कहते हैं कि दुश्मन पर वार तब करना चाहिए जब वो थक चुका हो, और चौतरफ़ा आलोचनाओं का सामना कर रहा हो। यद्यपि ये कुटिल नीति है, लेकिन चीन जैसे कपटी राष्ट्र के साथ साम दाम दण्ड भेद सब कुछ अपनाया जा सकता है। इसी बीच भारत पहले से ही दबाव झेल रहे चीन के थिंकटैंक पर मानसिक दबाव बनाने की तैयारी कर चुका है। लद्दाख में भारतीय सेना का युद्धाभ्यास तो पहले ही चीन के लिए भय का प्रतीक था, लेकिन अब भारत की हवाई रैपिड एडवांस क्षमता चीन के लिए नई मुसीबत लेकर आई है।
दरअसल, अप्रैल 2020 में चीनी PLA ने लद्दाख में घुसपैठ के जो प्रयास किए थे, वो आज लगभग 18 महीने बाद चीन पर ही भारी पड़ रहे हैं। चीनी प्रशासन को उम्मीद थी कि लंबे वक्त तक डटे रहने के कारण भारतीय सेना पीछे हट जाएगी। इसके विपरीत मोदी सरकार ने न तो सेना को पीछे हटाया और न ही चीन के खिलाफ अपना रवैया नरम किया है। यही नहीं, मोदी सरकार ने लद्दाख में सैन्य क्षमता को विकसित करने के लिए पिछले एक वर्ष में अनेकों निर्णय लिए हैं। भारतीय सेना का युद्धाभ्यास और तोपों की गर्जना पहले से ही ठंड से डरे हुए PLA के सैनिकों के लिए भय का पर्याय था, लेकिन अब 14 हजार मीटर की ऊंचाई पर भारतीय वायुसेना के जवानों ने रैपिड रिस्पॉन्स कैपेबिलिटी को आंकने के लिए हवाई युद्धाभ्यास किया है, जो कि चीन के लिए भय का नया संदेश लेकर आया है।
क्षमता परखने के लिए भारतीय सेना युद्धाभ्यास
भारतीय सेना अप्रैल 2020 से लद्दाख में इंच मात्र भी पीछे नहीं हटी है। वहीं, गलवान की झड़प के बाद तो चीनी सैनिकों की भारत में कदम रखने के हिम्मत भी नहीं हो रही है। इसका नतीजा है कि चीन को बातचीत की टेबल पर आना पड़ा है, एक तरफ बातचीत हो रही है, तो दूसरी ओर भारतीय सेना का युद्धाभ्यास जारी है। इसी कड़ी में भारतीय सेना ने लद्दाख में अपने रैपिड रिसपॉन्स को परखना शुरू कर दिया है। भारतीय सेना के शत्रुजीत ब्रिगेड ने कॉम्बेट कैपेबिलिटी को आज़माने के लिए लद्दाख में 14 हजार मीटर की ऊंचाई पर जाकर भी अभ्यास किया है।
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News 18 की रिपोर्ट बताती है कि सोमवार को भारतीय सैनिकों को 14 हजार फीट की ऊंचाई पर एयर ड्रॉप किया गया था। इस युद्धाभ्यास का विशेष महत्व ये था कि हवाई मार्ग से इन सैनिकों को जहां ड्रॉप किया गया था, वहां तापमान -20 डिग्री के करीब था। खास बात ये है कि दुर्गमता की पराकाष्ठा वाले इस इलाके में हवाई ड्रॉप बिल्कुल सटीक स्थान पर हुआ। इस तरह की कार्रवाई सदैव ही दुश्मन के लिए एक सरप्राइज एलिमेंट का काम करती है। गौरतलब है कि युद्ध के दौरान दुश्मन को कमजोर करने और उनकी सप्लाई लाइन को उन्हीं के इलाके में जाकर कट करने में, ये हवाई क्षमता बेहद काम आती है। इसी कारण इसे ऑपरेशन बिहाइंड द एनेमी लाईन के नाम से भी जाना जाता है।
युद्धक विमानों का प्रयोग
खबरों के अनुसार इस युद्धाभ्यास में सेना ने अपने कुशल एयरक्राफ्ट्स का प्रयोग किया, जिनमें सी-130 और एएन-32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के जरिए सैनिकों के साथ खास व्हिकल और मिसाइल डिटेचमेंट को पांच अलग-अलग माउंटेन बेस पर ड्रॉप किया गया था। रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि इस तरह के मॉक ड्रिल से सैनिकों और उपकरणों के मूवमेंट, सटीक स्टैंड-ऑफ ड्रॉप्स, रैपिड ग्रुपिंग, कम समय में गति और आश्चर्य के साथ टारगेट को पकड़ने की क्षमता का सटीक आंकलन किया जा सकता है, जिसमें भारतीय सेना को सफलता प्राप्त हुई है।
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चीन के लिए बढ़ेंगी मुसीबतें
भारत-तिब्बत सीमा विवाद के बीच चीन जब आक्रामकता से भारत को मात देने में नाकाम हुआ, तो स्वंय भीगी बिल्ली की तरह बातचीत की टेबल पर आ गया। इसके विपरीत 14 वें दौर की बातचीत के बाद चीन पुनः भारत को गीदड़-भभकी देने लगा था। इसी बीच भारत ने सीमा पर अपनी सख्ती को विस्तार दे दिया , जिसका परिणाम ये हुआ कि भारतीय टैंक टी-72 और टी-90 लद्दाख की जमीन पर युद्धाभ्यास करने के लिए उतर आए थे। वहीं, दूसरी ओर मोदी सरकार लद्दाख में विकास कार्यों और हवाई यातायात को मजबूत करने के प्रयास भी शुरू कर चुकी थी। अब तिब्बत के लोगों से भारतीय सेना अपने कूटनीतिक संबंधों को विस्तार देने का प्रयास कर रही है।
बताते चले कि पिछले वर्ष भी ठंड के दौरान चीनी PLA के सैनिकों को भारतीय सेना के कारण ठिठुरना पड़ा था, कुछ वैसी ही स्थिति इस बार भी होने वाली है, क्योंकि पहले तो भारत सरकार ने सीमावर्ती इलाके में अपनी सैन्य क्षमता का विस्तार किया और दूसरी ओर अब लद्दाख में भारतीय सेना, वायुसेना के साथ मिलकर जबरदस्त युद्धाभ्यास कर रही है, जिससे चीनी सैनिकों के मन में एक विशेष डर व्याप्त हो रहा है।