पिछले कुछ सालों से मोदी सरकार, देश में कानून को मजबूत करने और अपराधियों में भय सुनिश्चित करने के लिए कानून प्रवर्तन और जांच एजेंसियों में लगातार सुधार कर रही है। इसी बीच NIA को मजबूत करने के बाद अब इसी क्रम में मोदी सरकार सीबीआई और ईडी के लिए एक ऐसा अध्यादेश लेकर आई है, जिससे न सिर्फ ये दोनों ही एजेंसियां मजबूत होंगी बल्कि धारदार भी होंगी!
नए अध्यादेश के अनुसार अब प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशकों की नियुक्ति अब सिर्फ पाँच वर्षों के लिए होगी। अभी तक सीबीआई और ईडी के निदेशकों की नियुक्ति दो साल के लिए होती थी, लेकिन इन दोनों अध्यादेशों के पारित होने से उनका कार्यकाल निर्वाचित सरकार की तरह स्थिर रहेगा।
इससे इन एजेंसियों की धार भी बढ़ेगी, क्योंकि निदेशक पांच वर्षीय कार्यकाल में दीर्घकालिक कदम उठाने में सक्षम होंगे। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 में संशोधन कर सीबीआई निदेशक के कार्यकाल में परिवर्तन किया गया है, साथ ही ईडी निदेशक के कार्यकाल में परिवर्तन केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 में संशोधन करके किया गया है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश 2021 के अनुसार प्रवर्तन निदेशक के कार्यकाल को जनहित में खंड (ए) के तहत समिति की सिफारिश पर और लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, बशर्ते कि प्रारंभिक नियुक्ति के बाद से मिलाकर पांच साल की अवधि पूरी होने के बाद ऐसा कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा।
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विपक्षी पार्टियां कर रही हैं विरोध
बता दें कि देश के अधिकांश हाई-प्रोफाइल राजनीतिक और आर्थिक मामलों को ईडी और सीबीआई द्वारा जांच की जाती है। वर्तमान में ये एजेंसियां ओम प्रकाश चौटाला, पी चिदंबरम, राघव बहल, रॉबर्ट वाड्रा, हर्ष मंदर समेत भारतीय राजनीतिक, मीडिया और व्यापारिक दिग्गजों के मामलों की जांच कर रही हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कांग्रेस और DMK जैसे विपक्षी दल इस अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं। कारण स्पष्ट है कि इनके नेता इस समय इन एजेंसियों द्वारा जांच के दायरे में हैं और उन्हें डर है कि इस अध्यादेश के बाद ये एजेंसियों और सक्षम हो जाएंगी।
यह अध्यादेश ED के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के विस्तारित कार्यकाल से कुछ दिन पहले आया है, जिन्हें नवंबर 2018 में दो साल के लिए नियुक्त किया गया था और फिर एक साल का विस्तार दिया गया। हालांकि, संजय मिश्रा के कार्यकाल को सरकार और आगे बढ़ाना चाहती थी, लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनावश्यक हस्तक्षेप करने की कोशिश की और सरकार से इस अवधि का विस्तार न करने को कहा। तब न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा था, “हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने वाले अधिकारियों को दिए गए कार्यकाल का विस्तार केवल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिए।”
मोदी सरकार ने न्यायपालिका को भी दे दिया है स्पष्ट संदेश
गौरतलब है कि इस मसले पर अदालत का यह रुख सही नहीं था, क्योंकि एक तरफ कोर्ट का कहना है कि वो सरकार के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वर्तमान ईडी निदेशक का कार्यकाल तीन साल से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। देखा जाए तो पिछले कुछ समय से कोर्ट ने कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में लगातार हस्तक्षेप किया है, परंतु पिछली सरकारों के विपरीत न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप को मोदी सरकार ने बहुत गंभीरता से लिया है!
मोदी सरकार द्वारा इन दोनों अध्यादेशों को लाने का मकसद सीबीआई और ईडी को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ कोर्ट को भी एक संदेश देना है। इन एजेंसियों द्वारा उठाए गए मामलों की राजनीतिक प्रकृति को देखते हुए, कार्यपालिका के साथ तालमेल आवश्यक है और उनके निदेशकों को यह अध्यादेश पांच साल का कार्यकाल सुनिश्चित करेगा। नौकरशाही के किसी पद पर अल्पावधि कार्यकाल देश को ही नुकसान पहुंचाता है। पहले किसी अधिकारी को किसी भी आवश्यक दीर्घकालिक परियोजनाओं की रूपरेखा बनाने के लिए 10 बार सोचना पड़ता था। सीबीआई और ईडी के लिए सरकार का यह विस्तार सही दिशा में एक कदम है और विभिन्न मंत्रालय विभागों के सचिवों की नियुक्ति में भी ऐसा ही किया जाना चाहिए।