पराग अग्रवाल को ट्वीटर CEO बनाये जाने से हर भारतीय खुश है। भारतीयों ने अपने परचम से लोहा मनवाने का कार्य, हमेशा किया है। ये एक उपलब्धि उस छोटी सी खुशी को और बड़ा करेगी। अब IBM प्रमुख अरविंद कृष्ण, गूगल प्रमुख सुंदर पिचाई, मास्टरकार्ड अजय बांगा, Reckit प्रमुख, एल नरसिम्हा, पॉलोऑल्टो प्रमुख निकेश अरोरा, एडोबी प्रमुख शांतनु नारायण के साथ पराग अग्रवाल का भी नाम विश्व के बड़ी कम्पनियों में भारतीयों के दमदारी को बताने के लिए काफी है।
लेकिन! क्या यह खुश होने या विषय है या इस खबर पर हर भारतीयों को दुःख होना चाहिए। दुःख का मतलब यहां गम्भीर चिंतन से है। यह जो पराग की नियुक्ति है, वह अपने साथ बहुत सी भारतीय समस्याओं को लेकर आया है। यह हमारे लिए एक चिंतनीय विषय है कि यह जो ब्रेन ड्रेन यानी बौद्धिक संपदा का पलायन विदेशों में हो रहा है, आखिरकार ऐसी कौन सी गलती है, जिसके वजह से भारतीयों को अपने देश में नहीं रोका जा रहा है।
भारत में ब्रेन ड्रेन आज एक वास्तविकता है। भारत और चीन दो शीर्ष देश हैं जो इससे सबसे ज्यादा पीड़ित हैं। ब्रेन ड्रेन का मतलब यह होता है कि, व्यक्ति वित्तीय लाभ या करियर की उन्नति की तलाश में प्रशिक्षित और अत्यधिक कुशल मानव श्रम को उस स्थान से दूर ले जाना शामिल है, जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
भारत के शीर्ष प्रतिभाएं जो भारत छोड़कर विदेश जाती है, यह इसी का उदाहरण है। IIM बैंगलोर द्वारा किए गए शोध के अनुसार, भारत में ब्रेन ड्रेन का कुल प्रतिशत एक दशक में 256% गुना बढ़ गया है। वैश्विक स्तर पर, यह देखा जा सकता है कि 1990 के दशक के दौरान एशिया से संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके में प्रवासन में वृहद वृद्धि हुई है। कारण यह है कि इन देशों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आईटी पेशेवरों और कुशल दिमागों की मांग में वृद्धि हुई है।
खैर, यह तो हो गया कि लोग जाते क्यों हैं। सवाल यह है कि एक युवा स्नातक, प्रवासन जैसे गम्भीर फैसले कैसे ले लेता है? मूल रूप से, खतरनाक दरों पर प्रवासन के कारण हैं-
-अपर्याप्त संस्थान, जिनके पास वैश्विक प्रदर्शन, सुविधाओं, संकायों और उपकरण हैं।
– अपर्याप्त सक्षम वातावरण
– राजनैतिक अस्थिरता
– अवसरों की कमी
इंटरनेशन्स द्वारा एक्सपैट इनसाइडर 2021 के सर्वेक्षण ने इस सवाल का जवाब दिया है जो ज्यादातर लोगों के दिमाग में रहता है: भारतीय विदेश क्यों जाते हैं?
सर्वेक्षण के अनुसार, विदेशों में काम करने वाले 59 फीसदी भारतीय अपने करियर के लिए स्थानांतरित हो गए, जो वैश्विक औसत (47%) की तुलना में बहुत अधिक है। करीब एक-चौथाई (23%) को अपने दम पर नौकरी मिली, 19% को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भर्ती किया गया, और 14% को उनके नियोक्ता द्वारा भेजा गया। अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए सिर्फ 3% विदेश चले गए, जो अभी भी 2% के वैश्विक औसत से थोड़ा अधिक हिस्सा है।
इन सारे कारणों के बाद संकायों में पर्याप्त परीक्षण की कमी एक बड़ा कारण है। उदाहरण के तौर पर शिक्षा को लें सकते हैं। शायद यह वह जगह है जहां ब्रेन ड्रेन हमें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।
IIT बॉम्बे में अधिकांश छात्रों को अच्छे संकाय का आशीर्वाद प्राप्त है, लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसे भी संस्थान हैं जिन्हें हमेशा समान लाभ नहीं मिला है। हर यूजी/पीजी छात्र को हमेशा बढ़िया फैकल्टी द्वारा नहीं पढ़ाया जाता है।
हमारे सामने यह विकट समस्या है कि हमारे पास अच्छे संकायों की कमी है। उस समस्या के लिए हमारा समाधान भी स्पष्ट होना चाहिए, हमें चाहिए कि हर संकायों को प्रशिक्षित करें और बेहतर फैकल्टी तैयार करें।
दूसरी बात यह कि जब प्रशिक्षित युवा बाहर निकलकर आते हैं, तब उसके लिए अवसर बनाया जाए। कोई इंसान सिर्फ इसलिए देश छोड़ दे रहा है क्योंकि वहां पैसा ज्यादा है तो यह शर्म का विषय है। समस्या यह है कि ऐसे अवसर वाला माहौल बनाने के लिए हमें पूंजीवाद के सहारा लेना होगा, स्टार्टअप इकोसिस्टम का निर्माण करना होगा, नए-नए तरीकों से पैसा बनाना होगा।
भारतीय राजनेताओं को भी अपनी दलगत राजनीति के अलावा, युवा पीढ़ी के महत्वाकांक्षा को समझना होगा। उनकी मांग को समझकर ही भारत हमेशा जवान देश रह सकता है। यह राजनीति या जो पूर्व की भी राजनीति रही है, वह अबतक युवाओं को किनारे रखकर चल रही है।
जॉन एफ कैनेडी के अमर शब्दों को बदलकर आपके सामने रखना आवश्यक है, “यह मत पूछो कि आपके देश का युवा आपके लिए क्या कर सकता है, पूछें कि आप अपने युवाओं के लिए क्या कर सकते हैं!”
आखिरी और अंतिम चीज है सुरक्षा! भारत में गरीबी से लेकर तमाम ऐसी समस्याएं हैं, जिनका निवारण करना आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा इन पहलुओं पर काम करके ही भारत का ब्रेन ड्रेन रुक सकता है।