एक अपमान कैसे किसी व्यक्ति के लिए राजनीतिक पतन का कारण बन सकता है, इसे समझना हो तो गुना से लोकसभा सांसद बने केपी यादव का उदाहरण देखिए। केपी का अपमान मात्र एक सेल्फी के लिए गुना के पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया और केपी के मन में इतना आक्रोश व्याप्त हो गया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के ध्वज तले सिंधिया को ही हरा दिया। भले ही अब सिंधिया भाजपा में हैं, लेकिन केपी यादव ने उनका घमंड चूर-चूर कर दिया था। यही घमंड तेलंगाना की हुजूराबाद विधानसभा सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव का भी टूटा है। अपने करीबी को पहले भूमि संबंधित भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर, अपमानित कर केसीआर ने पहले ई राजेन्द्र से मंत्री पद छीन और बाद में उन पर ही हमले शुरू कर दिए, लेकिन अब उन्हें भाजपा के लिए तेलंगाना का ‘हिमंता बिस्वा सरमा’ मना जा रहा है, पर आखिर क्यों ये आपको समझना होगा !
ई. राजेंद्र का राजनीतिक कद
भाजपा के लिए उपचुनाव खट्टे-मीठे दोनों ही स्वाद लेकर आए। पूर्वोत्तर में जहां पार्टी को सफलता हाथ लगी, वहीं हिमाचल में पार्टी के सामने कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों के प्रश्न भी खड़े हुए हैं। इन सबसे इतर जो सबसे रोचक उपचुनाव था, वो तेलंगाना की हुजूराबाद विधानसभा सीट पर था। अपमान के कारण TRS छोड़ने वाले और केसीआर के राइट हैंड माने जाने वाले पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ई.राजेन्द्र के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई थी। ऐसे में भाजपा के लिए अच्छी बात ये थी कि ई.राजेन्द्र पार्टी में शामिल हो चुके थे। पार्टी ने उन्हें उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया और राजेन्द्र ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की।
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मंगलवार को जब ईवीएम में दर्ज वोटों की मतगणना हुई, तो केसीआर के हुजूराबाद में किए गए प्रचार का ढोल फट गया। नतीजों के अनुसार हुजूराबाद उपचुनाव में बीजेपी के ई. राजेन्द्र ने 24 हजार 68 मतों के अंतर से जीत दर्ज की, और केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के प्रत्याशी गेलू श्रीनिवास यादव को करारी शिकस्त मिली। ये जीत मात्र उस प्रत्याशी के लिए झटका नहीं है, अपितु राज्य की राजनीति में केसीआर के लिए राजनीतिक पतन की संभावनाएं भी दिखा रही है। इस जीत को लेकर केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने ई राजेन्द्र को बधाई दी है। उन्होंने लिखा, “मैं हाल के उपचुनावों में तेलंगाना भाजपा के उम्मीदवार श्री ई राजेन्द्र पर विश्वास करने के लिए हुजूराबाद के लोगों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूं। आज का फैसला हमारे कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत का एक प्रमाण है। ई. राजेंद्र को शुभकामनाएं!”
ఇటీవల జరిగిన ఉపఎన్నికల్లో @BJP4Telangana అభ్యర్థి శ్రీ @Eatala_Rajender గారిపై విశ్వాసం ఉంచినందుకు #Huzurabad ప్రజలకు హృదయపూర్వక కృతజ్ఞతలు తెలుపుతున్నాను.
నేటి తీర్పు మన కార్యకర్తల శ్రమకు నిదర్శనం.
ఈటల రాజేందర్ గారికి హార్థిక శుభాకాంక్షలు!
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— G Kishan Reddy (Modi Ka Parivar) (@kishanreddybjp) November 2, 2021
केसीआर को लगेगा झटका
अपने करीबी के दुश्मन बनने के बाद केसीआर ने ये कभी नहीं सोच होगा कि उनकी पार्टी को इतनी बुरी तरह से हार मिलेगी। यद्यपि उन्हें राजेन्द्र से टक्कर का पूर्ण अंदाजा था। यही कारण है कि केवल इसी इलाक़े में धड़ाधड़ कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर तेलंगाना सरकार मतदाताओं को राजनीतिक रिश्वत देने का प्रयास कर रही थी। केसीआर ने ई. राजेन्द्र को हराने के लिए राजकोष तक खोल दिया था, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। भाजपा की इस जीत के बाद केसीआर की पार्टी टीआरएस में फूट की स्थिति देखने को मिल सकती है, क्योंकि राज्य की राजनीति में कोई विकल्प न होने के कारण कई नेता अपमान के बावजूद केसीआर की पार्टी से जुड़े हुए हैं, लेकिन अब ई.राजेन्द्र की जीत ने उन अन्य अंदरखाने नाराज नेताओं को राज्य में भाजपा जैसा विकल्प दे दिया है, जो टीआरएस के टूटने की वजह भी बन सकता है।
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भाजपा के लिए सकारात्मक
कहने को तो ये मात्र एक विधानसभा उपचुनाव था, और ये पूछा जा सकता है कि एक सीट पर जीत हासिल कर भाजपा ने क्या प्राप्त किया? तो इस प्रश्न का सटीक जवाब ये है कि ई.राजेन्द्र, केसीआर के सर्वाधिक करीबी लोगों में थे और उन्हें पार्टी के सारे कच्चे-चिट्ठों की विस्तृत जानकारी है। ये सारी बातें जानते हुए भी केसीआर ने अपनी तानाशाही सोच के कारण उन्हें अपमानित कर उनसे मंत्री पद छीन लिया। ऐसे में आक्रोश की इस ज्वाला का लाभ भाजपा के हिस्से में आया, साल 2009 से हुजूराबाद की सीट पर विधायक रहे ई.राजेन्द्र पर दांव खेलते हुए पार्टी ने उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी।
ऐसे में ई.राजेन्द्र की जीत के बाद अब टीआरएस का एक बड़ा केसीआर विरोधी नेताओं का धड़ा भाजपा का रुख कर सकता है। भाजपा ग्रेटर हैदराबाद महानगर पालिका चुनाव में पहले ही केसीआर और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की मुश्किलों में विस्तार कर चुकी है, जिससे राज्य में बीजेपी ने अपने पद चिन्ह छोड़ दिए हैं। ऐसे ही ई.राजेंद्र का जीतना भाजपा के तेलंगाना में विस्तार को रफ्तार दे सकता है।
इतना ही नहीं, जिस असम में साल 2016 के पहले भाजपा का कोई अस्तित्व नहीं था, उसी असम में अब भाजपा सत्ता के दूसरे कार्यकाल में है। इस जीत की वजह मात्र वर्तमान मुख्यमंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता हिमंता बिस्वा सरमा हैं। उन्होंने अपने दम पर राज्य में भाजपा को खड़ा किया। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है, कि भाजपा के लिए ई.राजेन्द्र, हिमंता की भांति तेलंगाना में पार्टी को मजबूत कर सकते हैं।