हाँ, तीनों कृषि कानून निरस्त हो रहे हैं, परंतु 100 अन्य कानून भी निरस्त हो रहे हैं, वो भी पुलिसवालों की नाकाबंदी के साथ!

ये केवल संयोग नहीं है बंधु!

कानून

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नए कृषि कानूनों के जरिए मोदी सरकार ने कई वर्षों से अपेक्षित कृषि सुधारों को ठीक करने की ओर पहला कदम बढ़ाया था, देश के किसान इसका फायदा भी उठा रहे थे, लेकिन कुछ अराजक तत्वों द्वारा सड़क घेरकर सरकार को झुकने पर मजबूर किया गया। जिसके बाद मोदी सरकार ने देशहित में इन कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। संसद के आगामी सत्र में सरकार इसकी formality भी पूरी कर देगी। इसी बीच यह खबर भी सामने आई है कि केंद्र सरकार 100 से अधिक कानूनों को खत्म करने पर विचार कर रही है। जी हां! आपने बिल्कुल सही सुना, मोदी सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में 100 से अधिक पुराने कानूनों को समाप्त कर सकती है और कई कानूनों में व्यापक बदलाव भी कर सकती है।

बड़े बदलाव की तैयारी में है मोदी सरकार

दरअसल, केंद्र सरकार में कानून मंत्रालय के राज्यमंत्री एस० पी० बघेल ने बीते दिनों मीडिया को बताया कि केवल तीन कृषि कानून ही नहीं, बल्कि 100 से अधिक कानून इस शीतकालीन सत्र में हटाए जा सकते हैं। जयपुर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा ब्रिटिश शासन के दौर के ऐसे कानून जो आज के समय में अप्रासंगिक हैं, उन्हें हटाया जा सकता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने लखनऊ दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों तथा इंटेलिजेंस व सैन्य सेवा में कार्यरत उच्चाधिकारियों के साथ 12 घंटे लंबी मैराथन बैठक की है। इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख अरविंद कुमार, RAW के प्रमुख समंत गोयल तथा देश के अन्य वरिष्ठ अधिकारी सम्मिलित हुए थे।

हालांकि, मीडिया को दी गई जानकारी के अनुसार यह बैठक केवल पुलिस सुधारों तथा देश के सामने वर्तमान चुनौतियों को लेकर हुई थी, लेकिन इस बैठक और केंद्रीय राज्यमंत्री बघेल द्वारा दी गई सूचना को मिलाकर देखा जाए तो सरकार सम्भवतः बड़े बदलाव की तैयारी में है। ऐसे में हम उन संभावित कानूनों की चर्चा कर लेते हैं, जिनमें बदलाव की आवश्यकता है।

प्रथम : यूनिफॉर्म सिविल कोड

देश की आजादी के बाद जब हिंदू महिलाओं को उनके अधिकार देने के लिए हिंदू कोड बिल लाया गया था, तो उस समय कई नेताओं ने इन सुधारों को केवल हिंदुओं तथा हिंदू धर्म से जुड़े अन्य पंथों तक सीमित रखने के स्थान पर पूरे देश पर लागू करने की वकालत की थी। उस समय सरकार मुसलमानों के लिए पर्सनल लॉ लेकर आई थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने वाले हैं और देश की एक बड़ी आबादी अब भी विवाह और संपत्ति के मामले में विभेदकारी कानूनों का सामना कर रही है।

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दूसरा: स्पेस, रेलवे, डिफेंस और बिजली विभाग

हाल ही में सरकार ने ISpA की स्थापना करके स्पेस सेक्टर में निजीकरण को आकर्षित करने के लिए पहला कदम बढ़ा दिया है। ऐसे में सरकार को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र को केवल अपने विशेषाधिकार में नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे प्राइवेट कंपनियों के लिए भी खोलना चाहिए। वहीं, रेलवे की बात करें तो सरकार ने पहले ही स्पष्ट किया है कि रेलवे का पूर्ण निजीकरण नहीं किया जाएगा, लेकिन देश में रेल सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए निजी निवेश की आवश्यकता है। ऐसे में जो भी आवश्यक कानूनी सुधार हैं, वो लागू होने चाहिए।

साथ ही अगर डिफेंस रिसर्च की बात करें, तो भारत में प्राइवेट कंपनियों को लड़ाकू विमान से लेकर अत्याधुनिक टैंक व पनडुब्बियों आदि पर रिसर्च शुरू करनी चाहिए, जिससे सरकारी एजेंसियों को प्रतिस्पर्धा मिल सके और सैन्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया तेज हो सके। इसके लिए आवश्यक कानूनी फ्रेमवर्क तैयार करने की जिम्मेदारी सरकार की है। वही बिजली विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की कहानी बार-बार दोहराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उससे हर भारतीय परिचित है। यह ऐसे क्षेत्र है जहां सुधार की तत्काल आवश्यकता है।

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तीसरा है हिन्दू मंदिरों की व्यथा

भारत में हिंदू मंदिर एकमात्र ऐसे धार्मिक संस्थान हैं, जिनका नियंत्रण सरकार के हाथ में है और सामाजिक कल्याण के नाम पर सरकार हिंदू मंदिरों को मिलने वाले दान पर कब्जा कर लेती है! एक ओर मिशनरियों और मदरसों को सरकारी फंडिंग मिलती है, जिसका प्रयोग वो लोगों के कन्वर्जन में कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर हिंदू मंदिरों के पैसे से चलने वाले शिक्षण संस्थानों में भी हिंदू मान्यताओं का मजाक बनाया जाता है तथा देवी-देवताओं का अपमान किया जाता है। हालांकि, केंद्र सरकार ने कभी भी इस प्रकार के सुधार के लिए कोई दृढ़ संकल्प नहीं दिखाया है, लेकिन यदि इस क्षेत्र में सुधार लागू होते हैं तो यह एक ऐतिहासिक बदलाव होगा।

इसके अतिरिक्त भारत में पुलिसिंग, म्युनिसिपालिटी, ट्रेज़री आदि से जुड़े कई ऐसे कानून हैं, जो वर्तमान समय में पूर्णतः प्रासंगिक हैं। उदाहरण के लिए शहर में होने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के मामले में म्युनिसिपल पदाधिकारियों को बहुत व्यापक अधिकार मिले हैं। उनका भ्रष्ट चरित्र इन अधिकारों के साथ मिलकर एक अत्याधिक हानिकारक माहौल तैयार करता है, जिसका इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसी प्रकार जनजातीय क्षेत्रों में विवाह व संपत्ति के सामान्य कानून लागू नहीं हैं, जिस कारण वहां रहने वाली महिलाओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इन सभी कानूनों में परिवर्तन भारत के विकास को नई गति प्रदान करेगा।

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