कथा दो राज्यों की: एक है ईसाई प्रेमी पंजाब तो दूसरा है धर्म प्रिय हरियाणा

अंतर - सेवक और दास में अंतर स्पष्ट दिखता है!

पंजाब हरियाणा

अमेरिका और मेक्सिको के बॉर्डर को देखिए। अगर आप बाइडन सर्मथक हैं और वह बॉर्डर नहीं देखना चाहते हैं, तो सऊदी अरब और यमन के बॉर्डर को देख लीजिए। इन बोर्डरों मे एक खास बात है। वह यह है कि एक तरफ अर्श है तो दूसरी ओर फर्श है। एक तरफ आर्थिक सम्पन्न अमेरिका और सऊदी अरब है, तो दूसरी ओर आर्थिक विपन्नता से जूझ रहे यमन और मैक्सिको जैसे देश हैं। भारत में इतना अंतर तो दो पड़ोसी राज्यों में नहीं है लेकिन वैचारिकी की बात करें तो पंजाब और हरियाणा राज्य इस समय यमन और सऊदी अरब राज्य हो रखे हैं। एक राज्य तुष्टीकरण हेतु बस भिन्न-भिन्न समूहों को खुश करने में लगा है, तो दूसरी ओर का राज्य चुपचाप भारतीय सभ्यता को जागृत करने के लिए प्रयासरत है। एक राज्य पंजाब जहां राजनीतिक अस्थिरता है तो दूसरे राज्य हरियाणा में मजबूत प्रतिनिधित्व है।

पंजाब के मुख्यमंत्री का ईसाई प्रेम आया सामने 

तुष्टीकरण की आदी हो चुकी कांग्रेस पार्टी ने पंजाब में ऐलान किया है कि “अब स्कूलों में बाइबल पढ़ाया जाएगा।” पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बीते गुरुवार को कहा कि “राज्य सरकार के बोर्डों में ईसाई समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा और उन्होंने बाइबिल के अध्ययन के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर एक चेयर स्थापित करने की घोषणा की है।” मुख्यमंत्री चन्नी ने यह घोषणा गुरदासपुर में प्रभु यीशु मसीह की जयंती के उपलक्ष्य में एक राज्य स्तरीय समारोह के दौरान की। मालूम हो कि चन्नी बिना तुष्टीकरण किये सत्ता में नहीं टिक सकते हैं। ये आदत स्वाभाविक भी है और अवसरवादी भी।

दिलचस्प बात यह है कि दोपहर 12 बजे CM समारोह स्थल पर पहुंचे थे, लेकिन उन्हें अंतिम क्षणों में अपने कार्यक्रमों में कुछ बदलाव करना पड़ा क्योंकि उनकी सभा के दौरान ज्यादातर कुर्सियां ​​खाली थीं। इस बीच उन्होंने एक सरकारी स्कूल की जाँच के लिए जाने का फैसला किया। जब आगंतुकों के आने से कुर्सियां भर जाने की खबर मिली तब वो लौट आए। फिर भी जब CM ने भाषण दिया तब सभा में लोगों की संख्या कम थी।

ईसाई समुदाय द्वारा उठाए गए मुद्दों पर बोलते हुए चन्नी ने कहा कि “कब्रिस्तान के लिए भूमि उपलब्ध कराई जाएगी जहां जमीन उपलब्ध नहीं है लेकिन वहां ईसाई समुदाय की एक बड़ी उपस्थिति है,” उन्होंने कहा कि “प्रत्येक जिले में एक सामुदायिक हॉल का निर्माण किया जाएगा ताकि समुदाय वहां समारोह आयोजित कर सके।” यहां कांग्रेस पार्टी ने दिखा दिया कि तुष्टीकरण की राजनीति से सत्ता में रहा जा सकता है। वहीं, पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में मुस्लिम तुष्टीकरण को एकदम सिरे से नकार दिया गया है। गुड़गांव वाले मामले से ही समझने की कोशिश करते हैं।

हरियाणा राज्य में पढ़ाई जाएगी श्रीमद्भगवद्गीता

दरअसल, हरियाणा के मुख्यमंत्री एमएल खट्टर ने बीते शुक्रवार को कहा कि “मुसलमानों को गुड़गांव में खुले स्थानों पर जुमे की नमाज नहीं अदा करनी चाहिए।”पत्रकारों से बात करते हुए खट्टर ने कहा, “मैंने पुलिस से बात की है और इस मुद्दे को हल किया जाना चाहिए। हमें पूजा स्थलों पर प्रार्थना करने वाले किसी से कोई समस्या नहीं है। उन स्थानों को इस उद्देश्य के लिए बनाया गया है। लेकिन ये खुले में नहीं होना चाहिए। हम खुले में नमाज अदा कहा करने की प्रथा को बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

ये तो बस झांकी है। इसके अलावा खट्टर ने स्कूलों में श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ाने का निर्देश भी दिया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कुरुक्षेत्र में चल रहे ‘अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव’ के अवसर पर कहा कि “हरियाणा भर के छात्र अगले शैक्षणिक सत्र से श्रीमद्भगवद्गीता से ‘श्लोक’ (पवित्र छंद) का पाठ करेंगे और स्कूलों में इसका अध्ययन करेंगे।” उन्होंने कहा कि “अलग-अलग विचारों का प्रचार करने वाली कई किताबें हैं लेकिन किसी की तुलना भगवद गीता से नहीं की जा सकती, जिसने जीवन को एक दिशा दी है। युवा गीता की शिक्षाओं को आत्मसात करें और अपने जीवन में इसका अभ्यास करें। यदि कोई केवल एक श्लोक को आत्मसात कर सकता है, तो यह जीवन में सफल होने के लिए पर्याप्त है।”

ऐसे में, दो राज्य, दो मुख्यमंत्री और दो विपरित दशा के आधार पर कहा जा सकता है कि इसे भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धि मानी जाए या लोकतंत्र का अभिशाप? एक तरफ तुष्टीकरण से प्रेरित होकर धर्मांतरण हो रहा है तो दूसरी ओर गीता का अध्ययन हो रहा है। इसे समय की विपदा कहिए कि वहां पर सभ्यता विरोधी वाली सरकार है।

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