कि इस सर्वोच्च शक्ति के केंद्र बिन्दु आप हैं। आप ही इसके सामार्थ्य के स्रोत हैं। लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में आप ही, प्रतिनिधियों के रूप में स्वयं का चुनाव कर के, उनके माध्यम से स्वयं को लोकतन्त्र के इस मंदिर में स्थापित करते हैं। अतः स्वाभाविक रूप से आप यह अपेक्षा रखते है कि ये सांसद संसदीय गरिमा के अनुरूप अनुपालन करें क्योंकि संसद या किसी राज्य के विधायी सदन में ये आप ही को प्रतिबिम्बित करते हैं। संसद में किए इनके आचरण को दुनिया देखती है और इसी से हमारी मातृभूमि की पहचान बनती है।
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हालांकि, कुछ जन प्रतिनिधि, चाहे वो सांसद हों या विधायक, इसकी गरिमा को भूल, अपने आचरण और निजी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु इसे कलंकित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। वो भूल जाते हैं कि आलाकमान के आदेश से पहले मिट्टी की पहचान है। वाजपेयी जी के कथानुसार- “सरकारें आएंगी, जाएंगी पर यह देश रहना चाहिए, इसका लोकतन्त्र रहना चाहिए।”
परंतु, सेवा के बजाय सत्ता को ही राजनीति का एकमात्र सिद्धान्त समझने वाली काँग्रेस ने लोकतन्त्र के इस ब्रम्हवाक्य को ताक पर रख दिया है।
काँग्रेस का यह विकृत कृत्य हमारे लोकतान्त्रिक और संसदीय इतिहास का सबसे कलंकित अध्यायों में शामिल हो चुका है। 11 अगस्त 2021 को संसद में जो हुआ उससे हम आपको अवगत कराते हैं और निर्णय आप पर छोड़ते है।
विपक्ष का विकृत कृत्य
टीएमसी सांसद डोला सेन ने अपने सहयोगी सांसद शांता छेत्री के गले में दुपट्टे का लूप फसांकर, सदन की स्थगित करने की नियति से ज़ोर-ज़ोर से नारेबाजी करने लगीं। इसी अवस्था में दोनों वेल तक पहुँच गए और कार्य को बाधित करेने लगे। तभी अचानक कांग्रेस सांसद फूलो देवी और छाया वर्मा कागज फाड़कर सदन के पटल पर फेंकनें लगीं। इस अराजकता का लाभ उठाकर भाकपा सांसद बिनॉय विश्वम,एलाराम करीम,राजमणि पटेल और शिवसेना के अनिल देसाई ने सदन के पटल पर रखे कागजात छीन लिए। कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह द्वारा सुरक्षाकर्मियों को तुरंत धक्का मारा और डोला सेन ने सभापति के कक्ष से सदन में अपनी सीट पर बैठने के लिए आ रहे सदन के नेता और संसदीय कार्य मंत्री रास्ते को अवरुद्ध कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने उनके साथ धक्का-मुक्की भी की। इतना ही नहीं TMC सांसद डोला सेन ने बहस की और संसद सुरक्षा सेवा (पीएसएस) की महिला अधिकारियों को भी धक्का दिया। कांग्रेस के नसीर हुसैन और शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने कागज फाड़कर सदन के पटल की ओर फेंक दिया। कांग्रेस के रिपुन बोरा कुर्सी के बाईं ओर लगे एलईडी टीवी स्टैंड पर चढ़कर चिल्लाने लगे। इलामाराम करीम ने सुरक्षा घेरा तोड़ने के लिए एक पुरुष मार्शल की गर्दन पर वार कर उन्हें पीटा और घसीटा। एक महिला मार्शल को फूलो देवी नेताम और छाया वर्मा ने खींचकर घसीटा और वेल में उसके साथ मारपीट की। नसीर हुसैन और एलाराम करीम ने एक पुरुष मार्शल का कंधा पकड़ लिया और महिला मार्शल को बचाने की कोशिश कर रहे सुरक्षाकर्मी को पीटने की कोशिश की।
ये वृतांत किसी मछली बाज़ार के नहीं बल्कि देश की सर्वोच्च संस्था संसद का है। जनप्रतिनिधियों के ऐसे आचरण पर जो आपका निर्णय होता वहीं सरकार का भी था।
संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सरकार ने विपक्षी दलों के बारह राज्यसभा सांसदों को पिछले मानसून सत्र अर्थात 11 अगस्त 2021 को उनके अनियंत्रित,अराजक और निकृष्ट आचरण के कारण शेष सत्र के लिए निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया। निलंबित सांसद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भाकपा, माकपा और शिवसेना से हैं। सदस्य हैं – कांग्रेस के सैयद नसीर हुसैन, अखिलेश प्रसाद सिंह, फूलो देवी नेताम, छाया वर्मा, रिपुन बोरा और राजमणि पटेल,प्रियंका चतुर्वेदी, शिवसेना के अनिल देसाई; माकपा के इलामाराम करीम, भाकपा के बिनॉय विश्वम, तृणमूल के डोला सेन और शांता छेत्री।
चोरी भी और सीनाजोरी भी
परंतु, विपक्ष देश से क्षमा मांगना तो दूर अपने इस कृत्य के लिए शर्मिंदा भी नहीं है। ऊपर से आप “चोरी भी और सीनाजोरी भी” वाले कहावत का मानद उदाहरण देखिये। इन विपक्षी पार्टियों ने आपको दिग्भ्रमित करने कुत्सित प्रयास प्रारम्भ कर दिया है। आजकल धरने देकर लोकतन्त्र को ध्वस्त करने की रवायत चली है। विपक्ष भी यही करने जा रहा है। इन सभी सांसदों और उनकी पार्टियों ने संसद के शीतकालीन सत्र बहिष्कार करने का आह्वान किया है और संसद के बाहर धरने पर बैठने की धमकी भी दी है। ऊपर से जनता की हमदर्दी बटोरने के लिए विपक्ष सरकार को तनाशाह बता रहा है।
ऐसे में विपक्ष जनता की सहानुभूति प्राप्त करने में कामयाब हो भी जाए तो आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि हम लोकसभा टीवी नहीं बल्कि “सनीमा” देखनेवाले लोकतन्त्र है। हमें भ्रमित करना संसद को बाधित करने से भी सरल है। हालांकि, यह बताना आवश्यक है जिसके तहत ऐसे कलुषित कृत्य करने के कारण ऐसे सांसदों को निलंबित किया गया ताकि वो आपको दिग्भ्रमित ना कर सकें।
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2001 में लोकसभा के नियम में संशोधन कर अध्यक्ष को एक अतिरिक्त शक्ति प्रदान की गई। नियम 374 A के अनुसार जनप्रतिनिधियों से देश और संसद एक संसदीय और गरिमामयी आचरण की अपेक्षा रखता है जिसमें किसी जनप्रतिनिधि को अभिव्यक्ति, चर्चा या प्रस्ताव के दौरान नारेबाजी या बाधा उत्पन्न ना करने जैसे निर्देश शामिल हैं। अगर वो शुचिता के इन मानद निर्देशों की अवज्ञा करते हैं तो सदन के कामकाज को बाधित करने के लिए अध्यक्ष को उन्हें निलंबित करने का अधिकार है।
जब विपक्ष ने भाजपा के नेताओं बिना किसी कारण के निलंबित किया
अब ऐसे उदाहरण देना भी आवश्यक है जब बिना ऐसे नियमों का पालन किए राजनीतिक दुराग्रह के कारण भाजपा के नेताओं को इन ही विपक्षी पार्टियों ने सत्ता में रहते हुए निलंबित किया। इसी साल जुलाई में महाराष्ट्र में इसी शिवसेना सरकार द्वारा स्पीकर के कक्ष में पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ “दुर्व्यवहार” करने का गलत आरोप लगाकर बारह भाजपा विधायकों को महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया था। इसी साल 17 मार्च को अपने फोन टेपिंग की जांच की मांग उठाने के लिए काँग्रेस की गहलोत सरकार मदन दिलावर को निलंबित कर दिया था।
2019 में बंगाल विधान सभा में तो ममता सरकार ने बिना किसी आरोप के बीजेपी के नेता को निलंबित कर दिया। कोई सुनवाई नहीं हुई और अंतत विरोध में दो भाजपा नेताओं ने त्यागपत्र दे दिया था।
आज जब न्याय और नियम के आधार पर इन नेताओं को निलंबित किया गया है तो देश से क्षमा मांगने के बजाए इन्होंने देश को दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया है। देश की जनता ‘सनीमा’ देखने में व्यस्त है, ये वो भी जानते हैं, इसीलिए बार-बार ऐसा करने का दुस्साहस करते हैं। एक आंकड़े के अनुसार संसद का 80 प्रतिशत कार्य इन नेताओं की वजह से स्थगित हो जाता है। मॉनसून सत्र नेताओं के विरोध में व्यतीत हुआ। शीतकालीन सत्र उनके निलंबन के विरोध में व्यतीत होगा। जनता के हित के कानून गट्ठर में पड़े रहेंगे। बिना चर्चा के कानून पारित होने पर वही विपक्ष सड़क पर उतरकर देश रोक देगा और उस समय आरोप लगाएगा कि कानून पर चर्चा नहीं हुई। जनता ‘सनीमा’ देखे और भाड़ में जाए देश का लोकतन्त्र।